ये आनुवांशिक बीमारियां दिल और लिवर फेल होने से लेकर अंधापन, बहरापन, डायबिटीज और अल्पायु मृत्यु तक का कारण बन सकती हैं। न्यूकैसल, इंग्लैंड के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के अनुसार सभी बच्चे एक खास इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आइवीएफ) तकनीक से जन्मे हैं, जिसमें मां के दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए की मरम्मत के लिए एक ‘दूसरी मां’ का डीएनए इस्तेमाल किया गया।
यह डीएनए उस हिस्से से जुड़ा होता है जो कोशिकाओं को ऊर्जा देता है यानी माइटोकॉन्ड्रिया, जिसे आम भाषा में कोशिका की ‘बैटरी’ कहा जाता है।
ऐसे काम करती है ‘तीन डीएनए’ तकनीक
‘माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थैरेपी’ (एमआरटी) में सबसे पहले उस अंडाणु को निषेचित किया जाता है जिसका माइटोकॉन्ड्रिया दोषपूर्ण हो। फिर उसमें मौजूद नाभिक (न्यूक्लियर डीएनए) को एक स्वस्थ डोनर अंडाणु में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इस नए अंडाणु में माइटोकॉन्ड्रिया तो डोनर का होता है, लेकिन शेष जेनेटिक सामग्री जैविक मां-पिता की होती है। यह प्रक्रिया कुछ वैसी ही है जैसे किसी डिवाइस की खराब बैटरी बदल दी जाए।
एक बच्चे के जन्म में चार लोग भी शामिल
अधिकतर मामलों में दोनों अंडाणु एक ही पुरुष (यानी बच्चे के पिता) के शुक्राणु से निषेचित किए जाते हैं। लेकिन यदि डोनर अंडाणु देने वाली महिला, बच्चे के पिता की रिश्तेदार हो, तो आनुवंशिक जटिलताओं से बचने के लिए डोनर अंडाणु को किसी और पुरुष के शुक्राणु से निषेचित किया जाता है। ऐसे में बच्चे के डीएनए में दो महिलाएं और दो पुरुष शामिल हो सकते हैं यानी चार जैविक स्रोत।
डोनर को माता-पिता मानने पर बहस
ब्रिटेन की ह्यूमन फर्टिलाइजेशन एंड एम्ब्रियोलॉजी अथॉरिटी (एचएफईए) के अनुसार, माइटोकॉन्ड्रिया डोनेट करने वाले को कानूनी रूप से माता-पिता नहीं माना जाएगा, क्योंकि उनका योगदान कुल डीएनए का सिर्फ 1% से भी कम होता है। इसलिए इन बच्चों को यह जानने का अधिकार नहीं होगा कि उनका ‘तीसरा डीएनए’ किसका था। हालांकि, हाल के शोध यह संकेत देते हैं कि माइटोकॉन्ड्रिया सिर्फ ऊर्जा देने वाली ‘बैटरी’ नहीं है, बल्कि यह ऊंचाई, उम्र और कुछ बीमारियों की प्रवृत्ति को भी प्रभावित कर सकता है।
फिलहाल सब ठीक, लेकिन भविष्य…?
अब तक जन्मे आठों बच्चे स्वस्थ हैं, लेकिन पशु परीक्षणों में यह सामने आया है कि यदि माइटोकॉन्ड्रियल और नाभिकीय डीएनए में आपसी सामंजस्य न हो, तो भविष्य में हृदय या चयापचय (मेटाबॉलिज्म) संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। साथ ही, डीएनए स्थानांतरण के दौरान यदि कुछ दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रिया भी नए अंडाणु में चले जाएं, तो संभावित बीमारियों का जोखिम बना रह सकता है।