ऐन वक्त पर हुए फैसलों ने पलट दिया चुनाव
पहले केंद्रीय कर्मचारियों को 8 वें वेतन आयोग के एलान और फिर मतदान से ठीक पहले एक फरवरी को बजट में 12 लाख सालाना कमाई वालों की आयकर माफी की घोषणा ने दिल्ली के उस मध्यमवर्ग को गदगद कर दिया जो लोकसभा में तो भाजपा को वोट करता था, लेकिन सब्सिडी वाली योजनाओं के चक्कर में विधानसभा चुनाव में आप को चला जाता था। 39 प्रतिशत से जिस तरह से भाजपा 45 प्रतिशत से ज्यादा इस बार वोट पाई, उससे मध्यमवर्ग के समर्थन का संकेत स्पष्ट है।
डबल एंटी इन्कमबेंसी से पार नहीं पाए केजरीवाल
इस बार “आप “ को डबल एंटी इन्कमबेंसी झेलनी पड़ी। 10 साल से राज्य की सत्ता के खिलाफ नाराजगी तो थी ही, निगम चुनावों में जीत के बाद एक और एंटी इन्कमबेंसी पैदा हो गई। कूड़ा, सफाई, सीवर और कॉलोनियों की समस्याओं का सीधा वास्ता एमसीडी से होता है। इससे पहले भाजपा को यही कीमत चुकानी पड़ती थी। जब वह एमसीडी की सत्ता में होती थी, लेकिन विधानसभा में मत प्रतिशत प्रदर्शन में सुधार के बावजूद कभी कांग्रेस तो कभी आप की सरकार बन जाती थी। गरीबों और मध्यवर्ग के मसीहा के तौर पर करिश्माई छवि से पिछले दो चुनावों में 60 से ज्यादा सीटें जीतने वाले केजरीवाल जब शराब घोटाले में जेल गए और फिर शीशमहल कांड में घिरे तो उनकी उस वर्ग में छवि खराब हुई जो उनसे बहुत क्रांति की उम्मीदें लगाए हुए थे। जिस पब्लिक परसेप्शन(जनधारणा) के दम पर वे तीन बार मुख्यमंत्री बने, वही पूंजी वो गंवा बैठे…।