ग्रामीणों को आशंका है कि जब ताप्ती में बाढ़ आती है तब पानी गांव तक आ जाता है। उन्हें पहाड़ों पर जाना पड़ता है या रिश्तेदारों के घर समय काटते हैं। ऐसे में परियोजना निर्माण के बाद ताप्ती में दूर तक पानी थमेगा। जद में किनारे के गांव आएंगे। हालांकि जल संसाधन विभागों के अफसर दावे कर चुके हैं कि कोई गांव डूब में नहीं आएगा।
यह संयुक्त परियोजना है। मप्र के 1,23,082 हेक्टेयर, महाराष्ट्र के 2,34,706 हेक्टेयर में सिंचाई की जानी है। भूजल भंडारण का विस्तार होगा। इससे बुरहानपुर और खंडवा जिलों की बुरहानपुर, नेपानगर, खकनार एवं खालवा तहसील के लोगों को लाभ मिलेगा।
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-परियोजना से राज्यों को 31.13 टीएमसी पानी मिलने के दावे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इतना पानी हासिल करने को बड़ी मात्रा में पानी स्टोरेज करना होगा।
-परियोजना निर्माण में मध्यप्रदेश की 3362 हेक्टेयर और महाराष्ट्र की 4756 हेक्टेयर जमीन का उपयोग होना बताया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब इतना बड़ा लैंडबैंक उपयोग हो रहा है तो स्वभाविक है कि किनारे के गांव प्रभावित होंगे।
मध्यप्रदेश: भरोसा करना मुश्किल
परियोजना कहने को ग्राउंड वाटर रिचार्ज है, पर हकीकत में पानी जमीन के ऊपर ही रोका जाना है। रामा काकोड़िया के अनुसार किनारे बसे भुरभुर, हरदा दादू, उमरघाट, पाली, चीरा, खुर्दा, चीमईपुर, मोहटा, पालंगा, जोगली, बाटला कला, रहटिया व जावरा महतपुर जैसे गांवों का डूबना तय है। यह कहना कि कोई गांव नहीं डूबेगा, वास्तविकता देख विश्वास नहीं किया जा सकता।
महाराष्ट्र: लड़ाई दिल्ली तक लड़ेंगे
हरदा भीलट के कमल पटेल का कहना है, उनके गांव को मिलाकर चिखलढ़ाना, कोबडा, पहाड़ीदम, कसई, गोंडीलावा, चटवाबोड, केकदाबोड, चेतर जैसे कई गांव ताप्ती से अधिकतम 500 मीटर के दायरे में हैं। कुछ की दूरी तो बहाव क्षेत्र से 200 मीटर रह जाती है। अफसर पानी रोकने वाली परियोजना थोप रहे हैं। हम इस लड़ाई को दिल्ली तक लेकर जाएंगे।