अवसाद से उभर कर दूसरों के लिए प्रेरणा बनी रूचिता आनंद
बालिकाओं को दे रही है निशुल्क कम्प्यूटर प्रशिक्षण बीटेक , एमटेक, एमफिल, एमबीए, एमफिल व डाक्टरेट पास है रूचिता अलवर. अवसाद या तनाव वह िस्थति है जो किसी भी मनुष्य को तोड़ देती हैं, जीवन में जीने की उम्मीद को खत्म कर देती हैं, मनुष्य लाख प्रयास के बाद भी इससे उभर नहीं पाता है […]
बालिकाओं को दे रही है निशुल्क कम्प्यूटर प्रशिक्षण बीटेक , एमटेक, एमफिल, एमबीए, एमफिल व डाक्टरेट पास है रूचिता अलवर. अवसाद या तनाव वह िस्थति है जो किसी भी मनुष्य को तोड़ देती हैं, जीवन में जीने की उम्मीद को खत्म कर देती हैं, मनुष्य लाख प्रयास के बाद भी इससे उभर नहीं पाता है लेकिन जो अवसाद से उभर कर बाहर आ जाते हैं वो दुनिया के लिए मिसाल बन जाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है 43 वर्षीय रूचिता आनंद की, जिन्होंने जीवन के आठ साल मानसिक अवसाद में निकाल दिए लेकिन आज वो बालिकाओं के लिए प्रेरणा की मिसाल बन गई है।
वैशाली नगर के महिला आश्रम में रहने वाली रूचिता आनंद इन दिनों भारत विकास परिषद और इंजीनियरिंग सोशल एंड स्कील डवलपमेंट फाउंडेशन की ओर से संचालित रोजगारोन्मुखी कोर्स में आने वाली करीब एक दर्जन से ज्यादा बालिकाओं को कम्प्यूटर का प्रशिक्षण दे रही है। प्रशिक्षण देने के साथ साथ वो स्वयं भी यहां पर नए कोर्स सीख रही है ताकि बालिकाओं को और ज्यादा सीखा सके। जब वो अंग्रेजी में बालिकाओं को प्रशिक्षण देती हैं तो विश्वास नहीं होता कि ये कभी डिप्रेशन में थी। आज हालातों से लडते हुए सबके लिए मिसाल बन गई है।
रूचिता ने बीटेक , एमटेक, एमफिल, एमबीए, एमफिल व डाक्टरेट की हुई है। बहुत ही संपन्न परिवार से हैं , पिता लैंडलोर्ड थे और मां निजी स्कूल में टीचर थी। वह स्वयं भी शहर के बडे इंजीनियरिंग इंस्टीटयूटी व कोचिंग सेंटरों में बच्चों को पढ़ाती थी। इसी दौरान शादी हो गई। शादी के बाद परिवार में कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें वापस पीहर में ही आकर रहना पड़ा। इस दौरान कॉलेज की नौकरी भी छूट गई । पति से अलग होना, नौकरी छुटने का सदमा वह सहन नहीं कर पाई। इससे डिप्रेशन में आ गई। इसके लिए जयपुर के मानसिक रोग चिकित्सक से उपचार भी लेना पड़ा। वहां से इलाज के बा जब अलवर आई तो पता चला कि उनके घर पर कोई नहीं है, माता पिता भी कहीं चले गए, कहां गए इसका भी आज तक पता नहीं चला । इससे और अधिक तनाव हो गया , वह सड़क पर आ गई। रहने को कोई ठिकाना नहीं मिला तो कंपनी बाग के पास बैठे हुए किसी ने अपनाघर महिला आश्रम से जुडे़ अशोक मेठी का नंबर दिया तो उन्हें फोन किया। वो इन्हें आश्रम लेकर आए और इनकी काउंसलिंग व उपचार करवाया। मानसिक अवसाद की अवस्था में उन्हें भरतपुर के अपनाघर आश्रम में भी रखा गया।
आश्रम में करवाती है योग्, समय पर देती हैं दवाईयां आश्रम में रहने के दौरान ही वह यहां की व्यवस्थाओं को भी संभालती है।यहां रहने वाली विमंदित महिलाओं को समय समय पर दवाईयां देना, महिलाओं को योग करवाती है साथ ही यहां की व्यवस्थाओं में भी सहयोग कर ती है। अब जबकि वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गई हैं तो आश्रम के पदाधिकारी अशोक मेठी ने उनकी काबलियत पर भरोसा जताते हुए इन्हें पास में चल रहे रोजगारोन्मुखी कोर्स कैँप में प्रशिक्षण देने के लिए भेज दिया।
परिवार का साथ मिले तो अवसाद बाहर आ सकते हैं रूचिता का कहना है कि किसी भी इंसान के साथ कभी भी मानसिक अवसाद की िस्थति हो सकती है। ऐसे में परिवार को साथ बहुत जरूरी है, उसको प्यार करे, उसकी काउंसलिग करवाए, उसको अपने से दूर नहीं करे बल्कि उन्हें समझने की कोशिय करे , बीमार का सही उपचार करवाए तो वह पूरी तरह से स्वस्थ हो सकता है।
आज भी है माता पिता का इंतजार वह कहती हैं कि सब कह रहे हैं कि मेरे माता पिता अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि एक दिन वो मुझे खोजते हुए मेरे पास वापस आएंगे। आज आश्रम की महिलाएं और स्टाफ ही मेरा परिवार है।