उदयपुर में ‘स्त्री देह से आगे’ विषय पर विचार-विमर्श, गुलाब कोठारी ने बताया मातृत्व का महत्व
उदयपुर। राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूरचंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में उदयपुर में ‘स्त्री देह से आगे’ विषय पर एक विचारोत्तेजक विचार-विमर्श कार्यक्रम आयोजित हुआ।
उदयपुर। राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूरचंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में उदयपुर में ‘स्त्री देह से आगे’ विषय पर एक विचारोत्तेजक विचार-विमर्श कार्यक्रम आयोजित हुआ। यह आयोजन नगर निगम टाउनहॉल परिसर में स्थित सुखाड़िया रंगमंच में हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन करके किया। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों की महिलाएं और गणमान्य लोग उपस्थित थे।
गुलाब कोठारी ने अपने संबोधन में सभ्यता के तेजी से बदलते स्वरूप पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि सभ्यता हर युग में बदली है, लेकिन इस पीढ़ी में परिवर्तन की गति अभूतपूर्व है। विज्ञान और तकनीक ने जीवन को बदल दिया है, लेकिन यह बदलाव हमारी संवेदनाओं को नष्ट कर रहा है। मोबाइल ने हमारे दिमाग को जकड़ लिया है, जिससे बचपन के संवाद, संस्कृति और पारिवारिक मूल्य लुप्त हो रहे हैं। यह हमारे मानसिक विकास के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता को संरक्षित करने के लिए गंभीर चिंतन करना होगा।
कोठारी ने स्त्री और पुरुष की आध्यात्मिक और सामाजिक भूमिकाओं पर गहन प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि शरीर मां बनाती और संचालित करती है, लेकिन आत्मा पुरुष है। संसार में दो तत्व हैं- जड़ (मैटर) और चेतना (एनर्जी)। हम एक हैं, लेकिन दिखाई दो देते हैं। जब तक यह एकता समझ नहीं आएगी, तब तक असमानता, असुरक्षा और असम्मान की भावना बनी रहेगी। उन्होंने महिलाओं के खिलाफ दर्ज मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि आधे मामले झूठे होते हैं और आधे की फाइलें बंद हो जाती हैं। हमें इस समस्या से निपटने का दायित्व स्वयं लेना होगा।
शिक्षा का प्रभाव और असमानता
गुलाब कोठारी ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि स्त्री की भूमिका इस प्रकृति और संसार में जन्म से लेकर मोक्ष तक है। जो पुरूष कभी नहीं कर सकता है। वो अपने कर्म के हर पड़ाव पर स्त्री पर ही निर्भर रहेगा। लेकिन आधुनिक शिक्षा ने औरत से मातृत्व भाव को खत्म कर दिया है। उसने अपनी शक्ति, दिव्यता, सौम्यता और संस्कार व मातृत्व शिक्षा को खो दिया है, जिससे वो अब संसार में खुद के अस्तित्व को खोकर पुरूष की भांति जी रही है। जिससे समाज और राष्ट्र का बेहतर निर्माण संभव नहीं है।
आधुनिक शिक्षा के चलते समानता के भाव ने लड़कियों को पुरूष बनने की ओर धकेला जा रहा है। परिवार में लड़का-लड़की समान इस भाव से दोनों को एक जैसी शिक्षा दी जा रही है। आश्चर्य की बात है हमारे शिक्षा व्यवस्था में लड़कियों के लिए कोई शैक्षिक व्यवस्था नहीं बनाई गई है। उन्हें वही शिक्षा दी जाती है जो लड़कों को दी जा रही है। घर में उसे अपने भाई के भावों को ही सिखाना पड़ रहा है। जिसके कारण उसका स्त्रीत्व और मातृत्व पीछे छूट जाता है। समाज ने महिलाओं के लिए कभी कुछ नहीं बनाया है। उन्हें अपने लिए हर चीज के लिए संघर्ष करना पड़ा है। कारण कि हमने आत्मा को समझना बंद कर दिया है।
अर्धनारीश्वर की अवधारणा क्या है?
गुलाब कोठारी ने कहा कि आधुनिक शिक्षा ने अर्धनारीश्वर की अवधारणा को नष्ट कर दिया है। पुरुष के भीतर स्त्री का भाव होता है, लेकिन उसे समझने की शिक्षा नहीं दी जाती। लड़कियों को मातृत्व और संवेदनशीलता में पकाया जाता है, इसलिए वे पुरुष के भाव को समझ लेती हैं। लेकिन पुरुष को स्त्री की शक्ति, उसका मोल और अर्थ नहीं सिखाया जाता। यही कारण है कि वह उनका अपमान करता है।
उन्होंने चिंता जताई कि शिक्षा ने आस्थावान स्त्री के स्वरूप पर ब्रेक लगा दिया है। समय के साथ स्त्री का स्त्रीत्व खत्म हो रहा है। उसकी सौम्यता गायब हो रही है, और उसके चेहरे पर पुरुष का भाव दिखने लगा है। मन से दोनों पुरुष बन गए हैं। उन्होंने तीसरे नुकसान के रूप में देर से विवाह का जिक्र किया। महिलाएं समानता की अंधी दौड़ में भौतिक सुखों के पीछे भाग रही हैं, लेकिन व्यक्तिगत शांति खो रही हैं। घर और बाहर दोनों जगह काम करने से सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही हो रहा है।
स्त्री की शक्ति- जन्म से मोक्ष तक
गुलाब कोठारी ने स्त्री की आध्यात्मिक और सामाजिक शक्ति को रेखांकित करते हुए कहा कि इस संसार में जो कुछ भी होता है, वह स्त्री के हाथों होता है। जन्म से मोक्ष तक वही मार्गदर्शन करती है। शादी दो शरीरों का नहीं, आत्माओं का मिलन है, जो मंत्रों से बंधता है। मंत्रों की ध्वनि आत्मा को प्रभावित करती है। पुरुष अग्नि है, और स्त्री सौम्यता।
उन्होंने कन्यादान की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि स्त्री मायके से शरीर छोड़कर आती है और ससुराल में आत्मा के साथ बसती है। कन्यादान में पिता अपनी बेटी के प्राण दामाद को सौंपता है। पुरुष में अपने और ससुर के प्राण होते हैं।
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मातृत्व की दिव्यता का महत्व बताया
गुालब कोठारी ने मातृत्व की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि स्त्री को संतान के आने का आभास पहले हो जाता है। वह सपनों में जान लेती है कि जीव कहां से आ रहा है और उसका लक्ष्य क्या है। उसे तीनों कालों का ज्ञान होता है, जो पुरुष में नहीं। वह जीव को इंसान बनाती है। कोई देवता यह काम नहीं कर सकता। लेकिन आज की मां शरीर तो बना रही है, पर आत्मा को संस्कारित नहीं कर पा रही। यही कारण है कि इंसान पशुवत व्यवहार कर रहा है।
उन्होंने कहा कि स्त्री का संकल्प अटल होता है। वह अपने बच्चे और पति का शारीरिक और आध्यात्मिक पोषण करती है। जब वह खाना बनाती है, तो उसका ध्यान केवल बच्चे के भविष्य पर होता है। मां का काम देना है, वह अपने लिए नहीं जीती।
समाज और स्त्री की भूमिका
गुलाब कोठारी ने अंत में कहा कि शरीर को छोड़कर आत्मा के भाव से जीने से पशुता खत्म होगी और दिव्यता आएगी। तब यह देश फिर से खड़ा हो जाएगा। स्त्री की असली ताकत उसकी समझ, भाव, संकल्प, कर्म और मातृत्व में है। वह संतान के जन्म, पुरुष के निर्माण और यौनियों के परिवर्तन की क्षमता रखती है। जरूरत है कि स्त्री अपनी शक्ति को पहचाने। उसका जीवन केवल परिवार तक सीमित नहीं, बल्कि वह पूरे समाज की आत्मा बन सकती है।
गौरतलब है कि ‘स्त्री देह से आगे’ विचार-विमर्श कार्यक्रम ने स्त्री की आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया। यह आयोजन कर्पूरचंद्र कुलिश के मूल्यों और दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का एक सार्थक प्रयास था। पत्रिका समूह ने इस मंच के माध्यम से न केवल महिलाओं की शक्ति को उजागर किया, बल्कि समाज को एक नई दिशा देने का संदेश भी दिया।
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