संसार में शांति नहीं है, इससे लगाव और इनसे अपेक्षा दुख का कारण है। स्कंद पुराण के अनुसार संसार के लोगों के लिए कितना भी कुछ कर दीजिए, मोती, माणिक्य और सुख दे दीजिए तो भी संसार के लोग कुछ न कुछ कहेंगे, यह दुनिया की रीति है। आप कितना भी सोच लें कि दुनिया में रहूं और मुझे यश मिले तो संभव नहीं है। यह अशांति देता है।
संपत्ति
संपत्ति सुख नहीं अशांति देती है। यह शांति नहीं देती है, जिसके पास कुछ नहीं है, रोड किनारे भी सुकून से सोता है और किसी के पास नौकर चाकर सब सुख संपत्ति है तो भी नींद नहीं आती है। इसलिए संपत्ति अशांति देती है। इसके लिए बहुत परेशान न हो, जीवन यापन भर के लिए संपत्ति है तो उसमें संतोष करो।
संबंध
पं. प्रदीप मिश्रा के अनुसार संबंधों में भी शांति नहीं है। परमात्मा की जगह संबंध संसार के लोगों से जितना जोड़ोगे तो जीवन सार्थकता नहीं प्राप्त कर सकता है। किसी के वचन कार्य से दुख प्राप्त होता है। परमात्मा से संबंध जोड़ने से शांति मिलती है।
स्वास्थ्य
स्वास्थ्य भी अशांति का कारण है। शरीर की कमजोरियों से पीड़ा और अशांति मिलती है। बीमारियों की चिंता कई और बीमारियों को जन्म देती है। इसलिए बीमारियों की चिंता न करो।
संतान
संतान से भी अत्यंत जुड़ाव के कारण उसके जरिये भी घर में अशांति आती है। संतान का व्यवहार और आचरण सही नहीं है तो घर में अशांति आती है। इसके अलावा संतान को ही कोई पीड़ा हो तो उसका असर पूरे घर पर पड़ता है। इसलिए संतान को अच्छे संस्कार दो, लेकिन बड़े होने के बाद उसको स्वतंत्र जीव मानकर उसके कर्म के लिए दुख करने की जगह सब कुछ परमात्मा पर छोड़ दो।