इस चुनाव में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि सामान्य वर्ग के मतदाता अधिक संख्या में थे, फिर भी द्वारिकेश सिंह मंडेला ने ओबीसी समुदाय से आने के बावजूद अपनी विजय हासिल की। यह चुनावी जीत ने यह साबित कर दिया कि जातीय समीकरणों को तोड़कर कोई भी नेता अपनी मेहनत और क्षमता से आगे बढ़ सकता है। द्वारिकेश सिंह की चुनावी जीत में उनकी ताकत और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें समर्थकों के बीच एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया।
दो दशक पहले सपा शासनकाल के दौरान की विवादास्पद घटना
द्वारिकेश सिंह मंडेला की पहचान केवल उनके पेशेवर योगदान और राजनीतिक सक्रियता के कारण नहीं, बल्कि सपा शासनकाल के दौरान एक विवादास्पद घटना के कारण भी बनी। उस समय, जब वह जिला न्यायालय में सुनवाई के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी (डीएम) धीरज साहू से भिड़ गए थे, तो उन्होंने उन्हें जोरदार थप्पड़ मारा था। यह घटना उनके लिए एक प्रमुख मोड़ साबित हुई और इसने उन्हें एक दबंग नेता के रूप में स्थापित किया। इसके बाद उन्हें कानूनी प्रक्रियाओं से भी गुजरना पड़ा था, लेकिन वह अपने समर्थकों के बीच अपनी छवि को और मजबूत करने में सफल रहे।
जिला अधिवक्ता संघ बांदा चुनावी नतीजे
चुनाव के पहले राउंड की गिनती में द्वारिकेश सिंह मंडेला को 623 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी संतोष कुमार त्रिपाठी को 427 वोट मिले। तीसरे स्थान पर राम आसरे त्रिवेदी रहे, जिनके पास 160 वोट थे। इस चुनाव में महा सचिव के पद पर मनोज निगम लाल ने 527 वोटों के साथ बाजी मारी बने जिला अधिवक्ता संघ बांदा महासचिव, जबकि यदुनाथ सिंह को 508 वोट मिले और राजेश कुमार त्रिपाठी को 143 वोट मिले।
न्यायपालिका और राजनीति का संगम
द्वारिकेश सिंह मंडेला की जीत इस बात का प्रतीक है कि राजनीति और न्यायपालिका के बीच एक सशक्त संगम होता है, जो किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए खुद को तैयार रखता है। उनके समर्थकों का मानना है कि वह बार काउंसिल के अध्यक्ष के रूप में अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा करेंगे और संघ को नई दिशा देंगे। अब द्वारिकेश सिंह मंडेला के अध्यक्ष बनने के बाद बांदा बार काउंसिल में कई बदलावों की उम्मीद जताई जा रही है। उनका नेतृत्व और दूरदृष्टि आने वाले दिनों में बार संघ को एक नई दिशा दे सकती है, जो न केवल जिले के अधिवक्ताओं के लिए बल्कि पूरी न्यायिक प्रक्रिया के लिए भी लाभकारी साबित होगा।