यह टांके अकाल राहत में बनते थे—
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अगस्त 2009 में बाड़मेर आए। यहां सोनिया चैनल रामसर के दौरे के लिए पहुंचे तो उन्हें टांके दिखाए गए। यह टांके अकाल राहत में बनते थे। टांकों का महत्व तात्कालीन जिला कलक्टर गौरव गोयल ने बताया। बरसाती पानी को सहेजकर रखना और इससे बारिश के बाद में गर्मियों के दिनों में तीन से पांच महीने तक पेयजल उपलब्ध हो जाता है। मनमोहन को यह बात जंच गई कि बरसाती पानी को सहेजने से यहां की पानी की सबसे बड़ी पीड़ा का सरल हल है। इस पर उन्होंने मनरेगा में टांके बनाने की स्वीकृति दी। 60 हजार टांके बनें, बाडमेर को मिला अवार्ड
जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बाड़मेर को यह सौगात दी तो प्रशासन ने भी उनकी इस सोच पर काम केन्द्रित किया।
बाड़मेर जिले में 60 हजार टांके बनाए गए। इन टांकों के निर्माण के लिए जिला कलक्टर गौरव गोयल को मनमोहन सिंह ने दिल्ली में अवार्ड प्रदान किया।
जब इसका लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे
मनरेगा में व्यक्तिगत कार्यों की भी यह शुरूआत थी। इसके बाद योजना में खेत-ढाणी और घर में टांके और अन्य निर्माण होने लगे। मजदूरी के साथ हुए इन ठोस काम से लोगों को सीधा फायदा पहुंचा। वे बताते है कि उन्होंने कहा था कि व्यय की सार्थकता तभी है जब इसका लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। टांके उस अंतिम व्यक्ति की जरूरत है, जो गांव ढाणी में बैठा पानी का इंतजार कर रहा है।