अब तक 60-80 नेशनल प्लेयर्स
इस गांव से अब तक 80 नेशनल लेवल तक प्लेयर्स खेल चुके हैं। जिसके बाद ये गांव मध्य प्रदेश का ही नहीं, बल्कि भारत का मिनी ब्राजील कहलाने लगा। बता दें कि पीएम मोदी ने 2023 में मन की बात कार्यक्रम में भी मिनी ब्राजील बिचारपुर की तारीफ की थी। उन्होंने कहा था यहां घर-घर में रोनाल्डो और मैसी है, यहां मैच देखने 25 हजार लोग पहुंचते हैं। जो किसी छोटे स्टेडियम से कम नहीं है। तब पूरे देश की नजरे बिचारपुर पर आ थमी थीं। जबकि एक विदेशी पॉडकास्ट पर भी वे बिचारपुर के बारे में चर्चा कर चुके थे।
चुनौतियां अब भी सामने
इतनी प्रतिभा के बावजूद बिचारपुर गांव में आज भी खिलाड़ियों के खेलने के लिए ढंग का मैदान तक नहीं है। कोई स्थायी कोचिंग सुविधा नहीं है। सरकारी सहायता के नाम पर बस कुछ यूनिफॉर्म, कुछ जूते और कुछ फुटबॉल। कई प्लेयर्स आज भी पुराने जूतों में फुटबॉल खेलते पसीनों में भीगते हुए मिट्टी के मैदानों में खेलकर नेशनल लेवल तक पहुंच रहे हैं। लेकिन इंटरनेशनल का सपना अब भी कोसों दूर है। खिलाड़ी आस में हैं, सुविधाएं बढ़ें, तो प्रतिभा में और निखार आ जाएगा। हर खिलाड़ी का चेहरा उम्मीद से भरा कि दम तो है उनमें, पर कुछ है जो उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है। और वो है सरकारी मदद, समाज के लोगों की मदद।
कोच रईस खान के संघर्षों की जमीन पर उगे हैं भारत के रोनाल्डो और मैसी
एक दौर था जब बिचारपुर नशे की गिरफ्त में ऐसा जकड़ा था कि लोग उसके नाम से ही घबराते थे। लेकिन आज देश दुनिया जिसे बिचारपुर या मिनी ब्राजील के नाम से जानती है, वास्तव में वो फुटबॉल कोच रईस खान के संघर्षों की सफलता की कहानी है। कैसे उन्होंने घर-घर जाकर फुटबॉल खेलने के लिए बच्चों को प्रेरित किया। प्रतिभा ढूंढी नहीं बल्कि अपनी प्रैक्टिस से तराशी। बिना वेतन और बिना किसी सरकारी सहायता के उन्होंने बदनाम गांव को फुटबॉल मैदान का ‘गोल’ बना दिया। उनके सिखाए खिलाड़ी नेशनल टीम के लिए ट्रायल खेल चुके हैं और कई नेशनल टीम का हिस्सा भी बन चुके हैं। कुछ कोच बन गए हैं और यहीं ट्रेनिंग दे रहे हैं। वो खुद इंटरनेशनल नहीं खेल सके, लेकिन रईस खान की बनाई पगडंडी पर चलते हुए इंटरनेशनल खिलाड़ी तैयार करने का सपना बुन आगे बढ़ रहे हैं।
लड़कियां भी पीछे नहीं
कोच रईस खान बताते हैं कि जब उन्होंने फुटबॉल खेल को लेकर खिलाड़ियों को तैयार करना शुरू किया तब लड़के तो बहुत मिले, लेकिन कोई भी अपनी बेटियों को खेल के मैदान में भेजना नहीं चाहता था। लड़कियां भी फुटबॉल खेलें और गरीबी के दलदल से बाहर आएं, इसके लिए भी उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी, तब जाकर आज देखने को मिल रहा है कि बिचारपुर की लड़कियां भी फुटबॉल की नेशनल प्लेयर बन रही हैं। राज्य और जिला स्तरीय टूर्नामेंट में कई मैडल अपने नाम कर चुकी हैं। वहीं कई लड़कियां फुटबॉल को अपना करियर बनाने में भी नहीं हिचक रहीं।
2002 से बिचारपुर में ट्रेनिंग दे रहा हूं
2002 से बिचारपुर में फुटबॉल की ट्रेनिंग दे रहे पूर्व नेशनल खिलाड़ी और एनआईएस कोच रईस खान कहते हैं कि जब यहां आया था, उस समय यहां बहुत गरीबी थी। बच्चों की हालत बहुत ही खराब और दयनीय थी। ये गांव नशे गिरफ्त में था। फुटबॉल तो यहां पहले से ही खेली जाती थी, लेकिन खिलाड़ी केवल लोकल लेवल तक ही सिमटे थे, क्योंकि वे खेल की सही टेक्नीक और बारीकी नहीं जानते थे। वे कहते हैं कि वे NIS का कोर्स करके कलकत्ता से यहां आए थे। तब यहां का माहौल देखकर लगा कि बच्चों को फुटबॉल की टेक्नीक्स सिखाई जाएं, तो वे शानदार खिलाड़ी बनकर उभरेंगे। बस टाइम निकालकर वे यहां आने लगे और बच्चों को प्रैक्टिस कराने लगे। लगातार प्रैक्टिस टेक्नीक की समझ के बाद उन्होंने यहां जल्द ही नेशनल प्लेयर्स तैयार कर दिए। 60-70 लड़के-लड़कियों ने नेशनल मैच खेला है। कुछ ट्रायल तक पहुंचे हैं।
नए खिलाड़ी बनाने घर-घर पहुंचे
रईस खान बताते हैं कि इस गांव की सीरत बदलने का बीड़ा उठाया था। वे घर-घर गए गरीबी के दलदल से निकालने के वादे किए तब कहीं जाकर नए खिलाड़ी ला सके, उन्हें तैयार कर सके। उस समय सुविधाएं थी नहीं, कोई नेता या बड़ा अधिकारी यहां तक आता नहीं था, तो लोग इस मैदान तक आने के बजाय फटे हाल में रहना ही ठीक समझते थे।लड़कियों ने मारी बाजी
लड़कियों की स्थिति थी एमपी की जो टीम बनती थी उसमें 8-9 लड़कियां इसी गांव की होती थीं। बच्चों का उत्साह पीएम मोदी के आने के बाद बढ़ा है। अब कलेक्टर भी ध्यान देते हैं। कमियां कुछ आज भी हैं, जिन्हें दूर करना ही पड़ेगा तब जाकर यहां से इंटरनेशनल प्लेयर्स तैयार होंगे। सबसे बड़ी समस्या मैदान की है, जिसे समतल तो किया गया है, लेकिन अभी तक घास नहीं बिछाई गई है। कई सुविधाओं की आस है।
जब मैंने खेलना शुरू किया था सुविधाएं नहीं थीं
मेरे परिवार की मैं तीसरी पीढ़ी हूं। और मुझे गर्व है कि मैं नेशनल प्लेयर रह चुका हूं। जब हमने फुटबॉल खेलना शुरू किया था, तब हमारे पास इतनी सुविधाएं नहीं थीं। फिर भी हमने फुटबॉल खेलना नहीं छोड़ा। आज हमारे गांव में फुटबॉल को ही सबकुछ माना जाता है। इतना खेलने के बाद भी हमें सही प्लेटफॉर्म नहीं मिला था। कोच रईस खान ने हमें सही प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया। अब हमें कई सुविधाएं मिलना शुरू हो गई हैं। आगे भी बहुत सुविधाओं की उम्मीद करते हैं। अब हमें लगता है कि हम भी इंटरनेशनल लेवल के खिलाड़ी तैयार करेंगे।फुटबॉल खेलने वाला अपने परिवार की चौथी पीढ़ी का सदस्य
मैंने अपने घर के बड़े लोगों को देखकर फुटबॉल सीखना शुरू किया। मैं हमारे परिवार की चौथी पीढ़ी का सदस्य हूं, जो फुटबॉल खेल रहा है। हमारे समय में हम केवल बिचारपुर गांव और जिला स्तरीय और स्टेट लेवल पर ही प्रतियोगिता का हिस्सा बना हूं। नेशनल टीम का हिस्सा नहीं बन सका। रईस खान मेरे कोच बने और हम और ट्रेंड हुए। आज मैं कोच हूं और बच्चों को ट्रेनिंग दे रहा हूं। एक बार तो लगा कि कुछ नहीं हम ऐसे ही रहेंगे आगे नहीं बढ़ेंगे। तो खेल छोड़ने का मन भी बनाया, लेकिन फिर पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में बिचारपुर का नाम लिया तो उम्मीद जागी। उसके बाद हमें सुविधाएं भी मिलनी शुरू हुईं हैं। अब बच्चे भी उत्साहित होकर खेलते हैं कि वे नेशनल और इंटरनेशनल टीम में खेलेंगे और मैडल जीत कर आएंगे।
