ये तो केवल बीकानेर का उदाहरण है। समूचे प्रदेश की पड़ताल की जाए तो अनदेखी के ऐसे कई और भी उदाहरण सामने आ सकते हैं। हैरत की बात यह है कि मरीजों का जीवन बचाने में सबसे अहम ऑक्सीजन की जरूरत से जुड़े इन संयंत्रों को लेकर जिम्मेदार बेपरवाह हैं। ऐसी जरूरतों को सिर्फ आपातकालीन निवेश मानना बड़ी भूल है। करोड़ों रुपए खर्च कर चिकित्सा सेवाओं को दुरुस्त करने के नाम पर जरूरी संयंत्र लगाने व मेडिकल उपकरणों की खरीद का काम तो खूब होता है। लेकिन इनके रखरखाव का इंतजाम न हो तो ऐसे हालात बनते देर नहीं लगती। कोविड ने आपदा प्रबंधन को लेकर जो सबक सिखाया उसे सदैव याद रखने की जरूरत है अन्यथा ऐसे हालात से फिर दो-चार होना पड़ा तो आपदा प्रबंधन के तमाम उपाय धरे रह सकते हैं।