देवीशंकर सुथार Rajasthan News: सारस, जो दुनिया के सबसे ऊंचे उड़ने वाले पक्षियों में गिना जाता है, आज अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। बीते दो दशकों में इसकी संख्या में लगातार गिरावट देखी गई है। राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले समेत राज्य में वेटलैंड की कमी, जलस्रोतों का सूखना, कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग और प्रदूषण में बढ़ोतरी जैसे कारणों ने इसके प्राकृतिक आवासों को नष्ट किया है।
प्रतापगढ़ जिले में तालाबों और खेतों के आसपास सारस के झुंड आम तौर पर दिखते थे, लेकिन अब केवल गिनती के जोड़े ही कहीं-कहीं नजर आते हैं। इनकी संख्या में कमी को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने इसे संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों की सूची में शामिल किया है।
आठ में से 4 प्रजातियां भारत में
विश्व में सारस की आठ प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से चार भारत में पाई जाती हैं। इनमें भारतीय सारस (क्रोंच), ब्लैक-नेप्ड क्रेन, कॉमन क्रेन और डिमॉइजल क्रेन प्रमुख हैं। यह राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात सहित कई राज्यों में पाया जाता है।
सारस जीवन में एक ही साथी बनाता है और जीवनभर उसी के साथ रहता है। यदि एक की मृत्यु हो जाए तो दूसरा भी अकेले जीवन व्यतीत करता है। यह शाकाहारी पक्षी वेटलैंड और दलदली क्षेत्रों में घोंसला बनाता है। मादा एक बार में 3-4 अंडे देती है। इसकी ऊंचाई 6 फीट और पंखों का फैलाव 2.5 मीटर तक होता है।
ईको सिस्टम बचाने पर होगा जीवों का संरक्षण
गत कुछ वर्षों से इको सिस्टम पर काफी असर हो रहा है, जिससे सारस समेत कई पक्षियों की संख्या में कमी हो रही है। सारस पक्षी का संरक्षण होना चहिए। जागरूकता लाकर इकोसिस्टम और सारस सहित अन्य पक्षियों को बचाया जाना चाहिए। मंगल मेहता, पर्यावणरविद्, प्रतापगढ़
गत वर्षों से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। ऐसे में इको सिस्टम काफी प्रभावित हो रहा है, जिसमें सारस की संख्या भी कम होती जा रही है। ऐेसे में पर्यावरण संरक्षण के लिए हम सभी को बीड़ा उठाना होगा। सभी पहलुओं का ध्यान में रखकर संरक्षण के उपाय करने होंगे। हरीकिशन सारस्वत, उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़