‘टिप्पणियों को देखकर दुख हुआ’
पीठ ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में कुछ टिप्पणियों को देखकर दुख हुआ। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और यूपी सरकार से भी जवाब मांगा है। तत्काल नहीं लिया गया निर्णय- SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय लिखने वाले की ओर से संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है। यह निर्णय तत्काल नहीं लिया गया था और इसे सुरक्षित रखने के 4 महीने बाद सुनाया गया।
‘टिप्पणी पर लगाई रोक’
पीठ ने कहा कि हम आमतौर पर इस स्तर पर स्थगन देने में हिचकिचाते हैं। लेकिन चूंकि पैरा 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियाँ कानून के सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। हम उक्त पैरा में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाते हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
बता दें कि जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने आरोपी की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए विवादास्पद टिप्पणी की थी। उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि आरोपी पर आईपीसी की धारा 354-बी और पोक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत मुकदमा चलाया जाए।
‘बलात्कार के प्रयास के अपराध नहीं बनते’
अदालत ने कहा था कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप और मामले के तथ्य इस मामले में बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं बनाते। बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि यह तैयारी के चरण से आगे निकल गया था। जस्टिस ने फैसला सुनाया कि इस तरह की हरकतें यह साबित करने के लिए अपर्याप्त हैं कि आरोपी बलात्कार करने का इरादा रखता था क्योंकि उन्होंने अपने प्रयास में आगे कोई कदम नहीं उठाया। आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि गवाहों ने यह नहीं बताया कि आरोपी की हरकतों से पीड़िता नग्न या निर्वस्त्र हो गई थी।