2017 के आंकड़ों के मुताबिक भारत की 28.6 प्रतिशत वयस्क आबादी तंबाकू का उपयोग कर रही है। इसकी वजह से सालाना 13 लाख मौतें हो रही हैं और देश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा बोझ पड़ रहा है। तंबाकू हमारी सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) पर एक प्रतिशत से ज्यादा का बोझ अकेले डाल रहा है। पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की सदस्य डॉ. शमिका रवि की हाल की रिपोर्ट ‘चेंजेज इन इंडियाज फूड कंजप्शन एंड पॉलिसी इंप्लीकेशंस’ बताती है कि तंबाकू जैसे आदत पैदा करने वाले पदार्थों पर प्रति परिवार खर्च पिछले एक दशक में बढ़ा है। यह सरकार के लिए चिंता का विषय है।
दुनियाभर के अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि तंबाकू के उपयोग को कम करने के लिए करों को बढ़ाना बहुत प्रभावी और उपयोगी कदम है। तंबाकू उत्पादों पर चार तरह के कर लगते रहे हैं। जीएसटी, राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क (एनसीसीडी), केंद्रीय उत्पाद शुल्क और कंपंसेशन सेस। जीएसटी व्यवस्था के शुरू होने पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क को जीएसटी में समाहित कर दिया गया था। 2019-20 के बजट में इस बहुत कम दर पर दुबारा शुरू किया गया। लेकिन यह दर इतनी कम है कि सिगरेट पर कुल टैक्स में उत्पाद शुल्क का हिस्सा पहले जहां 54त्न था, अब सिर्फ 8त्न रह गया है। इसी तरह बीड़ी पर 17त्न से घट कर 1त्न और चबाने वाले तंबाकू उत्पादों पर 59त्न से घट कर 11त्न हो गया।
जीएसटी लागू होने के पहले जहां राज्य और केंद्र सरकारें बजट में तंबाकू उत्पादों पर कर बढ़ाती रहती थीं, जीएसटी लागू होने के बाद एक तो तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ोतरी थम गई और दूसरी तरफ क्रमिक रूप से प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी होती रही। इस तरह तंबाकू उत्पाद खरीदना लोगों के लिए ज्यादा आसान होता गया। कई अध्ययन बताते हैं कि दूसरे उपभोक्ता उत्पादों के मुकाबले तंबाकू उत्पादों की मूल्य बढ़ोतरी कम हुई है।
यह बात सही है कि कारोबारी सुगमता के लिए टैक्स स्लैब सीमित रहें, लेकिन नुकसानदेह चीजों यानी ‘सिन गुड्स’ के लिए अलग से एक दर बनाया जाना बहुत उपयोगी है। जहां दूसरी दरें सैकड़ों तरह की चीजों पर लागू होती हैं, ‘सिन गुड्स’ पर लगने वाली विशेष दर कुछ सीमित तरह के नुकसान पहुंचाने वाले उत्पादों के लिए ही लागू होगी। ऐसे प्रगतिशील और समाज उपयोगी कदम हमारी अर्थव्यवस्था को प्रगति की राह पर ले जाएंगे और संतुलित विकास का रास्ता प्रशस्त करेंगे।