scriptOpinion : चुनाव सुधारों के लिए गहन चर्चा की जरूरत | Opinion : | Patrika News
ओपिनियन

Opinion : चुनाव सुधारों के लिए गहन चर्चा की जरूरत

केंन्द्रीय मंत्रिमंडल की ‘एक देश-एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी से स्पष्ट हो गया है कि मोदी सरकार देश में एक साथ चुनाव की अवधारणा को धरातल पर लाने के लिए संकल्पित है। विधेयक संसद में पेश करने की तैयारी के बीच विपक्षी पार्टियों के विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। यह जानते हुए भी […]

जयपुरDec 15, 2024 / 09:53 pm

Sanjeev Mathur

one nation one election

one nation one election


केंन्द्रीय मंत्रिमंडल की ‘एक देश-एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी से स्पष्ट हो गया है कि मोदी सरकार देश में एक साथ चुनाव की अवधारणा को धरातल पर लाने के लिए संकल्पित है। विधेयक संसद में पेश करने की तैयारी के बीच विपक्षी पार्टियों के विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। यह जानते हुए भी कि देश में एक साथ चुनाव की व्यवस्था कोई पहली बार लागू नहीं होगी। आजादी के बाद वर्ष 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही कराए गए थे। यह सिलसिला उस समय टूटा, जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गईं। सिलसिला नहीं टूटता तो अमरीका, फ्रांस, कनाडा, स्वीडन जैसे देशों की तरह भारत में भी एक साथ चुनाव हो रहे होते।
‘एक देश-एक चुनाव’ विधेयक एक तरह से टूटी कडिय़ों को फिर से जोडऩे का प्रयास है। हालांकि विपक्ष का कहना है कि एक साथ चुनाव कराना लोकतंत्र और संविधान की भावना के प्रतिकूल होगा। देश की विशाल आबादी को देखते हुए यह व्यावहारिक नहीं होगा। विपक्ष के इन तर्कों का कोई ठोस आधार नजर नहीं आता। जब जीएसटी के रूप में ‘एक देश-एक कर’ का सफल प्रयोग हो चुका है तो ‘एक देश-एक चुनाव’ की व्यवस्था भी लागू की जा सकती है। इस व्यवस्था की जरूरत इसलिए भी महसूस की जा रही है, क्योंकि चुनाव कराना बेहद महंगा हो गया है। भारी खर्च के अलावा बार-बार चुनाव से देश का विकास भी बाधित होता है। हर पांच-छह महीने में अलग-अलग राज्यों में चुनाव से आचार संहिता के कारण जनहित वाली सरकारी घोषणाएं रोकनी पड़ती हैं। सरकारी मशीनरी हमेशा इलेक्शन मोड में बनी रहती है। पांच साल में एक बार चुनाव होंगे तो सरकारें विकास कार्यों पर ज्यादा फोकस कर सकेंगी।
इसके बावजूद ‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर क्षेत्रीय पार्टियों के विरोध को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। उनके इस तर्क में दम है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने से मतदाताओं के मन पर राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो सकते हैं। स्थानीय मुद्दे दरकिनार होने से राज्यों के विकास पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। एक साथ चुनाव में यह व्यवस्था किस तरह की जाए कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाएं, यह सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी। इसके लिए गहन चर्चा और व्यापक चुनाव सुधार अभियान भी जरूरी है। जनप्रतिनिधित्व कानून में सुधार के साथ कालेधन पर अंकुश, दागी नेताओं पर रोक और मतदाताओं में राजनीतिक जागरूकता के प्रयास होने चाहिए, ताकि लोकतंत्र और समृद्ध हो।

Hindi News / Prime / Opinion / Opinion : चुनाव सुधारों के लिए गहन चर्चा की जरूरत

ट्रेंडिंग वीडियो