महिला उद्यमियों के योगदान को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। मुद्रा योजना, स्टैंड अप इंडिया योजना, महिला ई-हाट और अन्य योजनाओं के अंतर्गत महिलाओं को 10 लाख से 1 करोड़ रुपए तक के ऋण मिलने का प्रावधान है। नीति आयोग की वीमेन एंटरप्रेन्योरशिप प्लेटफॉर्म महिलाओं को उनके व्यवसायों को विकसित करने के लिए डिजिटल और नेटवर्किंग अवसर प्रदान करती है। हालांकि नीतिगत समर्थन के सकारात्मक परिणाम दिख रहे हैं, लेकिन महिला उद्यमियों के सामने चुनौतियां अभी भी कम नहीं हुई हैं। शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के व्यवसायों की संख्या अधिक है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों, प्रशिक्षण और बाजार तक पहुंच की कमी के कारण यह संख्या सीमित है। कुछ राज्य इन असमानताओं को कम करने के लिए प्रयासरत हैं। उत्तराखंड की देवभूमि उद्यमिता योजना में 65% महिलाएं उद्यमिता सीखने में रुचि दिखा रही हैं, जबकि 63% महिलाएं उद्यम सृजन और विविधीकरण में सक्रिय हैं। गुजरात सरकार की हस्तकला सेतु योजना में भी महिलाओं की व्यापक भागीदारी है।
‘ग्लोबल यूनिवर्सिटी एंटरप्रेन्योरियल स्पिरिट स्टूडेंट्स सर्वे’ की रिपोर्ट के अनुसार, स्नातक छात्रों में से 14% उद्यमी बनने की इच्छा रखते हैं और अगले पांच वर्षों में 31% छात्र उद्यमिता में कदम रखना चाहते हैं। रिपोर्ट बताती है कि भारत में महिला उद्यमियों की कुल उद्यम गतिविधियों में भागीदारी अब पुरुषों के लगभग बराबर है। महिला उद्यमिता की दर 11.4% है, जबकि पुरुषों में यह दर 11.6% है। हालिया आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 20% सूक्ष्म, लघु और मध्यम व्यवसाय महिलाओं के स्वामित्व में हैं। लगभग 1.57 करोड़ महिलाओं द्वारा संचालित उद्यम अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। भारत में महिला उद्यमियों द्वारा लगभग 2.2 से 2.7 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान किया जा रहा है।
आईबीइएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में MSME मालिकों में एक बड़ा हिस्सा महिलाओं का है। यह महिलाएं देश की श्रम शक्ति में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारतीय व्यवसाय, महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ाकर वैश्विक जीडीपी में अरबों डॉलर का योगदान कर सकते हैं। बैन एंड को, द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, महिला उद्यमियों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से करोड़ों रोजगार उत्पन्न किए जा सकते हैं। डीपीआईआईटी द्वारा मान्यता प्राप्त महिला निदेशक वाली स्टार्टअप्स ने लाखों व्यक्तियों को रोजगार प्रदान किया है।
एक अध्ययन के अनुसार, महिला नेताओं द्वारा संचालित व्यवसाय अधिक कुशलता से चलते हैं और पुरुषों के नेतृत्व वाले व्यवसायों की तुलना में समान रूप से मजबूत परिणाम उत्पन्न करते हैं। भारत सरकार ने महिलाओं के उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में कई योजनाएं और पहल शुरू की हैं। बैन एंड को के हालिया अध्ययन के अनुसार, महिलाओं द्वारा संचालित व्यवसाय मुख्य रूप से एकल उद्यमियों द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं। इन उद्यमों का एक बड़ा हिस्सा लोगों को रोजगार प्रदान करता है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि महिला उद्यमी अधिक अनुकूलनीय होती हैं और परिवर्तनों के लिए तेजी से तैयार हो जाती हैं। साथ ही, महिला उद्यमियों का भावनात्मक बुद्धिमत्ता भी अधिक होता है।
इंस्टामोजो द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, महिला उद्यमियों का एक बड़ा हिस्सा 20-30 वर्ष की आयु के बीच अपना व्यवसाय शुरू करता है। इसके अलावा, भारतीय महिला उद्यमियों का एक हिस्सा सह-संस्थापक के रूप में भी कार्य करता है। वैश्विक महामारी से पहले ही, भारत में महिलाओं द्वारा संचालित ऑनलाइन व्यवसायों में तेजी देखी गई। महामारी के दौरान, महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स की संख्या में भारी वृद्धि हुई, जिसने भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत बनाया। डीपीआईआईटी द्वारा पंजीकृत महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स का एक बड़ा हिस्सा आईटी उद्योग में है, जो सबसे बड़ा क्षेत्रीय समूह बनाता है। डिजिटलीकरण और इंटरनेट ने महिलाओं को पारंपरिक बाधाओं को पार कर वैश्विक बाजारों तक पहुंचने में सक्षम बनाया है।
सामाजिक उद्यमिता भी गति पकड़ रही है, जहां महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सतत विकास के क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, MSME मंत्रालय के उद्यम पंजीकरण पोर्टल पर महिलाओं द्वारा संचालित MSME की हिस्सेदारी 20.5% है। इन इकाइयों ने कुल रोजगार सृजन में 18.73% और कुल निवेश में 11.15% का योगदान दिया है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की 2023 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि 69% ऋण खाते महिलाओं के हैं। भारत में 2023 तक 100 से अधिक यूनिकॉर्न बन चुके हैं, जिनमें से 10-15% महिला सह-संस्थापकों के नेतृत्व में हैं। नायका की फाल्गुनी नायर, अपग्रेड की रूचि सोनी, मोबीक्विक की उपासना ताकू जैसी उद्यमी किशोरियों और युवतियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
महिला उद्यमिता की पूरी क्षमता को साकार करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। वित्तीय पहुंच, कौशल विकास और अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण से महिलाओं को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी। महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन न केवल सामाजिक न्याय का विषय है, बल्कि यह भारत के समग्र और सतत विकास के लिए एक रणनीतिक आवश्यकता भी है। महिलाओं की भागीदारी से भारत अधिक समान और समृद्ध भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है।