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रायपुर

Father’s Day: जब खून से सने हाथों से पिता ने बेटे से मांगी माफी, कहा- पापा ने सिखाया द्वंद से लड़ने का मौन तरीका

Fathers day: पिता हमेशा अपने जज्बातों को चेहरे के पीछे छुपाकर रखते हैं, लेकिन उनके किए गए त्याग, दी गई सीख और निभाई गई जिम्मेदारियां, उम्रभर हमारी आत्मा का हिस्सा बन जाती हैं..

रायपुरJun 15, 2025 / 11:46 am

चंदू निर्मलकर

Fathers day special story of raipur
ताबीर हुसैन. हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे (Father’s Day) मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य उस शख्स को याद करना है, जो खुद की नींद, जरूरतें, और भावनाएं भुलाकर परिवार की रीढ़ बनकर खड़ा रहता है। पिता हमेशा अपने जज्बातों को चेहरे के पीछे छुपाकर रखते हैं, लेकिन उनके किए गए त्याग, दी गई सीख और निभाई गई जिम्मेदारियां, उम्रभर हमारी आत्मा का हिस्सा बन जाती हैं। इस फादर्स डे पर दो लोगों ने अपने जीवन के ऐसे अनुभव साझा किए, जिन्होंने उन्हें पिता की गहराई समझाई। एक घटना में खून से सने हाथों से मांगी गई माफी और दूसरी में द्वंद से लड़ने का मौन तरीका।

Father’s Day: ट्रेन का वह सफर जब खून से सने हाथों से पापा ने सॉरी कहा

फाइनेंस एडवाइजर प्रांजल कामरा जब करीब साढ़े चार साल के थे, एक रेल यात्रा उनके मन में हमेशा के लिए दर्ज हो गई। वे बताते हैं हम ग्वालियर जा रहे थे। स्लीपर कोच की साइड बर्थ पर मैं पापा की गोद में लेटा था। ठंड लगी तो पापा ने पूछा—खिड़की गिरा दूं? उन्होंने खिड़की गिरानी शुरू ही की थी कि मुझे बाहर कुछ चमकता नजर आया और मैंने बीच में हाथ डाल दिया। शीशे की खिड़की मेरी उंगलियों पर गिर गई। मैं जोर से रो पड़ा।
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पापा की माफी और दर्द मेरी आत्मा में दर्ज

पापा ने उसी क्षण शीशा उठाया और लोहे की खिड़की बंद करते हुए जानबूझकर अपना हाथ नीचे रख दिया। उनकी चारों उंगलियों से खून बहने लगा। वे खून से सने हाथों से मुझे ‘सॉरी’ कहते जा रहे थे। वह पल मेरी जिंदगी में अमिट है। प्रांजल कहते हैं, आज 28 साल हो गए हैं लेकिन पापा की वह माफी और दर्द अब भी मेरी आत्मा में दर्ज है। मैंने उनसे ही सीखा कि अपनों को सुरक्षित रखने के लिए खुद को पीछे रखना पड़ता है। जीवन में हर बड़ा फैसला लेने से पहले यही सोचता हूं क्या इससे पापा को दुख तो नहीं होगा?
Fathers day Special story
एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गोवर्धन भट्ट

बापू फिलॉसफर थे हमारे लिए, द्वंद्व का समाधान भी वही

एनआईटी रायपुर में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गोवर्धन भट्ट के पिता उनके लिए शब्दों से नहीं, अनुभवों से समझ आने वाले दार्शनिक थे। वे बताते हैं, बापू ने सिखाया कि जीवन सबसे महत्वपूर्ण है, हर जीव में करुणा देखो। वे कहते थे एक ब्राह्मण को भिखारी की तरह विनम्र होकर जीना चाहिए। उनके पिता ने बहुत कुछ सहा था। महज पांच साल के थे जब अपने पिता को खो दिया। तब से जिम्मेदारियों का बोझ उठा रहे थे। फिर भी मन में शांति और चेहरों पर मुस्कान बनाए रखी।
मैं हमेशा उनसे पूछता था कि आप इतने शांत कैसे रहते हैं? तो जवाब होता, एक अदृश्य शक्ति तुहारे साथ है, उसी पर ध्यान दो, सारे द्वंद्व खत्म हो जाएंगे।’ डॉ. भट्ट कहते हैं, हम उनसे कम बोल पाते थे, पर जब भी बोलते, जीवन की कोई नई परिभाषा सीखकर उठते थे।

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