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Explainer : बांग्लादेश में नोट पर सियासी संग्राम: यूनुस का हसीना और भारत पर वार, एक तीर से चार शिकार

Bangladesh currency controversy: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश की मुद्रा पर से इस देश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान का चित्र हटा कर शतरंज की बिसात बिछाई है। पेश है एम आई जाहिर की स्पेशल रिपोर्ट:

भारतJun 03, 2025 / 10:08 pm

M I Zahir

Bangladesh currency controversy

बांग्लादेश में यूनुस ने नोट से शेख मुजीबुर्रहमान का चित्र हटा कर खेल कर दिया है। ( फोटो: पत्रिका)

Bangladesh currency controversy: बांग्लादेश में बिछाई गई चुनावी बिसात पर नोट (Bangladesh currency controversy) के ​बहाने कई लोग निशाने पर हैं। बांग्लादेश बैंक के प्रवक्ता आरिफ हुसैन खान के कंधे पर बंदूक रख कर एक कार्ड खेल गया है कि और उनके मुंह से कहलवाया गया है कि नोट के नये डिज़ाइन में कोई भी मानव चित्र शामिल नहीं किया जाएगा, यानि शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर को हटाने (Sheikh Mujibur Rahman removed) के लिए यह खेल खेला गया है। ऐसा कर के मुहम्मद यूनुस (Muhammad Yunus political move)ने चुनावी साल में शेख हसीना, भारत और हिंदू अल्पसंख्यकों तीनों को साधते हुए एक तीर से चार कई शिकार किए हैं। इसे यूं समझें कि अगर कोई विरोध करे कि शेख मुजीबुर्रहमान का फोटो क्यों हटाया तो यह कहा जाएगा कि कोई व्यक्ति हिंदू और बौद्ध मंदिरों से ऊपर नहीं हो सकता और मानन चित्र तो लगा ही नहीं रहे हैं।

बांग्लादेश के निर्माण में इंदिरा गांधी ने अहम भूमिका निभाई थी

एक और बात यह है कि बांग्लादेश के निर्माण में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अहम भूमिका निभाई थी। भारतीय मुक्ति वाहिनियों ने इस देश के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने मुक्ति वाहिनी को प्रशिक्षण, शरण और सहायता दी थी। उनकी भूमिका को मान्यता देते हुए बांग्लादेश सरकार ने 2011 में उन्हें ‘बांग्लादेश स्वतंत्रता सम्मान’ से सम्मानित किया था।

यूनुस भारत को कूटनीतिक जवाब देना चाहते हैं

ध्यान रहे कि यूनुस के सत्ता की बागडोर संभालने के बाद देश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की लगातार खबरें आती रही हैंं और वे बांग्लादेशी नोट पर देवी देवताओं के चित्र लगा कर न केवल भारत को कूटनीतिक जवाब देना चाहते हैं, बल्कि यह भी दिखाना चाहते हैं कि हमारी नजर में देवी देवताओं की बहुत इज्जत है और यह इज्जत इस हद तक है कि हमने तो अपने नोट पर भी उन्हें जगह दी है।

चुनाव से पहले हिंदू अल्पसंख्यक मतदाताओं को साधने की कोशिश

य​ह बात इस तरह समझिए कि यूनुस ने चुनाव की समय सीमा की घोषणा करने के बाद यह निर्णय किया है, यानि चुनाव से पहले हिंदू अल्पसंख्यक मतदाताओं को साधने की कोशिश की गई है। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश की ओर से जारी कि गए नए बैंक नोट में देश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान का चित्र हटा दिया गया है। उनकी जगह नए नोटों में हिंदू और बौद्ध मंदिरों की तस्वीरें शामिल की गई हैं।

बांग्लादेश में नोट पर चित्र कब लगाया ?

बांग्लादेश की मुद्रा पर शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से लगी हुई थी। हालांकि, हाल ही में यूनुस सरकार ने इस तस्वीर को हटाने का निर्णय लिया है।

बांग्लादेश कब बना, कब हुई स्वतंत्रता की घोषणा ?

बांग्लादेश ने 26 मार्च 1971 को पाकिस्तान से स्वतंत्रता की घोषणा की थी, और 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के साथ युद्ध समाप्ति के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की थी।

‘बंगबंधु’ शेख मुजीब का कद : एक नजर

शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के संस्थापक और ‘बंगबंधु’ के नाम से मश​हूर थे। वे अवामी लीग पार्टी के नेता थे और बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे। कालांतर में उनकी बेटी शेख हसीना देश की प्रधानमंत्री बनीं। वे भारत के मित्र थे।

हसीना किस दल की हैं, वे भारत कब आईं

शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं और अवामी लीग पार्टी की अध्यक्ष हैं। वे 1975 में अपने पिता की हत्या के बाद भारत में निर्वासन में रहीं और 1981 में बांग्लादेश लौटकर राजनीति में सक्रिय हुईं। वे अगस्त 2024 में छात्र आंदोलन उग्र होने के बाद बांग्लादेश से भारत पहुंचीं और यहां पहुंच कर उन्होंने इस देश में शरण ली

बांग्लादेश में चुनाव कब हैं ? (Bangladesh elections 2025)

बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस ने घोषणा की है कि आगामी राष्ट्रीय चुनाव दिसंबर 2025 से जून 2026 के बीच होंगे।

मुहम्मद यूनुस : नजर, मंजर और पसमंजर

नोबल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस एक स्वतंत्र नेता हैं और उन्होंने 2024 में बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था। उन्होंने अवामी लीग पार्टी को बैन किया और चुनावी प्रक्रिया में सुधार की दिशा में कदम उठाए हैं।

बांग्लादेश में सुलगते सवाल

क्या एक इस्लामी देश में देवी देवताओं के चित्र नोट पर लगाना उनकी धार्मिक नीति के अनुरूप है?

क्या बांग्लादेश में यह फैसला अदालत में चुनौती दिया जा सकता है?
चुनाव आयोग और संवैधानिक संस्थाएं इस पर क्या रुख अपनाएंगी?

क्या अल्पसंख्यक समुदाय इस फैसले से संतुष्ट हैं या यह सिर्फ चुनावी स्टंट है?

साइड एंगल: एक फैसले से किस-किस पर क्या असर ?

भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर : यह फैसला भारत में भी राजनीतिक और कूटनीतिक बहस को जन्म दे सकता है, क्योंकि यह प्रतीकात्मक रूप से इंदिरा गांधी के ऐतिहासिक योगदान को नजरअंदाज करने जैसा है।
हसीना Vs यूनुस – वैचारिक टकराव: जहां शेख हसीना धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद की समर्थक हैं, वहीं यूनुस के फैसले धार्मिक ध्रुवीकरण की ओर इशारा कर रहे हैं।

अल्पसंख्यकों की प्रतिक्रिया: हिंदू और बौद्ध मंदिरों के चित्र का उपयोग अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन क्या यह समुदाय वास्तव में सुरक्षित महसूस करता है ?

बांग्लादेश के लिए शेख मुजीबुर्रहमान का महत्व

तस्वीर का एक पहलू यह है कि किसी दल या नेता से दलगत या राजनीतिक नजरिये से कितना ही मतभेद क्यों न हो, अगर कोई नेता किसी देश का संस्थापक है तो उसकी इज्जत किसी भी आम आदमी या आज के किसी भी नेता से अधिक होती है। भारत के लिए जो महत्व महात्मा गांधी का है, वही पाकिस्तान के लिए मोहम्मद अली जिन्ना और बांग्लादेश के लिए शेख मुजीबुर्रहमान का महत्व है।भारत या पाकिस्तान में गांधी और जिन्ना का चित्र इन देशों के फोटो से नहीं हटाया गया है, यानि इन देशों में अपने-अपने महापुरुषों और राष्ट्र नायकों के लिए आदर का भाव है और बांग्लादेश की वर्तमान सरकार अपने ही देश के नायक और महापुरुष का निरादर कर रही है।

हिंदू प्रतीकों को आगे रख कर खुद को उदारवादी साबित करने की कोशिश (Religious symbols on currency)

बांग्लादेशी राजनीतिक विश्लेषक और विदेश मंत्रालय के पूर्व सलाहकार डॉ. अमजद हुसैन ने बताया: “मुहम्मद यूनुस एक तरफ शेख मुजीब की विरासत कमजोर कर रहे हैं, दूसरी तरफ हिंदू प्रतीकों को आगे रख कर खुद को उदारवादी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह दोहरी रणनीति उलटी भी पड़ सकती है, क्योंकि इससे हसीना के समर्थकों और धर्मनिरपेक्ष तबके में आक्रोश बढ़ेगा।”

चुनावी साल में देश की विचारधारा में भारी बदलाव का संकेत

बहरहाल बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ओर से शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर नोटों से हटाने और हिंदू और बौद्ध मंदिरों के चित्र लगाने का निर्णय न सिर्फ देश की राजनीतिक ध्रुवीकरण की ओर संकेत करता है, बल्कि यह चुनावी साल में देश की विचारधारा में भारी बदलाव का संकेत भी है। कई बुद्धिजीवी इसे “संस्थापक के अपमान” और “राजनीतिक रणनीति में धार्मिक प्रतीकों के दुरुपयोग” के रूप में देख रहे हैं।

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