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नई दिल्ली

Delhi Mayor Election नहीं लड़ने से AAP को एक बड़ा फायदा, लेकिन असल वजह कुछ और…

Delhi Mayor Election: दिल्ली में मेयर का चुनाव नहीं लड़ने के पीछे आम आदमी पार्टी का फायदा भी छिपा है। इसीलिए AAP ने ये कदम उठाया है। हालांकि इसके पीछे नगर निगम में कम हुई पार्षदों की संख्या भी बड़ी वजह है।

नई दिल्लीApr 21, 2025 / 04:14 pm

Vishnu Bajpai

Delhi Mayor Election नहीं लड़ने से AAP को एक बड़ा फायदा, लेकिन असल वजह कुछ और…

Delhi Mayor Election नहीं लड़ने से AAP को एक बड़ा फायदा, लेकिन असल वजह कुछ और…

Delhi Mayor Election: दिल्ली नगर निगम के मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी ने इस बार मैदान में उतरने से इनकार कर दिया है। पार्टी ने ऐलान किया है कि अप्रैल के अंत में होने वाले मेयर चुनाव में वह अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी। इस फैसले के पीछे सबसे बड़ा कारण बदला हुआ गणित है, क्योंकि दिल्ली नगर निगम में अब बहुमत भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में जाता दिख रहा है। राजनीतिक विश्‍लेषकों की मानें तो इसमें भी आम आदमी पार्टी को एक बड़ा फायदा दिख रहा है। हालांकि चुनाव न लड़ने की मंशा के पीछे एक सवाल भी उठ रहा है। वो ये कि AAP ने हार के डर से मैदान छोड़ा या इसके पीछे कोई रणनीतिक ‘गेम प्लान’ है?

एक नई रणनीति के तहत काम कर रही आम आदमी पार्टी

राजनीति के जानकारों की मानें तो दिल्ली नगर निगम चुनाव से हटने के बाद आम आदमी पार्टी अब एक नई रणनीति पर काम कर रही है। दरअसल, साल 2022 में जब एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी को जीत मिली थी। तब भाजपा विपक्ष में होते हुए भी संतुष्ट दिख रही थी। वजह साफ थी। दिल्ली सरकार और एमसीडी दोनों ही ‘आप’ के कब्जे में थे। इसलिए वह केंद्र की भाजपा सरकार पर जिम्मेदारियों को टालने का आरोप नहीं लगा सकती थी। अब वही रणनीति आम आदमी पार्टी अपना रही है।
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मेयर चुनाव से खुद को अलग करके ‘आप’ ने दिल्ली में भाजपा की ‘ट्रिपल इंजन सरकार’ को खुला मैदान दे दिया है। केंद्र, उपराज्यपाल और एमसीडी सभी भाजपा के पास। ऐसे में अब आम आदमी पार्टी भाजपा को हर मोर्चे पर घेरने के लिए पूरी तरह तैयार है। पार्टी अब यह तर्क देगी कि राजधानी की किसी भी समस्या का जिम्मेदार केवल और केवल भाजपा है, क्योंकि अब सरकार के हर स्तर पर वही काबिज है। इस रणनीति के तहत दिल्ली की भाजपा सरकार के खिलाफ आम आदमी पार्टी को मुद्दे बनाने का मौका मिल जाएगा।

कार्यकर्ताओं के मनोबल को बचाने की कोशिश?

आम आदमी पार्टी की चिंता केवल हार नहीं, कार्यकर्ताओं के मनोबल की भी है। फरवरी 2025 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था, जिसमें भाजपा ने 27 साल बाद वापसी की। यहां तक कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया तक अपनी सीट नहीं बचा सके। अगर अब पार्टी मेयर चुनाव भी हार जाती, तो कार्यकर्ताओं में निराशा और गहरा जाती। लगातार दो बड़े चुनावों में हार पार्टी की साख को भी नुकसान पहुंचाती और जनता में उसकी छवि ‘हारी हुई पार्टी’ के रूप में बन जाती। शायद यही वजह है कि पार्टी ने इस बार चुनावी रणभूमि से हटना ही बेहतर समझा।

सौरभ भारद्वाज का बयान और भाजपा पर सीधी चुनौती

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता सौरभ भारद्वाज ने साफ कहा है कि अब भाजपा के पास कोई बहाना नहीं बचेगा। केंद्र सरकार, उपराज्यपाल, दिल्ली की विधानसभा में सत्ता और एमसीडी। चारों स्तरों पर अब भाजपा की ही सरकार है। इसलिए चाहे बात हो कूड़े के पहाड़ों की, बारिश के बाद जलभराव की, प्रदूषण की या फिर ट्रैफिक जाम और अपराध की। हर समस्या से निपटना अब भाजपा की जिम्मेदारी है। उन्होंने दावा किया कि भाजपा एक महीने के भीतर ही जनता के सामने एक्सपोज हो जाएगी। इस तरह ‘आप’ ने एक तरह से खुद चुनाव मैदान से हटकर भाजपा को सीधी जिम्मेदारी सौंप दी है। ताकि जनता के बीच मुद्दों पर और ज्यादा आक्रामक तरीके से घेरा जा सके।
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एमसीडी में संख्या बल प्रमुख कारण

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मेयर के चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार की संभावना प्रबल थी, क्योंकि नगर निगम में भाजपा के पास 117 पार्षद हो गए हैं। जबकि AAP के पास मात्र 113 पार्षद हैं। इसमें अगर भाजपा के सात सांसद और 11 विधायक भी जोड़ दें तो यह संख्या 135 हो जाते हैं। जबकि आम आदमी पार्टी के पास तीन विधायक और दो राज्यसभा सांसद जोड़ने के बाद भी आम आदमी पार्टी के नगर निगम में वोटों की संख्या 119 पर ही सिमट जाती है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व का आकलन है कि अब मेयर पद की दौड़ में बने रहना महज औपचारिकता होगी।

आम आदमी पार्टी ने क्या कहा?

आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज और नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने सोमवार को मीडिया के सामने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा “2022 के नगर निगम चुनावों में हार के बावजूद भाजपा ने उसके पार्षदों को तोड़ने की रणनीति अपनाई। तब भाजपा के 104 और आम आदमी पार्टी के 134 पार्षद चुनकर आए थे, लेकिन बाद में भाजपा ने तोड़फोड़ और डरा-धमकाकर पार्षदों को अपनी ओर मिलाना शुरू कर दिया। हम ऐसी राजनीति नहीं करते हैं। इसलिए हमने मेयर चुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला लिया है। अब दिल्ली में भाजपा की ट्रिपल इंजन की सरकार है। इसलिए बिना कोई बहाना बनाए दिल्ली की जनता के सभी काम होने चाहिए।”

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