राजधानी रायपुर की ही बात करें, तो इतिहासकारों के अनुसार 15वीं से 18वीं सदी के मध्य 300 से ज्यादा तालाब थे। क्षेत्रफल की दृष्टि से देखें तो तब का रायपुर, आज के रायपुर का एक चौथाई ही रहा होगा। अस्सी-नब्बे के दशक तक भी रायपुर में 200 से ज्यादा तालाब थे। वर्तमान में रायपुर में 126 तालाब ही बचे हैं। यह स्थिति तब है, जबकि रायपुर नगर निगम की सीमा में 65 से 70 गांव शामिल हो चुके हैं यानी कि इन गांवों में अगर एक तालाब भी रहा होगा तो रायपुर में तालाबों की संख्या बढ़ जाना चाहिए थी। पर ऐसा हुआ नहीं। भूमाफियाओं की कुदृष्टि भूजल के स्तर को बनाए रखने वाली इस जल संरचना पर पड़ी और शहरीकरण की दौड़ में शामिल रायपुर में धीरे-धीरे करके तालाबों की हत्या होनी शुरू हो गई यानी कि तालाबों को पाटकर प्लॉटिंग होने लगी और इमारतें तनने लगीं। ऐसी स्थिति प्रदेश के सभी शहरों की हो गई है।
पिछले दिनों राजधानी रायपुर में एक कार्यशाला हुई, जिसमें भूजल संवर्धन मिशन (शहरी) का शुभारंभ किया गया। कार्यशाला में हाइड्रोलॉजिस्ट्स, कॉलोनाइजर्स, उद्योग समूह और विभिन्न सरकारी विभागों ने भूजल और वर्षा जल के प्रभावी संवर्धन पर कई घंटे तक मंथन और संवाद किया। इसमें बारिश के पानी को व्यर्थ बहने से रोक कर इसका उपयोग जलस्तर को रिचार्ज करने पर जोर दिया गया। साथ ही उपयोग किए हुए पानी के रिसायकल और रियूज पर भी जोर दिया गया। भू-वैज्ञानिकों ने बताया कि यदि हम 30 प्रतिशत वर्षा जल को भी हार्वेस्ट कर लें तो रायपुर में पानी की दिक्कत ही नहीं होगी। कार्यशाला में मंथन से निकले इस ‘अमृत’ पर गंभीरता से कार्य करते हुए जलसंरचनाओं यानी कि तालाबों-कुओं का निर्माण और इमारतों में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, जोकि अनिवार्य है, बनाने के साथ ही मॉनिटरिंग भी की जाए।
– अनुपम राजीव राजवैद्य anupam.rajiv@epatrika.com