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लाखों ठुकराए 101 रुपये अपनाए, धाकड़ परिवार ने पेश की अनोखी मिसाल शिक्षक पिता की गोद से बेटी की डोली तक
जब ललिता महज दो वर्ष की थी, तभी माता श्यामकली और पिता रामचंद्र कोरी की मृत्यु हो गई। उस समय गांव(MP News) में जब कोई जवाबदेही लेने को तैयार नहीं था, हर कोई प्रशासन को सौंपने की बात कर रहा था। उस समय पड़ोस में रहने वाले शिक्षक पुष्पराज सिंह ने न केवल ललिता को, बल्कि उसके बड़े भाई और छोटी बहन को भी अपने घर में शरण दी। उन्होंने इन तीनों बच्चों की परवरिश एक पिता की तरह की, पढ़ाया-लिखाया और हर मोड़ पर उनका साथ निभाया। अब जब ललिता विवाह योग्य आयु में पहुंची, तो पुष्पराज सिंह ने एक पिता का फर्ज निभाते हुए धूमधाम से उसकी शादी सीधी के पडऱा निवासी गोपाल कोरी से कराई। विवाह स्थल था बढ़ौरा शिवमंदिर, जहां पूरे गांव ने मिलकर बेटी को विदा किया।
नम हुईं गांव की आंखें
विदाई के समय वातावरण पूरी तरह भावुक हो उठा। इस दौरान पुष्पराज सिंह के परिवार के साथ ही विंध्य विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष सुभाष सिंह, पूर्व प्राचार्य रामार्चा प्रसाद पांडेय, राजकुमार सिंह, दृगेन्द्र सिंह, बाकेलाल सिंह, शुभलेश सिंह, संजय सिंह, दयाशंकर द्विवेदी, राकेश गहरवार, सुखेन्द्र सिंह, अरुण सिंह, संतोष मिश्रा, राम सिंह परिहार, सुरेश कोरी सहित अन्य मौजूद रहे।
सामाजिक समरता की भी मिसाल
शिक्षक पुष्पराज सिंह ने मानवीय दायित्वों के साथ ही सामाजिक समरसता भी पेश की है। दलित परिवार के बच्चों को अपनी संतान की तरह पाला और उन्हें कभी कोई कमी नहीं होने दी। शिक्षक के साथ ही आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई-कढ़ाई सहित अन्य कौशल उन्नयन के भी प्रशिक्षण दिलाए ताकि जरूरत पडऩे पर खुद का भी कारोबार कर सके। विदाई के समय ललिता को भी शिक्षक के परिवार से अलग होने का दु:ख नजर आया। वह भी खूब रोई।