मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहां रुककर शिवलिंग की स्थापना की थी। यह शिवलिंग खासतौर पर अपनी अष्टकोणीय संरचना के लिए जाना जाता है, जो बहुत दुर्लभ मानी जाती है।
मंदिर किसी सरकारी संरक्षण में नहीं है, फिर भी स्थानीय युवाओं और ग्रामीणों ने इसे अपनी आस्था से जीवित रखा है। ग्रामीणों के मुताबिक यहां एक कहानी प्रचलित है, जिसके मुताबिक पांडवों ने यहीं से चकरनगर के लिए प्रस्थान किया था और चक्रासुर नामक राक्षस का वध कर उस स्थान को राक्षसों से मुक्त करा दिया था।
यह भी किंवदंती
किंवदंती भी है कि शिवलिंग की स्थापना के समय भीम ने विशेष रुद्राभिषेक किया था। इस पर मारवाड़ी व्यापारी द्वारा मठ का निर्माण करवाया गया, जिसे हाल के वर्षों में गांव के युवाओं ने नया स्वरूप दिया है।
यहां मुगलों की मिली असफलता
यहां हर सावन में और महाशिवरात्रि पर विशेष मेला लगता है। गांव के बच्चे, युवा और महिलाएं दूर-दूर से जल लेकर आते हैं और गंगाजल से अभिषेक करते हैं। मंदिर के रखरखाव से जुड़े मनोज फौजी बताते हैं कि मंदिर पर मुगलकाल में हमला हुआ था, शिवलिंग को कई बार नष्ट करने की कोशिशें हुईं, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली। स्थानीय लोगों का भरोसा है कि यह शिवलिंग स्वयं सिद्ध है, इसलिए इसे कोई नष्ट नहीं कर सका।
पूर्व प्राचार्य बलराम सिंह राजावत और पुजारी मौनी बाबा कहते हैं कि जो भक्त सच्चे मन से यहां संकल्प लेकर जल चढ़ाता है, उसके हर सपने पूरे होते हैं। गाँव के कई युवाओं को सेना में नौकरी, व्यापार में सफलता और रोजगार इसी मंदिर से आशीर्वाद के बाद मिला है।
युवाओं ने बनाया ग्रुप
इस क्षेत्र के युवाओं ने यहां के महादेव को लेकर सोशल मीडिया पर काफी कुछ लिखा है, रील्स भी बनाई है। युवाओं ने सोशल मीडिया के जरिये ‘देवेश्वर महादेव’ नामक ग्रुप बनाया है जो मंदिर से जुड़ी गतिविधियां, विशेष अनुष्ठान और विकास कार्यों की जानकारी साझा करता है। ग्रामीण चाहते हैं कि सरकार इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर संरक्षण करे ताकि आने वाली पीढ़ियां भी पांडवों की इस धरोहर को करीब से देख सकें।