स्कूलों और कॉलेजों में अपनी संस्कृति, इतिहास, कला, साहित्य और दर्शन को पाठ्यक्रम में शामिल कर नई पीढ़ी को अपनी विरासत के बारे में शिक्षित किया जा सकता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं और त्योहारों का आयोजन कर लोगों में अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सकती है। परंपराओं, कहानियों, लोककथाओं और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित और प्रसारित कर खासकर युवा पीढ़ी के बीच संस्कृति को नई पहचान दी जा सकती है। – डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
हमारे देश की सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए इसे बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। महापुरुषों की जयंती एवं त्योहारों के अवसर पर स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संस्कृति से जुड़ी हुई विविध गतिविधियों का आयोजन किया जाना चाहिए। – ललित महालकरी, इंदौर
सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए नकारात्मक सांस्कृतिक मूल्यों के बजाय कला संगीत नृत्य साहित्य जैसे सकारात्मक मूल्यों को बढ़ावा दे। संस्कृति की भाषा परंपरा कला को संरक्षित करने के लिए विभिन्न संस्कृतियों के लोगों से बातचीत कर सांस्कृतिक पहचान को बढ़ाना चाहिए। अपनी सांस्कृतिक पहचान को समझना व्यक्त करना और उसके लिए संघर्ष करना आवश्यक है।अन्य संस्कृतियों के प्रति सम्मान और सहिष्णुता का भाव होना चाहिए। – शालिनी ओझा, बीकानेर