पंच संभालते हैं जिम्मा, रखा जाता है हिसाब
नोतरा का शाब्दिक अर्थ निमंत्रण है। इस अनूठी परंपरा के तहत किसी भी आदिवासी परिवार का मुखिया अपने यहां होने वाले आयोजन या आवश्यकता के लिए गांव के पंचों को नोतरा का प्रस्ताव देता है। पंच इस परिवार में नोतरा का दिन तया करते हैं। ताकि किसी दूसरे परिवार के नोतरा की तिथि से टकराव न हो। नोतरे की तिथि पर गांव का हर परिवार संबंधित व्यक्ति के घर भोजन के लिए जाता है और मुखिया को तिलक लगाकर अपने सामर्थ्य के अनुसार नकद राशि या अन्य वस्तु सहयोग के रूप में देता है। यह राशि और उसका हिसाब गांव के वरिष्ठ एवं शिक्षित व्यक्ति को सौंप दिया जाता है। संबंधित परिवार के मुखिया को आयोजन के दिन अथवा दूसरे दिन पूरी राशि सौंप दी जाती है।निमंत्रण का तरीका बताता है नोतरा क्यों
नोतरा से शादी-ब्याह, बीमारी, मकान निर्माण जैसे कार्यों में आर्थिक सहायता मिलती है। ग्रामीण बताते हैं कि अलग-अलग आयोजन में निमंत्रण का तरीका अलग-अलग होता है। शादी या अन्य मांगलिक कार्यक्रम में निमंत्रण पत्र या पीले चावल दिए जाते हैं। अन्य कार्य से नोतरा किया जा रहा है तो कुमकुम चावल दिए जाते हैं। मृत्यु भोज के लिए नोतरा नहीं हो सकता।राजस्थान के इस समाज ने लिए 7 बड़े फैसला, सबके लिए मानना है अनिवार्य
छोटे-बड़े का भेद नहीं, नोतरा जरूरी
नोतरा में छोटे-बड़े का भेद नहीं होता है। यह सभी के लिए आवश्यक है। इसका लेखा जोखा गांव का व्यक्ति रखता है। अलग-अलग परिवारों में नोतरा पर अन्य परिवार पिछली बार उनके यहां नोतरा में दी गई रकम को बढ़ाकर परिवार को सहयोग देता है। इससे नोतरे की रकम बढ़ती रहती है।
सामाजिक बंधन भी मजबूत
‘नोतरा प्रथा बहुत उपयोगी है। किसी भी आयोजन में गांव-समाज की भागीदारी से मदद भी मिलती है और सामाजिक बंधन भी मजबूत होता है। आदिवासी परिवार के लिए कोई भी आयोजन आर्थिक बोझ नहीं बनता।’लालसिंह मईड़ा, स्कूल व्याख्याता, कुशलगढ़