वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए गठित संयुक्त राष्ट्र संघ के तमाम प्रयास इस दिशा में नाकाम सिद्ध हो रहे हैं। एक और अमरीका विश्व में शांति सुरक्षा बनाए रखने की हुंकार भर रहा है। वहीं दूसरी ओर वैश्विक शांति के लिए खतरा बने देश को उन्नत किस्म के हथियारों की लगातार आपूर्ति कर रहा है। परस्पर एक देश को एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध करने पर उकसाते हुए वैश्विक अशांति को जन्म दे रहा है। – पी.सी. खंडेलवाल, जयपुर
देश अक्सर अपने राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक हितों को प्राथमिकता देते हैं और जब राष्ट्रीय स्वार्थ वैश्विक शांति के मार्ग में आड़े आते हैं, तो शांति स्थापना के प्रयास निष्फल हो जाते हैं। वर्तमान में बहुत-से संघर्ष विस्तारवाद, जातीय, धार्मिक कट्टरता, ऐतिहासिक और संसाधनों की प्रतिस्पर्धा से जुडे हैं, जिसमें कुछ देश अपना वर्चस्व स्थापित करने में युद्धरत हैं तो कुछ अपने अस्तित्व को बचाने में। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं कई बार शक्तिशाली देशों के दबाव में कमजोर साबित होती हैं तो वीटो पावर रखने वाले देशों में एकराय की कमी से कई शांति प्रस्ताव अटक जाते हैं। कुछ देशों के लिए युद्ध विपदा में व्यापार का अवसर है इसलिए वे अपने हथियार, इंटेलीजेंस, डिफेंस सिस्टम, मिसाइलें आदि युद्धरत देशों को बेचकर आर्थिक लाभ उठाने में लगे हुए हैं। ऐसे में शांति की कोशिशें औपचारिक बनकर विफल साबित हो रही हैं। – संजय निघोजकर, धार (मप्र)
वैश्विक शांति के लिए किए जाने वाले प्रयास धरातल पर इसलिए नजर नहीं आ रहे हैं क्योंकि अमरीका जैसे देशों की कथनी और करनी में अंतर होता है। अमरीका एक ओर तो यूक्रेन रुस विवाद में मध्यस्थता करनें का दिखावा करता है और दुसरी ओर बैक डोर से यूक्रेन को हथियार उपलब्ध करवाता है और फिर बदले में यूक्रेन की खनिज संपदा पर अपना हक जताता है। एक ओर अन्य मामले में अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ये दावा करते हैं कि भारत पाकिस्तान युद्ध उन्होंने रूकवाया ओर दुसरी ओर अभी चल रहे इजरायल-ईरान युद्ध रोकने के बजाय खुद अमरीका शामिल हो गया। ईरान पर हवाई हमले कर दिए। यहां पर भी अमरीका की मंशा ईरान के तेल संसाधनों पर इराक की तरह कब्जा करने की है। इस कारण बड़े राष्ट्रों के निजी व्यापारिक हितों ओर दोगलेपन के कारण वैश्विक शांति कायम नहीं हो पाती है। – शक्ति सिंह चौहान, जोधपुर
औपचारिक वक्तव्यों, सम्मेलनों और दस्तावेजों तक विश्व शांति के प्रयासों के सीमित रहने से लक्ष्य हासिल नहीं हो पाते हैं। महाशक्तियां के अपने हितों के अनुसार नीतियां बनाने से शांति की पहल दिखावटी लगती है। हथियार व्यापार, भू-राजनीतिक स्वार्थ और द्वेषपूर्ण राजनीति इन प्रयासों को निष्फल कर देते हैं। परिणामस्वरूप, धरातल पर शांति नहीं, बल्कि संघर्ष और अस्थिरता अधिक दिखाई देती है। – अमृतलाल मारू ‘रवि’ इंदौर
वैश्विक शांति के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी धरातल पर उनका प्रभाव कम दिखना एक जटिल समस्या है। जब वैश्विक शांति की बात आती है तब अक्सर, विभिन्न राष्ट्र अपने स्वयं के राष्ट्रीय हितों को वैश्विक शांति और सहयोग से ऊपर रखते हैं। प्रायः देशों के मध्य आपसी व्यापार, सुरक्षा या क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर प्रतिस्पर्धा शांति प्रयासों में बाधा डालती है। बड़ी शक्तियों के बीच शक्ति संतुलन की होड़ और विभिन्न क्षेत्रों में भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा तनाव को बढ़ाती है। – डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
वैश्विक नियामक संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ अपने उदय कल से ही निष्क्रिय साबित हुई हैं। दुनिया के इस संगठन पर विश्व की उन्हीं महा शक्तियों का प्रमुख रूप से कब्जा रहा है, जो अपने मनमाने आचरणों एवं क्रियाकलापों से वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं सामरिक परिस्थितियों को प्रभावित करते रहे हैं। यही कारण है कि वैश्विक शांति के प्रयास हकीकत में धरातल पर नजर नहीं आते हैं। दुनिया के स्तर पर आर्थिक, सामाजिक, सामरिक एवं सद्भावना पूर्ण संतुलन कायम रखने के लिए इन संस्थाओं का सुदृढ़ होना आवश्यक है। वैश्विक नियामक संस्थाओं में सभी प्रमुख देशों के प्रतिनिधियों को समान रूप से प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। इन संस्थाओं को इतना शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए कि दुनिया का प्रत्येक देश इनके निर्देशों को मानने के लिए बाध्य हो। – ललित महालकरी, इंदौर
वैश्विक शांति के लिए यह जरूरी है कि हम एक दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करें। संयुक्त राष्ट्र संघ पूरे तरीके से पारदर्शी एवं निष्पक्ष रूप से समय पर अपनी मध्यस्थता निभाए। वैश्विक रूप से मजबूत शक्तिशाली देशों में संतुलन स्थापित करने के लिए महाशक्ति देश को आपसी टकराव और अह्म छोड़कर वैश्विक शांति को प्राथमिकता देनी चाहिए। – सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़ (छत्तीसगढ़)