scriptपत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख: थोथा विकास | Patrika Group DY Editor Bhuwanesh Jain Article Pravah On Development In Rajasthan On 1st APril 2025 | Patrika News
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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख: थोथा विकास

राजस्थान में गांवों के शहरीकरण की होड़ लगी हुई है। स्वायत्त शासन विभाग प्रदेश के विभिन्न जिलों के गांवों को नगरीय निकायों में शामिल करने में जी-जान से जुटा हुआ है।

जयपुरApr 01, 2025 / 12:00 pm

भुवनेश जैन

भुवनेश जैन

राजस्थान में गांवों के शहरीकरण की होड़ लगी हुई है। स्वायत्त शासन विभाग प्रदेश के विभिन्न जिलों के गांवों को नगरीय निकायों में शामिल करने में जी-जान से जुटा हुआ है। स्वायत्त शासन विभाग को राजस्थान के गांव और उनकी संस्कृति फूटी आंख नहीं सुहा रही है। जल्दी पड़ी है कि कैसे गांवों की खेती-बाड़ी, पशुपालन को उजाड़ कर तथाकथित ‘विकास’ किया जाए। विकास तो होगा या नहीं, इतना अवश्य है कि कुछ वर्षों बाद खेत-खलिहानों की जगह केवल कंक्रीट के जंगल नजर आएंगे। किसान खेती छोड़ मजदूर बनते दिखाई देंगे और उनकी जमीन पर भूमाफिया, राजनेता और अफसर काबिज हो जाएंगे। जयपुर में ही हाल ही करीब डेढ़ लाख की आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्रों को शहरी सीमा में शामिल कर लिया गया। अब इनका ‘विकास’ किया जाएगा !
राजस्थान में नियोजित विकास की परिकल्पना को बिलकुल भुला दिया गया है। मास्टर प्लान की कवायद तो केवल कागजी रह गई है। न नेता और न अफसर चाहते हैं कि प्रदेश में नियोजित विकास हो। भूमाफिया पहले अनियंत्रित ढंग से बसावट करता है। फिर भ्रष्ट नेताओं, विधायकों और अफसरों की जेबें भरकर शहर से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में कॉलोनियां काटी जाती है। मास्टर प्लानों की धज्जियां उड़ा दी जाती हैं। फिर उन्हीं भ्रष्ट राजनेताओं और अफसरों की मदद से अवैध बसावट का नियमन कर दिया जाता है। हर साल यह खेल चलता है। कृषि क्षेत्र ही नहीं, यह भ्रष्ट गठजोड़ वन क्षेत्रों, पहाड़ियों और चारागाह भूमियों तक को निगल जाता है। जयपुर में ही आज नाहरगढ़ की पहाड़ियों, झालाना की पहाड़ियों, जवाहर नगर के टीबों, रामगढ़ के जलभराव क्षेत्र तथा आसपास के छोटे-बड़े कई जलाशयों की जमीनों को वहां के भ्रष्ट जनप्रतिनिधि भूमाफिया और लालची अफसरों की मदद से जीम चुके हैं। कांग्रेस हो या भाजपा, किसी भी सरकार को इस पाप से मुक्त नहीं माना जा सकता। जयपुर के कई जनप्रतिनिधि तो स्वयं भूमाफिया बन कर पाप की कमाई से अपने महल, फार्म हाउस और व्यावसायिक भवन खड़े कर अट्टहास कर रहे हैं।
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नियोजित नगरीय विकास सपनों की बात हो गई है। जयपुर विकास प्राधिकरण में नियुक्त होने वाले आयुक्त हों या नगर निगमों के महापौर और अधिकारी- सब अपने-अपने कार्यकाल में ज्यादा से ज्यादा कमाई करके ले जाना चाहते हैं, भले ही शहर बर्बाद हो जाए। ना कोई वर्टिकल विकास की बात करता है, ना सैटेलाइट टाउनशिप की और न सार्वजानिक परिवहन प्रणाली में सुधार की। विकास के नाम पर फ्लाई ओवर बनाना सबको भाता है , क्योंकि सबसे ज्यादा कमीशन उन्हीं में मिलता है। जयपुर ही नहीं, राज्य के कई शहर अनियंत्रित विकास के शिकार हो रहे हैं। आसपास के गांव धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं। ग्रामीण जीवन, संस्कृति, परम्पराओं का लोप हो रहा है।
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राजनीति तो भ्रष्टाचार का पर्याय होती ही है, दु:ख तो यह है कि अफसरशाही भी अपना कर्तव्य भूल कर उनके साथ लूट के खेल में जुट जाती है। जयपुर में पिछली सरकार ने ऐसे कई संस्थानों को निजी अस्पताल बनाने के लिए सस्ती दरों पर फिर जमीनें बांट दीं, जो एक-एक मेडिकल कॉलेज या अस्पताल पहले ही शुद्ध व्यावसायिक आधार पर चला रहे हैं। ‘मेडिकल टूरिज्म’ जैसी सजावटी शब्दावली की आड़ में जमीनों के खेल चल रहे हैं। लालच का कहीं अंत नजर नहीं आ रहा। अपनी धरती, संस्कृति और परम्पराओं के प्रति किसी को कोई लगाव ही नहीं रहा। चारों ओर ‘थोथे विकास’ की अंधी दौड़ लगी है।

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