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सिंगरौली

एमपी के इस बड़े शहर का मिट जाएगा नामो निशान, लाखों लोगों के विस्थापन पर 35 हजार करोड़ होंगे खर्च

Morwa city of Singrauli is being displaced मध्यप्रदेश के एक और बड़े शहर का अस्तित्व जल्द ही खत्म हो जाएगा।

सिंगरौलीJan 06, 2025 / 05:18 pm

deepak deewan

Morwa city of Singrauli is being displaced

Morwa city of Singrauli is being displaced

मध्यप्रदेश के एक और बड़े शहर का अस्तित्व जल्द ही खत्म हो जाएगा। यहां के सभी नामो निशान मिट जाएंगे। प्रदेश के सिंगरौली (Singrauli) के मोरवा (Morwa) शहर का विस्थापन किया जा रहा है। यहां के करीब डेढ़ लाख लोगों को नए स्थानों पर बसाने की कवायद की जा रही है। हालांकि आधिकारिक रूप से करीब 50 हजार लोगों के विस्थापन की बात कही जा रही है। मोरबा Morwa के विस्थापन को एशिया में नगरीय क्षेत्र का सबसे बड़ा विस्थापन बताया जा रहा है। इसमें करीब 35 हजार करोड़ रुपए का मुआवजा देने का अनुमान जताया गया है।
सिंगरौली में जयंत एवं दुद्धीचुआ खदान के विस्तार के लिए धारा 9 लगे करीब एक वर्ष पूरा होने वाला है। इस बीच मोरबा Morwa के विस्थापन की सुगबुगाहटें भी तेज हो गई हैं।

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मोरबा विस्थापन मंच के पदाधिकारी ने बताया कि विस्थापन को लेकर बीते दिनों एनसीएल की ओर से जारी की गई 34 पन्नों की बुकलेट का मुख्य शीर्षक रिहैबिलिटेशन एंड रिसेटेलमेंट स्कीम रखा गया था। इसमें विस्थापन समेत तमाम जानकारियां थीं लेकिन बुकलेट के पृष्ठ क्रमांक 4 को पढऩे से पता चलता है कि इस स्कीम का नाम और मकसद विस्थापितों का सेल्फ रिसेटेलमेंट है।
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यह मोरवा Morwa से होने वाले विस्थापितों को आगाह करते हुए उल्लेख करता है कि इसमें 50 हजार लोग बेघर होंगे। उन्हें डिसोल्यूशन उजाडऩे का काम और जिम्मेदारी तो एनसीएल ने अपने कंधों पर उठा रखी है लेकिन विस्थापन के बाद विस्थापितों को स्वयं से बसने की सलाह दी गई। हालांकि यह केवल सलाह नहीं क्योंकि प्रबंधन ने अभी तक की प्रक्रिया को देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है।
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कानून के जानकार इस स्कीम सेल्फ रिसेटेलमेंट को भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में खोजने का प्रयास कर रहे हैं। विस्थापन मंच के पदाधिकारियों ने बताया कि स्कीम में उल्लेख है कि एनसीएल जयंत के एमजीआर और रेल माध्यम से कोयला आपूर्ति तीन चार वर्षो में बंद हो जाएगी और राजकीय कोष में करीब 2430 करोड़ का योगदान प्रभावित हो जाएगा।
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सर्वेक्षण में विलंब
मोरवा Morwa के सर्वेक्षण को लेकर भी एनसीएल मैनेजमेंट के अपने पास उपलब्ध टीम पर भरोसा न होने की वजह से ही सर्वेक्षण एवं नापी का कार्य प्राइवेट कंपनी की टीम से कराया जा रहा है। वह भी सही कार्य का आदेश प्राप्त न होने और समय पर भुगतान न होने के कारण कार्य में नियमित नहीं रह पा रही है। यही कारण है कि एक जुलाई से 30 दिसंबर तक खत्म हो जाने वाले इस सर्वेक्षण के कार्य को जनवरी के शुरूआती दिनों तक आधे पर भी नहीं पहुंचाया जा सका है।
मोरबा से विस्थापन की जद में आने वाले शासकीय, अशासकीय स्कूल, बैंक, विद्युत वितरण कार्यालय, नगर निगम, पोस्ट ऑफिस थाना व इस तरह के और कई अन्य दर्जनों प्रतिष्ठान कहां जाएंगे, इसकी अभी तक कोई योजना ही नहीं बनी है। निजी सेवाओं में वर्षों से कार्यरत लोगों का तो भविष्य ही अंधकारमय हो गया है।
समस्या यह भी रहेगी कि स्कूल के बीच विस्थापन जारी रहेगा तो बच्चों का दाखिला कहां होगा। आसपास किसी स्कूल में इतनी क्षमता नहीं है यहां के सारे बच्चे वहां दाखिला पा सकें। फिर बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने की भी बड़ी चिंता रहेगी।
सिंगरौली (Singrauli) के मोरवा (Morwa) में कोल माइंस (Coal mining) है। यहां सबसे अधिक कोयला मौजूद है।
मोरवा आर्थिक आमदनी देने के मामले में सबसे आगे है। मोरवा रेलवे स्टेशन भी है।

पुनर्वास की शर्तें
मोरवा के लोगों ने पुनर्वास के लिए एनसीएल के सामने कई शर्तें रखी हैं। विस्थापित परिवार के हर व्यक्ति को नौकरी जैसी कुल 24 शर्तें रखी गई हैं जिनमें मुख्य हैं—
  1. सेक्शन 91 के तहत मिलने वाली सभी जमीनें नगर निगम क्षेत्र में ही होनी चाहिए, क्योंकि मोरवा की जिन जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है वे सभी नगर निगम में हैं।
  2. जो लोग नगर निगम क्षेत्र के बाहर जमीन लेने को तैयार हैं उन्हें नियमानुसार मुआवजा मिलना चाहिए।
  3. मोरवा ने पहले भी विस्थापन का दंश झेला है इसलिए जिस वार्ड का बाजार मूल्य सबसे अधिक है, उसी आधार पर पुनर्वास के इलाके का बाजार मूल्य तय होना चाहिए।
  4. विस्थापितों को कोल इंडिया लिमिटेड और चल रही पॉलिसी के अंतर्गत डिसेंडिंग ऑर्डर के तहत नौकरी दी जाए।
आंदोलन की अगुवाई कर रहे मोरबा विस्थापन मंच के पदाधिकारियों के अनुसार यह कोल इंडिया का सबसे बड़ा और एशिया का भी सबसे बड़ा नगरीय विस्थापन होगा। लगभग 30 से 35 हजार करोड़ का मुआवजा बंटने का अनुमान है।

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