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लिव-इन रिलेशनशिप पर हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी, जिम्मेदारियों से बचने के लिए आकर्षित हो रहे हैं युवा

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि सामाजिक मान्यता न होने के बावजूद आज के युवा सामाजिक जिम्मेदारियों से बचने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

भारतJan 26, 2025 / 08:52 am

Shaitan Prajapat

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि सामाजिक मान्यता न होने के बावजूद आज के युवा सामाजिक जिम्मेदारियों से बचने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप की ओर आकर्षित हो रहे हैं। जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि समय आ गया है कि समाज में नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए हमें कुछ रूपरेखा तैयार करनी चाहिए और समाधान निकालना चाहिए। हम बदलते समाज में रहते हैं जहां परिवार, समाज या कार्यस्थल पर युवा पीढ़ी का नैतिक मूल्य और सामान्य आचरण बदल रहा है।

छह साल तक साथ रहने के बाद बलात्कार का आरोप

जस्टिस श्रीवास्तव ने छह साल तक साथ रहने के बाद बलात्कार का आरोप लगाने वाली महिला से इतने सालों बाद शिकायत की वजह पूछी और वाराणसी जिले के आरोपी आकाश केशरी को जमानत दे दी। आकाश के खिलाफ बलात्कार और अजा-जजा अधिनियम के तरह मामले दर्ज कराए गए हैं। इसमें आरोप लगाया गया कि उसने शादी के बहाने युवती से शारीरिक संबंध बनाए और बाद में शादी से इनकार कर दिया।

वकील की दलील- दोनों बालिग, आपसी सहमति से लिव-इन संबंध

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि दोनों बालिग हैं और आपसी सहमति से साथ छह साल तक लिव-इन संबंध में रहे हैं। आरोपी ने शादी का कभी वादा नहीं किया था और गर्भपात कराने का आरोप झूठा है।
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‘चिकित्सा मौलिक अधिकार, सरकारें बच नहीं सकतीं : कर्नाटक हाई कोर्ट

कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाएं नागरिकों का मौलिक अधिकार हैं और सरकारें इससे बच नहीं सकतीं। अदालत ने राज्य के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया जो सभी स्तरों पर मेडिकल और पैरा-मेडिकल कर्मियों सहित चिकित्सा सुविधा और बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करने के लिए तंत्र की निरंतर निगरानी और योजनाओं का कार्यान्वयन करेगी।
मुख्य न्यायाधीश एनवी अंजारिया और जस्टिल केवी अरविंद की खंडपीठ ने एक रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लेते हुए यह निर्देश जारी किया, जिसमें राज्य में लगभग 16,500 चिकित्सा कर्मियों की कमी पर जिक्र किया गया था। अदालत ने कहा कि वह राज्य सरकार और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से अपेक्षा करती है कि वे राज्य में और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं की जरूरतों को पूरा करने में सजग और सक्रिय बने रहें और सुनिश्चित करें कि चिकित्सा बुनियादी ढांचा व्यापक रूप से उपलब्ध हो और चिकित्सा सुविधाएं तथा उपचार ‘ग्रामीण निवासियों के दरवाजे तक’ पहुंचें।
अदालत ने निर्देश दिया कि समिति हर छह महीने में बैठक करेगी और संबंधित जिलों से विभिन्न श्रेणियों में चिकित्सा कर्मचारियों के रिक्त पदों की संख्या, सरकार द्वारा संचालित विभिन्न सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में दवाओं सहित चिकित्सा बुनियादी ढांचे और चिकित्सा सुविधाओं को उन्नत करने या आगे बढ़ाने की आवश्यकता के बारे में जानकारी हासिल कर उसका विश्लेषण करेगी।

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