आजकल के बच्चे इंटरनेट एडिक्ट हो गए
डॉ. छवि कौशिक ने बताया कि दरअसल आजकल के बच्चे इंटरनेट एडिक्ट हो गए हैं, ऐसे बच्चों को डिप्रेशन हो सकता है,यह अहम बात है कि उन बच्चों की एक भावनात्मक भाषा होती है, जिसे समझना जरूरी है। दरअसल जो बच्चे या मां बाप तनाव की समस्या के बारे में नहीं बताते, उनकी परेशानियां बढ़ती जाती है और बाद में उन्हें अधिक दिक्कत होती है, असल में वे सोशल सिगमा के सबब वे लोगों को बात बताने से बचते हैं। यह रवैया उनके लिए घातक हो जाता है।
ऐसे बच्चों के माता पिता सब्र रखें
उन्होंने कहा कि तनावग्रस्त बच्चों के अभिभावकों के लिए वर्कशॉप होनी चाहिए, ताकि बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य सही रहे। ऐसे बच्चों के माता पिता सब्र रखें और उनकी परेशानी समझने की कोशिश करें।
आत्महत्या की दर लगभग 24,000 के करीब
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार,भारत में आत्महत्या के मामलों में हर साल वृद्धि देखी जा रही है। वहीं 15 से 29 साल के लोगों के आत्महत्या के मामलों में सबसे बड़ी संख्या युवाओं की है। आंकड़ों के अनुसार सन 2021 में भारत में आत्महत्या के कुल 1,64,033 मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें से लगभग 40% युवा वर्ग (15-29 साल) के थे। इस आयु वर्ग में आत्महत्या के 60% से अधिक मामले लड़कों के थे। जबकि 15-25 साल के लड़कों में आत्महत्या की दर लगभग 24,000 के करीब थी, जो पिछले कुछ वर्षों से स्थिर बढ़ रही है।
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी
आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 में भारत में आत्महत्या के 1,53,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें से 15-29 साल की उम्र के लगभग 35% मामले थे। आत्महत्या के मामलों में शहरी क्षेत्रों में वृद्धि देखी गई है, जहां पर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है, लेकिन स्टिग्मा और सामाजिक दबाव की वजह से ग्रामीण इलाकों में अभी भी लोग मानसिक समस्याओं को स्वीकार नहीं करते।
स्कूल में जा कर बात करती हैं
गौरतलब है कि कोरोना के बाद बच्चों में अवसाद व तनाव के विषय पर शोध कर चुकी हैं और सन 2014 से कनाडा में रह रही हैं। वे 10 साल इंग्लैंड रही हैं। उन्होंने भारत में कभी प्रैक्टिस नहीं की। वे बच्चों युवाओं और परिवारों के मानसिक स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग, डायग्नोसिस और काउंसलिंग करती हैं और स्कूल में जा कर बात करती हैं।