Chhattisgarh 36 Temple: धर्म का गढ़ छत्तीसगढ़..
वही छत्तीसगढ़ को धर्म का गढ़ भी कहा जाता है। वही बता दें कि यह नाम छत्तीसगढ़ के करीब 300 साल पहले गोंड
जनजाति के शासन के दौरान मिला था। गोंड राजाओं के 36 किले थे। किलों को गढ़ भी कहते हैं। इस लिहाज से कहा जाता है कि इस कारण राज्य का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। लेकिन छत्तीसगढ़ को छत्तीसगढ़ क्यों कहा जाता है इसके पीछे कई मत हैं। तो आइये जानते है…
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छत्तीसगढ़ को छत्तीसगढ़ कहलाने की पीछे की कहानी काफी रोचक और दिलचस्प है। बता दें छत्तीसगढ़ को अलग अलग काल में अलग-अलग नाम से बुलाया गया है, जैसे मसलन, रामायण काल में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोशल कहा जाता था वहीँ वाल्मीकि रामायण में इसका जिक्र उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल के रूप में भी जाना जाता है। कालिदास के युग में अवध को उत्तर कोशल और
छत्तीसगढ़ को कौशल कहा जाता था। इसी कौशल क्षेत्र से राम की मां और उत्तर कौशल के राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या आती हैं। जिसके चलते छत्तीसगढ़ को भगवान श्रीराम का ननिहाल भी कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ का नाम मराठा काल में भी काफी लोकप्रिय
वैसे आप सभी को तो पता ही होगा की छत्तीस यानी 36 और गढ़ अर्थात किला या फोर्ट भी कहा जाता है। इसी कारण से छत्तीसगढ़ राज्य को छत्तीसगढ़ के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें की छत्तीसगढ़ का नाम मराठा काल में भी काफी लोकप्रिय हुआ करता था और पहली बार 1795 में अंग्रेजों के एक आधिकारिक दस्तावेज में
छत्तीसगढ़ शब्द का इस्तेमाल किया गया था। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ देवी मंदिर के 36 स्तंभों से इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा है। तो आइये जानते है छत्तीसगढ़ देवी मंदिर के 36 स्तंभों के बारे में…
छत्तीसगढ़ देवी मंदिर के 36 स्तंभों की कहानी…
- मां बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़ ( राजनांदगांव )
डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ राज्य में राजनांदगांव जिले का एक शहर और नगर पालिका है तथा माँ बांम्बलेश्वरी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है । राजनांदगांव जिले में एक प्रमुख तीर्थ स्थल, शहर राजनांदगांव से लगभग 35 किमी पश्चिम में स्थित है, दुर्ग से 67 किलोमीटर पश्चिम और भंडारा से 132 किलोमीटर पूर्व में राष्ट्रीय
राजमार्ग 6 पर स्थित है ।
- करेला भवानी मंदिर करेला (राजनांदगांव)
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में बसे एक छोटे से गाँव करेला की गोद में स्थित है माँ करेला भवानी का पवित्र मंदिर। यह मंदिर देवी दुर्गा के एक दिव्य अवतार, माँ करेला भवानी को समर्पित है, जो श्रद्धालुओं के बीच आस्था और शक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं।
- पताल भैरवी मंदिर राजनांदगांव
बरफानी धाम छत्तीसगढ़ में राजनंदगांव शहर में एक मंदिर है। मंदिर के शीर्ष पर एक बड़ा शिव लिंग देखा जा सकता है, जबकि इसके सामने एक बड़ी नंदी प्रतिमा खड़ी है। मंदिर तीन स्तरों में बनाया जाता है। नीचे की परत में पाताल भैरवी का मंदिर है, दूसरा नवदुर्गा या त्रिपुर सुंदरी मंदिर है और ऊपरी स्तर में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की प्रतिमा है।
- चंडीमाता मंदिर बागबहारा (महासमुंद)
चंडी देवी मंदिर नील पर्वत पर स्थित है और हरिद्वार से 4 किमी की खड़ी चढ़ाई या रोपवे द्वारा पहुँचा जा सकता है जिसे चंडी देवी उड़नखटोला के नाम से भी जाना जाता है।
- खल्लारी माता मंदिर भीमखोज (महासमुंद)
खल्लारी माता मंदिर महासमुंद के खल्लारी गांव में पहाड़ी के ऊपर स्थित है, जो महाभारत काल में पांडवों के यात्रा के दौरान उनके ठहरने का स्थल माना जाता है। यह मंदिर भीमखोज के नाम से भी जाना जाता है, जो पांडवों के शक्तिशाली सदस्य भीम के पदचिन्हों के कारण है। मंदिर में क्वांर और चैत्र नवरात्र के दौरान भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है। हर साल चैत्र पूर्णिमा को यहां वार्षिक मेला भी आयोजित किया जाता है।
- मुंगई माता मंदिर बावनकेरा (महासमुंद)
मुंगेई माता मंदिर, जिसे भालू मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में बावनकेरा के पास स्थित है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और देवी मुंगेई माता को समर्पित है। मंदिर की खास बात यह है कि यहां भालू भी माता के दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर धार्मिक और प्राकृतिक दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
- चंडी माता मंदिर बिरकोनी (महासमुंद)
कहा जाता है कि पांडवों ने अपने 12 साल के वनवास के दौरान यहां ठहराव किया था और अर्जुन ने चंडी माता की तपस्या की थी। तपस्या से खुश होकर माता चंडी ने अर्जुन को तेजस्वी तलवार और जीत का वरदान दिया था, जिसके बाद पांडवों ने महाभारत के युद्ध में विजय हासिल की थी।
- बुढ़ी माई मंदिर रायगढ़
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में तराईमाल रोड पर स्थित बूढ़ी माई मंदिर और मां बंजारी का प्रसिद्ध देवी मंदिर है। यहां साल भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
- चंद्रहासिनी मंदिर चंद्रपुर (जांजगीर चांपा)
महानदी के तट पर चन्द्रहासिनी देवी माता का एक अद्भुत मंदिर है। नवरात्रि के समय यहॉ भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। साथ ही यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहॉ अन्य राज्यों जैसे ओडिसा से भी लोग आते है। यह एक पवित्र स्थान है व पर्यटन स्थल के रूप में दिन ब दिन अपनी ख्याति बना रहा है।
- नाथलदाई मंदिर चंद्रपुर (जांजगीर चांपा)
प्रदेश के नवनिर्मित जिला सक्ती के चंद्रपुर में महानदी के तट पर स्थित मां चंद्रहासिनी का मंदिर एक प्राचीन और सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यह रायगढ़ व सारंगढ़ से लगा हुआ है। यह मंदिर मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होने की मान्यता है।
- बंजारी माता मंदिर रायपुर
रायपुर अवलोकन बंजारा माता मंदिर के मंदिर निस्संदेह इसकी विशेषता हैं। देवी बंजारी माता को समर्पित यह पवित्र स्थान दशहरा और नवरात्रि त्योहारों के दौरान कार्यक्रमों की मेजबानी के लिए प्रसिद्ध है।
- बंजारी माता मंदिर खपरी मड़ी रायपुर
बंजारी माता मंदिर रायपुर में स्थित खपरी मड़ी में है। यह देवी बंजारी माता को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो छत्तीसगढ़ के राजगढ़ शहर में स्थित है।
- महामाया मंदिर रतनपुर बिलासपुर
महामाया मंदिर भारत के छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित देवी दुर्गा, महालक्ष्मी को समर्पित एक मंदिर है और पूरे भारत में फैले ५२ शक्ति पीठों में से एक है, जो दिव्य स्त्री शक्ति के मंदिर हैं।
- मरही माता मंदिर भवरकंटक बिलासपुर
मरही माता मंदिर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में भनवारटंक नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर बिलासपुर-कटनी रेलवे लाइन के खोंगसरा और खोडरी रेलवे स्टेशन के बीच स्थित है। मंदिर की मान्यता है कि यह माता की महिमा है, और यहाँ पहुंचने वाली ट्रेनें अपनी गति धीमी कर लेती हैं।
- दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा (बस्तर )
दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में स्थित है। यह देवी दंतेश्वरी को समर्पित है और 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. माना जाता है कि देवी सती का एक दांत यहां गिरा था, जिससे इस मंदिर का नाम दंतेश्वरी पड़ा. मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित है।
- अंगार मोती माता मंदिर धमतरी
धमतरी में स्थित अंगार मोती मंदिर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल और धार्मिक तीर्थ स्थल है। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है, जो यहाँ पूजा करने और आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं।
- बिलाई माता मंदिर धमतरी
मंदिर के संदर्भ में दो जनश्रुति प्रचलित है। पहली जनश्रुति के अनुसार मूर्ति की उत्पत्ति धमतरी के गोड़ नरेश धुरूवा के काल की है। दूसरी कांकेर नरेश के शासनकाल उनके मांडलिक के समय की है। जहां देवी का मंदिर है, वहां कभी घना जंगल था।
- जतमई माता मंदिर गरियाबंद
गरियाबंद में रायपुर से 85 किमी की दूरी पर स्थित है। एक छोटा सा जंगल के खूबसूरत स्थलों के बीच सेट, जतमई मंदिर माता जतमई के लिए समर्पित है। मंदिर खूबसूरती से कई छोटे शिखर या टावरों और एक एकल विशाल टॉवर के साथ ग्रेनाइट के बाहर खुदी हुई है।
- घटारानी माता मंदिर गरियाबंद
घटारानी माता मंदिर गरियाबंद जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर जतमई मंदिर के साथ स्थित है, जो दोनों ही प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाने जाते हैं। इस मंदिर के पास ही एक झरना भी है जो इसे और भी आकर्षक बनाता है. यह मंदिर रायपुर से 87 किलोमीटर की दूरी पर है।
- कुदरगढ़ी माता मंदिर सूरजपुर
कुदरगढ़ी माता मंदिर, छत्तीसगढ़ राज्य के सूरजपुर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर कुदरगढ़ में स्थित है, जो सूरजपुर जिले का मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर है. यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है, और मंदिर तक पहुँचने के लिए लगभग 800 सीढ़ियाँ हैं.
- महामाया माता मंदिर सूरजपुर
कुदरगढ़ी माता मंदिर, छत्तीसगढ़ राज्य के सूरजपुर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर कुदरगढ़ में स्थित है, जो सूरजपुर जिले का मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है, और मंदिर तक पहुँचने के लिए लगभग 800 सीढ़ियाँ हैं।
- खुड़िया रानी मंदिर जशपुर
खुड़िया रानी देवी धाम छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के बगीचा क्षेत्र में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर गुफा के अंदर स्थित है और यहां डोकरी नदी के किनारे 400 सीढ़ियां उतरने के बाद पहुंचा जा सकता है। गुफा के अंदर मां खुड़िया रानी की प्राकृतिक मूर्ति स्थापित है।
- मड़वा रानी माता मंदिर कोरबा
माँ मड़वारानी-परिचय. माँ मड़वारानी मंदिर, छत्तीसगढ ऱाज्य के कोरबा जिले में स्थित प्रसिद्ध मंदिर है एवं यहाँ के मूल निवासियों के द्वारा माँ मड़वारानी की आराधना की जाती है और उनके श्रद्धा एवं आस्था का प्रतीक हैं और यह माना जाता है की माँ …
- सर्वमंगला माता मंदिर कोरबा
सर्वमंगला माता मंदिर, जो कि कोरबा जिले में स्थित है, एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है और इसे कोरबा के जमींदार राजेश्वर दयाल के पूर्वजों द्वारा बनाया गया था। मंदिर को त्रिलोकिननाथ मंदिर, काली मंदिर और ज्योति कलाश भवन के साथ-साथ एक गुफा से भी जुड़ा हुआ है, जो नदी के नीचे से होकर दूसरी तरफ निकलती है।
- महिसासुर मर्दानी माता मंदिर चैतुरगढ़ कोरबा
चैत्र नवरात्रि में पूरा देश भक्तिमय हो गया है. छत्तीसगढ़ में भी देवी की आराधना की जा रही है. देवी के मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ी है.डोंगरगढ़ से लेकर दंतेश्वरी तक महामाया से लेकर चंद्रहॉसिनी मंदिर तक जहां देखों माता के भक्त नजर आ जाएंगे। आज हम आपको चैतुरगढ़ की महारानी के दर्शन कराने जा रहे हैं. जो महिषासुर मर्दनी नाम से भी जानी जाती हैं।
- महामाया मंदिर कवर्धा
कवर्धा जिले में महामाया मंदिर एक प्रसिद्ध देवी मंदिर है। यह कवर्धा के डोंगरिया में स्थित है और आसपास के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है। मंदिर में हर साल चैत्र और क्वांर नवरात्री में श्रद्धालुओं द्वारा मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कराए जाते हैं। लालबाबा, जो कमल तिवारी महाराज के नाम से जाने जाते हैं, 40 वर्षों से मंदिर में पूजा-सेवा में लीन हैं।
- मां शक्ति मंदिर शक्तिघाट बेमेतरा
शक्ति मंदिर की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी, जो शहर के निवासियों की सामूहिक इच्छा से पैदा हुआ था कि दुर्गा देवी के लिए एक समर्पित स्थान बनाया जाए । निर्माण 1974 में शुरू हुआ और 1982 में मंदिर के दरवाजे भक्तों की भीड़ के लिए खुल गए।
- सिद्धी माता मंदिर बेमेतरा
ग्राम सण्डी स्थित सिद्धि माता मंदिर में होली के अवसर पर होने वाली पशु बलि पर रोक लगा दी गई है। साथ ही इस वर्ष यहां भरने वाला मेला भी नहीं होगा। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते इसकी समझाइश ग्रामीणों को दी गई है।
- सीया देवी माता मंदिर बालोद
बालोद-गुरुर मार्ग पर साकरा गांव से 25 किमी. दूर नारा गांव की पहाड़ी पर सिया देवी माता का मंदिर है। यदि आप कभी यहां जाएं तो वापस लौटने की इच्छा नहीं होगी।
- गंगा मैया मंदिर बालोद
गंगा मैया मंदिर छत्तीसगढ़ की बालोद तहसील में बालोद-दुर्ग रोड के पास झलमला में स्थित है|यह ऐतिहासिक महत्व वाला धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का एक गौरवशाली आनंद और बहुत ही करामाती इतिहास है।
- अष्टभुजी माता मंदिर अड़बहार जांजगीर चांपा
अष्टभुजा माता मंदिर सक्ती जिले के मालखरौदा तहसील के अड़भार में स्थित है। यह एक ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिर है। यह भारत के चुनिंदा दक्षिणमुखी काली मंदिरों में से एक है।
- बंजारी माता मंदिर रायगढ
रायगढ़ में बंजारी माता मंदिर, तराई माल गांव में स्थित है, जहाँ देवी बंजारी की पूजा की जाती है। यह मंदिर बंजारों के नाम पर है, जो पहले यहाँ रहते थे और जिन्होंने देवी की प्रतिमा स्थापित की थी।
- अंबेटिकरा माता मंदिर धर्मजयगढ़ रायगढ़
अंबे टिकरा माता मंदिर धरमजयगढ़ में स्थित है, जो रायगढ़ जिले में है। यह मंदिर मांड नदी से लगभग 200 मीटर की दूरी पर है और दुर्गा माता को समर्पित है। मंदिर का निर्माण 1930 में हुआ था। मंदिर में गणेश जी और हनुमान जी की 30 फीट ऊंची प्रतिमाएं भी हैं।
- हिंगलाज माता (जेवरा दाई ) मंदिर देव सागर बलौदा बाजार
हिंदुओं का मानना है कि देवी सती का सिर हिंगलाज माता के क्षेत्र में गिरा था जब भगवान विष्णु ने उनके शरीर को खंडित किया था और यह हिंदुओं के लिए एक पूजनीय तीर्थ स्थल बना हुआ है। स्थानीय मुसलमान भी इस स्थान को नानी मंदार कहते हैं और गुफा मंदिर के संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं। इस क्षेत्र को 1988 में आरक्षित घोषित किया गया था।
- कौशल्या माता मंदिर चंद्रखुरी रायपुर (राम वन गमन मार्ग)
छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल भी कहा जाता है. भगवान राम की माता कौशल्या की जन्मस्थली छत्तीसगढ़ की चंदखुरी है. चंदखुरी में माता कौशल्या का मंदिर भी है, जिसमें माता कौशल्या अपनी गोद में भगवान राम को लिए हुए हैं।
- गंगई माता मंदिर गण्डई राजनांदगांव
नगर की अधिष्ठात्री देवी मां गंगई देवी मंदिर गंडई में चैत्र नवरात्रि पर्व पर मनोकामना ज्योत कलश प्रज्ज्वलित करने के लिए पंजीयन प्रारंभ हो गया है। इस बार चैत्र नवरात्रि का पर्व 9 अप्रैल से प्रारंभ होगा।