गुलेल बना हरियाली का यंत्र
संसाधनों की कमी कभी इन महिलाओं के रास्ते की दीवार नहीं बन सकी। जब मुश्किल भरे दुर्गम पहाड़ी इलाकों तक बीज पहुंचाना मुश्किल हुआ, तो उन्होंने गुलेल को हथियार नहीं, बल्कि हरियाली का यंत्र बना लिया। ये महिलाएं गुलेल से बीज बॉल्स को दूर तक फेंकती हैं, ताकि बीज जम सकें। कहीं-कहीं गड्ढा खोदकर बीज को मिट्टी के अंदर भी डाल देती हैं, ताकि नमी मिलने पर अंकुरण आसानी से हो जाए और हरियाली दूर-दूर तक फैल सके।
हरियाली आंदोलन बना जिले की पहचान
देवगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता भावना पालीवाल ने सात साल पहले सीड बॉल्स का यह आंदोलन शुरू किया था। आज यह केवल एक अभियान नहीं, बल्कि राजसमंद जिले की पहचान बन चुका है। करियर महिला मंडल देवगढ़, करियर संस्थान राजसमंद और माय भारत राजसमंद के सहयोग से शुरू हुए इस अभियान के तहत अब तक दो लाख से अधिक बीज बॉल्स का छिड़काव किया जा चुका है।
केन्या से देवगढ़ तक पहुंचा हरियाली का मंत्र
सीड बॉल्स की यह तकनीक पालीवाल को अफ्रीका के केन्या से प्रेरणा के रूप में मिली। वहां इस तकनीक से हजारों हेक्टेयर भूमि पर हरियाली लौटाई जा चुकी है। पारंपरिक पौधारोपण की तुलना में सीड बॉल तकनीक सस्ती भी है और असरदार भी। एक बीज बॉल की औसत लागत मात्र 2 रुपये है और इसकी सफलता दर करीब 70 प्रतिशत तक है। अब राजसमंद, आमेट, भीम, देवगढ़ और कुंभलगढ़ जैसे इलाकों में सीड बॉल्स की बदौलत हरी चादर लौट आई है। बीज बॉल्स में पीपल, बरगद, नीम, शीशम, जामुन, गुलमोहर, कचनार, केसिया और बबूल जैसे मजबूत और स्थानीय पौधों के बीज भरे जाते हैं, जो पहाड़ी और बंजर ज़मीन पर भी आसानी से पनप जाते हैं। सांसद महिमा कुमारी कहती हैं कि जब महिलाएं किसी अभियान से जुड़ती हैं तो वह केवल एक कार्यक्रम नहीं रहता, बल्कि समाज की संस्कृति में बदल जाता है।” बीज बॉल्स बनवाने से लेकर महिलाओं को प्रशिक्षण देने और छिड़काव के लिए सामग्री जुटाने तक हर कदम पर सांसद ने सक्रिय भूमिका निभाई है। भावना पालीवाल कहती हैं, “मानसून के दौरान बारिश होते ही इन बीज बॉल्स से अंकुरण शुरू हो जाता है। एक बार जब नन्हे पौधे जड़ पकड़ लेते हैं तो जंगल और पहाड़ अपने आप फिर हरे होने लगते हैं।”
महिलाओं के हाथों हर बरसात में खिलता है हरित सपना
हर साल जैसे ही काली घटाएं मंडराती हैं, देवगढ़ की ये महिलाएं घर के कामकाज से वक्त निकाल कर फिर जुट जाती हैं — बीज गूंथने, गुलेल से उन्हें दूर-दराज भेजने और मिट्टी में नई जान भरने में। आज ये महिलाएं खुद भी मुस्कुराती हैं और उनके गांव, उनकी पहाड़ियां और उनका जंगल भी। देवगढ़ का यह हरित आंदोलन इस बात का उदाहरण बन चुका है कि अगर इरादे मजबूत हों तो साधन कभी आड़े नहीं आते। ये महिलाएं हर बरसात अपने गांव की धरती को नए जीवन से सींचती हैं और आने वाली पीढ़ियों को हरियाली का उपहार देती हैं।