कुवैत भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता है और भारत की कुल ऊर्जा जरूरतों का तीन प्रतिशत हिस्सा कुवैत से आता है। 2023-2024 में दोनों देशों के बीच व्यापार 10.479 अरब डॉलर का रहा। भारत का कुवैत में निर्यात 2.1 अरब डॉलर का रहा और इसमें सालाना 34.78 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2022 में भारत ने कुवैत से 15 अरब डॉलर के कच्चे तेल, गैस और पेट्रोकेमिकल उत्पादों का आयात किया था। भारत, कुवैत का छठा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक है। कुवैत की कुल 43 लाख की आबादी में 10 लाख से ज़्यादा भारतीय हैं और यहाँ के कुल श्रमिकों में 30 प्रतिशत भारतीय हैं। ये प्रवासी भारतीय कुवैत के विभिन्न क्षेत्रों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक निर्माण, स्वास्थ्य सेवा और इंजीनियरिंग में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। कुवैत से भारतीय नागरिक हर साल तीन अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की धनराशि भारत भेजते हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है।
पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव, खासकर “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” (BRI) और सैन्य सहयोग के माध्यम से, क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक चुनौती बन गया है। हाल ही में भारत और कुवैत के बीच हुए समझौतों ने चीन के इस प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। रक्षा सहयोग के तहत, भारत और कुवैत ने संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण और भारत से सैन्य उपकरणों की आपूर्ति के लिए सहयोग बढ़ाने की योजना बनाई है। यह सहयोग न केवल कुवैत की सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि क्षेत्र में भारत की सैन्य उपस्थिति को भी बढ़ाएगा, जो चीन की सैन्य सक्रियता को चुनौती देगा। इसके अलावा, भारत ने कुवैत के साथ रक्षा अनुसंधान और विकास (R&D) में साझेदारी की संभावनाएं तलाशनी शुरू की हैं। यह कुवैत के निवेश और भारत की विशेषज्ञता का समायोजन कर सकता है, जिससे दोनों देशों को समान लाभ मिलेगा।
कुवैत में भारतीय समुदाय, जिसकी संख्या कुल आबादी का 21 प्रतिशत है, दोनों देशों के रिश्तों में एक अहम कड़ी है। इनमें से अधिकांश प्रवासी स्वास्थ्य सेवा, औद्योगिक निर्माण और इंजीनियरिंग के क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। कुवैत के स्वास्थ्य मंत्रालय में भी बड़ी संख्या में भारतीय डॉक्टर और पैरामेडिक्स अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कुवैत के शासक वर्ग ने भारतीय समुदाय की प्रशंसा करते हुए उन्हें ‘कुवैत के विकास का अभिन्न हिस्सा’ बताया है। भारत और कुवैत के बीच सामूहिक प्रयासों से इस प्रवासी समुदाय का सामर्थ्य और बढ़ सकता है, क्योंकि यह समुदाय न केवल आर्थिक योगदान करता है, बल्कि यह सांस्कृतिक रूप से भी दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत करता है। भारत से कुवैत आने वाले भारतीय कर्मचारियों और कामकाजी पेशेवरों के लिए बेहतर अवसरों का निर्माण भी कुवैत-भारत संबंधों को बढ़ावा देगा।
भारत और कुवैत के बीच आर्थिक सहयोग में भी तेजी आई है। पहली बार कुवैत के लिए भारत का निर्यात दो अरब डॉलर तक पहुंचा है। साथ ही, भारत में कुवैत निवेश प्राधिकरण का निवेश 10 अरब डॉलर से अधिक हो गया है। यह दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को एक नई ऊंचाई पर ले जाता है। कुवैत में भारत के साथ व्यापारिक संबंधों में बढ़ोतरी चीन की “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” जैसी परियोजनाओं के लिए एक चुनौती साबित हो सकती है। कुवैत और भारत के बढ़ते व्यापारिक संबंध कुवैत के विकास में भारतीय तकनीकी विशेषज्ञता और व्यावसायिक कौशल का समावेश करेंगे, जबकि चीन की परियोजनाओं की भूमिका कम हो सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ऐसे समय में हुई, जब पश्चिम एशिया गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा था। सीरियाई संकट, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष और लेबनान में अशांति जैसे मुद्दे इस क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित कर रहे थे। गाजा में युद्धविराम समझौते के लिए हो रही प्रगति ने इस क्षेत्र में शांति की उम्मीदें जगाई थीं। ऐसे में भारत और कुवैत के बीच बढ़ते संबंध इस क्षेत्र में भारत की स्थिरता बनाए रखने की भूमिका को और प्रबल करेंगे। भारत के लिए कुवैत जैसे ऊर्जा-समृद्ध देश के साथ यह साझेदारी बेहद लाभकारी सिद्ध हो सकती है, क्योंकि यह न केवल ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करेगी, बल्कि खाड़ी क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी संतुलित करेगी। प्रधानमंत्री मोदी की कुवैत यात्रा ने यह साबित किया कि भारत और कुवैत की रणनीतिक साझेदारी पश्चिम एशिया में स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने में एक निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी की कुवैत यात्रा ने भारत-कुवैत संबंधों को मजबूती प्रदान की है और चीन के प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के साथ-साथ भारत की सॉफ्ट पावर, रक्षा क्षमताओं और क्षेत्रीय नेतृत्व को भी बढ़ावा दे रही है। यदि इन समझौतों को दीर्घकालिक रणनीति के साथ आगे बढ़ाया जाए, तो यह न केवल भारत-कुवैत संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाएगा, बल्कि पश्चिम एशिया में भारत की स्थिर और प्रभावशाली उपस्थिति को भी सुनिश्चित करेगा।