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बरेली

सर्दी से बेहाल लोग, नाकाम अफसर: अलाव में गीली लकड़ी और धुआं, रैन बसेरों की हालत खस्ता

सर्दी का सितम बढ़ता जा रहा है, लेकिन प्रशासन की व्यवस्थाएं पूरी तरह नाकाम साबित हो रही हैं। शीतलहर के बीच खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर आश्रयहीन लोगों की हालत दयनीय है।

बरेलीJan 05, 2025 / 12:12 pm

Avanish Pandey

बरेली। सर्दी का सितम बढ़ता जा रहा है, लेकिन प्रशासन की व्यवस्थाएं पूरी तरह नाकाम साबित हो रही हैं। शीतलहर के बीच खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर आश्रयहीन लोगों की हालत दयनीय है। शहर में लगाए गए अलाव में गीली लकड़ी और पुराने टायर जलाने की नाकाम कोशिशें हो रही हैं। धूप न निकलने से ठिठुरन और बढ़ गई है।

जमीनी हकीकत: अलाव में सिर्फ धुआं

शनिवार रात 10:10 बजे नॉवेल्टी चौक पर अलाव जल रहा था, लेकिन गीली लकड़ियों के कारण केवल धुआं उठ रहा था। पास बैठे लोग ठंड से परेशान नजर आए। उन्होंने बताया कि टायर और कागज डालने के बाद भी लकड़ियां नहीं जल रही हैं।
पुराने रोडवेज और पटेल चौक का भी यही हाल था। पटेल चौक स्थित स्थायी रैन बसेरे के बाहर अलाव जलाया गया था, लेकिन गीली लकड़ियां आग पकड़ने के बजाय धुआं ही दे रही थीं। वहीं, राहगीर पुराने टायर डालकर आग जलाने की कोशिश कर रहे थे। लोगों का कहना था कि लकड़ी इतनी गीली है कि इसे न डालना ही बेहतर है।

रैन बसेरों की दुर्दशा: खुले में सोने को मजबूर

नगर निगम द्वारा रैन बसेरों में व्यवस्था बनाने के लिए नोडल अफसर तैनात किए गए हैं। लेकिन शनिवार रात हकीकत कुछ और ही थी। नगर निगम कार्यालय से बरेली कॉलेज रोड तक फुटपाथ पर कंबल ओढ़े लोग ठंड में सोते मिले। जब उनसे बात की गई तो उन्होंने बताया कि पटेल चौक का रैन बसेरा पहले से ही भरा हुआ था, इसलिए उन्हें खुले में सोना पड़ा।
पुराना रोडवेज स्थित अस्थायी रैन बसेरा भी पूरी तरह भरा था। लेकिन नोडल अफसर यह देखने तक नहीं आए कि ये लोग ठंड में कैसे रात गुजार रहे हैं।

राहगीरों और रिक्शा चालकों की दुर्दशा

रैन बसेरों की कमी के कारण रिक्शा चालक और राहगीर खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं। शासन ने रैन बसेरों में व्यवस्था की निगरानी के लिए इंजीनियरों और नोडल अफसरों को जिम्मेदारी दी है, लेकिन कागजों पर मौजूद ये अफसर ठंड में घरों से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं।

क्या कहना है लोगों का

राहगीरों का आरोप: “लकड़ी इतनी गीली है कि आग पकड़ ही नहीं रही। टायर डालकर जलाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उससे भी कुछ नहीं हो रहा।”

आश्रयहीन: “रैन बसेरे भरे होने की वजह से हमें फुटपाथ पर सोना पड़ रहा है। कोई अधिकारी हमारी सुध लेने नहीं आया।”

प्रशासन की लापरवाही पर सवाल

नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य ने रैन बसेरों में ठहरने वालों को सुविधा देने और खुले में सोने वालों को रैन बसेरों तक पहुंचाने की योजना बनाई थी। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि नोडल अफसर अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह विफल रहे हैं।

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