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संभल में मिली बावड़ी की दूसरे दिन की खुदाई जारी, जानिए क्या है इस इमारत की पूरी स्टोरी

उत्तर प्रदेश के संभल जिले के चंदौसी इलाके में शनिवार को राजस्व विभाग द्वारा की गई खुदाई के दौरान एक विशाल और प्राचीन बावड़ी का पता चला। दूसरे दिन की खुदाई में कई और चीजें सामने आई हैं। आइए आपको बताते हैं पूरा अपडेट।

सम्भलDec 22, 2024 / 05:02 pm

Prateek Pandey

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संभल जिले के चंदौसी इलाके में मिली लगभग 250 फीट गहरी इस बावड़ी से क्षेत्र में उत्सुकता का माहौल है। इसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की संरचना माना जा रहा है। इसकी खुदाई में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।

खुदाई में मिले कमरे और ढांचे

रविवार को खुदाई का कार्य दोबारा शुरू किया गया। डीएम डॉ. राजेंद्र पैंसिया और एसपी कृष्ण विश्नोई मौके पर मौजूद रहे। दो जेसीबी मशीनों और मजदूरों की मदद से खुदाई जारी रही। इस प्रक्रिया में चार कक्ष स्पष्ट रूप से सामने आए हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो यह बावड़ी तीन मंजिला है और इसमें 12 कमरे, कुआं और एक सुरंग है।
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बावड़ी का ऐतिहासिक महत्व

जिलाधिकारी राजेंद्र पैंसिया ने बताया कि खतौनी के रिकॉर्ड में यह जमीन बावली तालाब के रूप में दर्ज है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि यह बावड़ी बिलारी की रानी सुरेंद्र बाला देवी की रियासत का हिस्सा है। इस संरचना का दूसरा और तीसरा तल संगमरमर से बना है जबकि ऊपरी हिस्सा ईंटों से बना है। बावड़ी की उम्र लगभग 125-150 साल पुरानी आंकी जा रही है।

दो दिन की खुदाई और संरचना की स्थिति

दो दिन की खुदाई के दौरान करीब 210 वर्ग मीटर का क्षेत्र उजागर हुआ है। हालांकि इसके बाकी हिस्से पर अतिक्रमण है। मिट्टी हटाने का कार्य सावधानीपूर्वक किया जा रहा है ताकि संरचना को कोई नुकसान न पहुंचे। अब तक चार कमरे और एक कुआं साफ तौर पर दिखाई दे रहा है।
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शिकायत के बाद शुरू हुई खुदाई

यह खुदाई तब शुरू हुई जब डीएम को एक शिकायत पत्र मिला जिसमें लक्ष्मणगंज क्षेत्र में रानी की बावड़ी होने का दावा किया गया था। इस शिकायत के बाद जांच के आदेश दिए गए। नायब तहसीलदार धीरेन्द्र सिंह नक्शे के साथ इलाके में पहुंचे और खुदाई के दौरान प्राचीन इमारत के अवशेष पाए गए।
यह बावड़ी न केवल स्थानीय इतिहास को उजागर करती है बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजने का अवसर प्रदान करती है। स्थानीय निवासियों के अनुसार यह संरचना 1857 के आसपास की है और बिलारी के राजा के नाना के समय में बनाई गई थी।

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