प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उप-केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में सर्वेक्षण टीम ने पाया कि उप-केंद्रों में दवाओं की भारी कमी रहती है। जांच में 105 उप-केंद्रों में से 37 (35.2 प्रतिशत) में मेटफॉर्मिन (मधुमेह की दवा) और 47 (44.8 प्रतिशत) में एम्लोडिपिन (उच्च रक्तचाप की दवा) के खाली डिब्बे मिले। स्वास्थ्य कर्मचारियों ने बताया कि औसतन सात महीने से इन दवाओं के डिब्बे खाली पड़े हैं, क्योंकि सालाना मिलने वाली दवाएं शुरुआती तीन से चार महीनों में ही खत्म हो जाती हैं।
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तीनों संस्थानों की स्टडी रिपोर्ट इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में पब्लिश हुई है। इस स्टडी में सात राज्यों के 19 जिलों में सरकारी और निजी स्वास्थ्य केंद्रों में मधुमेह और उच्च रक्तचाप के प्रबंधन की सुविधाओं की जांच की गई।
2021 और 2023 हुआ सर्वे
साल 2021 और 2023 में दो अलग-अलग चरणों में किए गए सर्वेक्षण में कुल 415 स्वास्थ्य केंद्रों का आंकलन किया गया, जिनमें से 75.7 प्रतिशत सरकारी और 24 प्रतिशत निजी अस्पताल शामिल थे। यह भी पढ़ें- गर्भावस्था में जरूर रखें इस बात का ध्यान, वरना मानसिक रोगी हो सकता है नवजात प्रशिक्षित कर्मचारी भी नहीं
रिपोर्ट के मुताबिक, स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सा उपकरण बेहतर हैं। चिकित्सक, अन्य स्टाफ और राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के दिशा निर्देशों से संबंधित तैयारियां 70त्न स्वास्थ्य केंद्रों में ही पाई गईं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार चिकित्सकों की 82.2त्न और सर्जनों की 83.2त्न की कमी है।
तीन संस्थाओं का अध्ययन
अध्ययन के मुताबिक गैर-संचारी रोगों की सालभर की दवाएं ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में महज ३ से ४ महीने में ही खत्म हो जाती हैं। बाकी के सात से आठ महीने तक दवाओं की अलमारियां खाली रहती हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, विश्व स्वास्थ्य संगठन और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने इस संबंध में संयुक्त अध्ययन किया।