इसलिए भारतीय इतिहास में खास है कुषाणकालीन सभ्यता
रंगमहल में कुषाणकालीन और गुप्तकालीन दोनों सभ्यताओं के प्रमाण मिलते हैं। यह दोनों सभ्यताएं ही भारतीय इतिहास में बेहद खास हैं। कुषाणकाल को आर्थिक समृद्धि का स्वर्णयुग भी कहा जाता है। कुषाणों के काल में कला, व्यापार, और धर्म में उल्लेखनीय विकास हुआ। सम्राट कनिष्क ने शक संवत की शुरुआत की, जिसका उपयोग आज भारत सरकार करती है। कुषाणों के शासनकाल में संस्कृत भाषा और साहित्य को संरक्षण मिला। गंधार और मथुरा कला शैलियों का विकास भी कुषाणों के शासनकाल में हुआ था। कुषाणों ने बौद्ध धर्म अपनाया और उसका प्रचार-प्रसार किया। राजा कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय के एक महान संरक्षक थे। कुषाणों के समय में बौद्ध धर्म की मूर्तियों का निर्माण हुआ।
भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहलाता है गुप्तकाल
गुप्तकाल को भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है। इस काल में कला, साहित्य, विज्ञान, और स्थापत्य के क्षेत्र में कई अहम उपलब्धियां दर्ज की गई। इस काल में धार्मिक सहिष्णुता, आर्थिक समृद्धि, और शासन व्यवस्था की स्थापना भी हुई थी। गुप्तकाल में पत्थर, धातु, और टेराकोटा से बनी मूर्तियां बनाई गई। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी और फ़्रेस्को चित्रकारी गुप्तों की परिष्कृत कला के उदाहरण हैं। देवगढ़ का दशावतार मंदिर, भूमरा का शिव मंदिर, बोध गया, और सांची के स्तूप इस काल की बेहतरीन वास्तुकला के उदाहरण हैं। वहीं गुप्तकाल में साहित्य भी चरम पर पहुंचा। कालिदास ने मेधदूतम्, ऋतुसंहार, और अभिज्ञान शांकुतलम् जैसी रचनाएं की तो, विज्ञान के क्षेत्र में आर्यभट्ट ने पृथ्वी की त्रिज्या की गणना की और सूर्य-केंद्रित ब्रह्मांड का सिद्धांत दिया। वहीं वराहमिहिर ने चंद्र कैलेंडर की शुरुआत की। गुप्त साम्राज्य में ही दीवानी और फौजदारी कानून भली-भांति परिभाषित एवं पृथक किए गए।
कालीबंगा की तर्ज पर रंगमहल सभ्यता के संरक्षण की दरकार
सूरतगढ़ से महज 33 किमी दूर मिली हड़प्पाकालीन सभ्यता के प्रमाण आज कालीबंगा में भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में संग्रहीत व सुरक्षित हैं। लेकिन रंगमहल में मिली कुषाण और गुप्तकालीन सभ्यता को सहेजने के लिए इस स्तर पर प्रयास नहीं हुए। उस समय उत्खनन से प्राप्त सिक्कों, मिट्टी के पात्र, दीपदान, खिलौनों को रंगमहल में ही संग्रहालय बनाकर रखने की बजाय दिल्ली, जयपुर व बीकानेर संग्रहालय में भिजवा दिया गया। लेकिन इस स्थल पर खुदाई कार्य शेष है और समय-समय पर यहां सभ्यता अवशेष मिलते रहते हैं। पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का मानना है कि रंगमहल के लिए भी एक अलग संग्रहालय बनाना चाहिए ताकि सभ्यताओं का संरक्षण हो सके।
पर्यटन स्थल में हो सकता है विकसित
करीब पांच हजार वर्ष पूर्व रंगमहल की यह पवित्र भूमि सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित थी। रंगमहल व मानकथेड़ी गांव के मध्य सरस्वती और दृशदति नदी का संगम होता था। रंगमहल से प्राप्त अनेक मूर्तियां राष्ट्रीय संग्राहलय दिल्ली, राजकीय संग्रहालय जयपुर व बीकानेर में रखी हुई हैं। लेकिन यहां अभी खुदाई का कार्य शेष है। अगर सही ढंग से खुदाई की जाए तो यह पुरातात्विक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकती है। राईजिंग राजस्थान इवेंट में भी मुख्यमंत्री के समक्ष यह मांग रखी थी। – प्रवीण भाटिया, शिक्षाविद् व इतिहासकार, सूरतगढ़।