लंबित केसों की संख्या 35 लाख पार, न्याय में देरी की आशंका
इस समय अमेरिका में इमिग्रेशन से जुड़े करीब 35 लाख मामले लंबित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जजों की छंटनी से कोर्ट में काम और भी धीमा हो जाएगा। इससे लोगों को अपने केस के नतीजों के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ेगा।सरकारी यूनियन ने इस फैसले को “गलत और भेदभावपूर्ण” बताया है। उनका कहना है कि ये फैसले न्याय प्रक्रिया को कमजोर कर सकते हैं।
खतरनाक अपराधियों को अफ्रीकी देश एस्वातिनी भेजा
अमेरिका ने 5 विदेशी नागरिकों को देश से बाहर निकाल कर अफ्रीका के छोटे देश Eswatini (स्वाज़ीलैंड) भेज दिया है। इन लोगों पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं – जैसे हत्या, बच्चों के साथ यौन अपराध और गैंग हिंसा। ये अपराधी वियतनाम, क्यूबा, यमन, जमैका और लाओस के नागरिक हैं। लेकिन उनके देश उन्हें वापस लेने को तैयार नहीं थे, इसलिए अमेरिकी सरकार ने इन्हें तीसरे देश में भेजने का फैसला लिया।
एस्वातिनी में इन अपराधियों को अस्थायी जेल में रखा गया
अमेरिकी सरकार ने इन सभी अपराधियों को एस्वातिनी की जेलों में अस्थायी तौर पर रखने की अनुमति दी है। इस देश में पहले से ही मानवाधिकारों को लेकर अंतरराष्ट्रीय आलोचना होती रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने फैसले पर सवाल उठाए
संयुक्त राष्ट्र और कई मानवाधिकार संगठनों ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि एस्वातिनी में जेलों की हालत खराब है और कैदियों को प्रताड़ना दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की नई मंजूरी के बाद तेज हुआ डिपोर्टेशन
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सरकार को यह अधिकार दिया है कि वो अपराधियों को बिना उनके देश भेजे, किसी तीसरे देश में भी डिपोर्ट कर सकती है। इसके लिए सरकार को केवल 6 घंटे पहले सूचना देना ही काफी होगा। यह नीति विवादों में है, लेकिन सरकार इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा” के लिहाज़ से जरूरी मान रही है।
जनता और संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया
इमिग्रेशन जजों की बर्खास्तगी और अपराधियों को अफ्रीकी देश भेजने के फैसले पर अमेरिका के भीतर विरोध तेज़ हो गया है। इमिग्रेशन जजों की यूनियन ने इसे “न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला” बताया है। मानवाधिकार संगठन “ह्यूमन राइट्स वॉच” और “ACLU” ने इस नीति को “गैर-कानूनी और अमानवीय” करार दिया है।
ट्रंप प्रशासन अब कानून और सख्त करने में जुटा
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2024 के चुनाव के बाद ट्रंप प्रशासन अब कानून और सख्त करने में जुट गया है, जिससे प्रवासियों में डर का माहौल है।
नियुक्तियां न होने पर इमिग्रेशन केस बढ़ सकते हैं
इधर, अमेरिका की अदालतों में लंबित इमिग्रेशन केसों को लेकर आलोचना बढ़ रही है। अगर नई नियुक्तियाँ जल्द नहीं होतीं, तो सैकड़ों प्रवासियों को वर्षों तक फैसले का इंतजार करना पड़ सकता है।
आखिर क्यों चुना गया एस्वातिनी
एस्वातिनी कोई सामान्य देश नहीं है। यह अफ्रीका का आखिरी पूर्ण राजशाही देश है, जहाँ किंग म्स्वाती III का पूर्ण नियंत्रण है। यहां की जेलें पहले से ही भीड़भाड़ और अमानवीय स्थितियों के लिए बदनाम हैं। यह पहली बार है जब अमेरिका ने ऐसे संवेदनशील देश को थर्ड कंट्री डिपोर्टेशन के लिए चुना है।
यह कदम अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन
बहरहाल कई मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन भी हो सकता है, क्योंकि अमेरिका ने पहले ऐसे देशों से दूरी बनाई थी, जहां यातना या अन्याय की आशंका हो।
इमिग्रेशन और मानवाधिकार नीति पर बड़ा विवाद
जजों को हटाना और अपराधियों को तीसरे देश भेजना अमेरिका की इमिग्रेशन नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है। लेकिन इसके विरोध में मानवाधिकार संगठन, वकील और अदालतें खड़ी हो रही हैं। आने वाले समय में इस पर और बड़ा राजनीतिक और कानूनी विवाद हो सकता है।