हालात यह है कि दिव्यांग महिलाएं जो चल फिर नहीं सकती, जमीन पर घसीटकर चलने को मजबूर है। इसके बावजूद वो कभी अलवर तो कभी कोटपूतली-बहरोड़ तो कभी खैरथल-तिजारा के सरकारी कार्यालयों में चक्कर काट रही हैं। अलवर जिला कलक्टर, कोटपूतली-बहरोड़ और खैरथल-तिजाराके कलक्टर को भी स्कूटी के लिए आवेदन किया, लेकिन को सुनवाई नहीं हो रही है।
दिव्यांग, सिलाई करके भरती हैं पेट
बहरोड़ के नासीपुर निवासी आशा देवी 85 प्रतिशत दिव्यांग है। हाथ और पैर दोनों से दिव्यांग हैं। बच्चों की तरह जमीन पर घुटनियां चलती है। चल फिर नहीं सकती। वह बताती हैं कि मेरे पति भी दिव्यांग हैं। मेरे पति के भी हाथ में अंगुलियां नहीं है। मेरे दो बच्चे हैं। मेरे पास हाथ वाली साइकिल है इतनी दूर साइकिल चलाकर जाना मुश्किल है, लेकिन मजबूरी में जाना पड़ रहा है। यदि स्कूटी मिल जाए तो मुझे आने जाने में सुविधा हो जाएगी। मैंने पहले भी आवेदन किया, लेकिन उसमें भी स्कूटी नहीं मिली। इस बार भी मेरा नाम नहीं आया है। मुझे स्कूटी की बहुत जरूरत है।