‘भयावह तरीके से करते हैं काम’
कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि जहां वैश्विक स्तर पर वेदांत दर्शन को अपनाया जा रहा है, वहीं आध्यात्मिकता की इस भूमि में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वेदांत और सनातनी ग्रंथों को प्रतिगामी बताकर खारिज करते हैं। उन्होंने कहा कि खारिज करने की यह प्रवृत्ति अक्सर विकृत, औपनिवेशिक मानसिकता, हमारी बौद्धिक विरासत की अक्षम समझ से उपजी है। ये तत्व एक व्यवस्थित और भयावह तरीके से काम करते हैं।
‘धर्मनिरपेक्षता का ढाल के रूप में उपयोग करते है’
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि कुछ लोगों द्वारा विनाशकारी प्रक्रिया को छिपाने के लिए धर्मनिरपेक्षता का ढाल के रूप में उपयोग किया गया है। अपने रुख को पूर्ण सत्य मानकर उस पर अड़े रहना और दूसरे के दृष्टिकोण पर विचार नहीं करना अज्ञानता की पराकाष्ठा है। उन्होंने कहा कि दुनिया में आज भले ही तकनीक का विस्तार तेजी से हो रहा है, लेकिन यही समय है जब हमें अपनी जड़ों की ओर दोबारा जाना चाहिए।
‘देश को वेदांत की जरूरत है’
जेएनयू में कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज हमारे देश को वेदांत की जरूरत है। जो समावेश की बात करता है। किसी भी देश का स्थायी विकास तभी संभव है जब वहां शांति हो और स्थिरता रहे। ऐसा माहौल सनातन और वेदांत के साथ ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि वेदांत संवाद की बात करता है जब तक आप संवाद की ही नहीं करेंगे तो किसी मसले का हल कैसे निकल सकता है। हमें किसी भी दिशा में आगे बढ़ने के साथ चलना होगा और संवाद करते रहना होगा।
‘अभिव्यक्ति और संवाद जरूरी है’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह असहिष्णुता हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करती है। यह समाज में सद्भाव को बाधित करती है। यह विनाश और विफलता की ओर ले जाती है। इस दौरान उन्होंने संसद में व्यवधान का भी जिक्र किया है। उन्होंने जिक्र करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति और संवाद जरूरी है। अभिव्यक्ति का अधिकार एक दिव्य उपहार है। इसे किसी तरह से कम करना उचित नहीं है और यह हमें दूसरे पहलू की याद दिलाता है जो संवाद है।