scriptसेवा की शिफ्ट कभी खत्म नहीं होती: डॉक्टर्स डे पर समर्पण की कहानियां | Patrika News
बीकानेर

सेवा की शिफ्ट कभी खत्म नहीं होती: डॉक्टर्स डे पर समर्पण की कहानियां

जहां डॉक्टरों ने न केवल इलाज किया, बल्कि भावनात्मक सहारा भी बने। बीकानेर के डॉक्टरों ने भी इन विषम परिस्थितियों में अस्पताल को अपना घर, और मरीजों को परिवार मानकर सेवा दी।

बीकानेरJul 01, 2025 / 11:20 am

dinesh kumar swami

बीकानेर से मानव सेवा की कहानियां, जो सफेद कोट के लिए दिलों में पैदा करती है एक खास जगहबीकानेर. एक जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर्स डे पर जब हम अपने जीवन के संकटमोचक चिकित्सकों का स्मरण करते हैं, तो सबसे पहले कोविडकाल की वे तस्वीरें सामने आती हैं, जहां डॉक्टरों ने न केवल इलाज किया, बल्कि भावनात्मक सहारा भी बने। बीकानेर के डॉक्टरों ने भी इन विषम परिस्थितियों में अस्पताल को अपना घर, और मरीजों को परिवार मानकर सेवा दी। डॉक्टरों पर कभी-कभार लापरवाही के आरोप लग सकते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि जब संकट की घड़ी आई, तो इन्हीं हाथों ने हौसले और जीवन दोनों को थामा।

संबंधित खबरें

मरीज की सेवा ही मेरा पहला धर्मः डॉ. सुरेंद्र कुमार वर्मा (अधीक्षक, पीबीएम अस्पताल)

सरकार ने मुझे प्रशासनिक जिम्मेदारी दी है, लेकिन मैं खुद को पहले डॉक्टर मानता हूं। रात में भी अस्पताल से फोन आता है तो उसे अटेंड करता हूं। मरीज को स्वस्थ देखना ही मेरी सबसे बड़ी संतुष्टि है। डॉक्टर वही, जो हर परिस्थिति में सेवा के लिए तत्पर रहे।
दुबारा जन्म मिला तो फिर डॉक्टर ही बनना चाहूंगा- डॉ. गुंजन सोनी (प्राचार्य, एसएन मेडिकल कॉलेज)

मरीजों की सेवा भगवान से भी बड़ी सेवा है। कई बार मरीज फीस भी नहीं दे सकता, लेकिन सेवा नहीं रुकनी चाहिए। कोविडकाल में हमने देखा कि इंसानियत कैसे जिंदा रहती है। डॉक्टरी सिर्फ पेशा नहीं, एक आध्यात्मिक जिम्मेदारी भी है।
हर 10 मिनट में आती थी एंबुलेंस, फिर भी नहीं हटे पीछे- डॉ. परमिंदर सिंरोही

कोविड की दूसरी लहर में हालात बेकाबू थे। हमें एमसीएच बिल्डिंग तक खोलनी पड़ी। चौबीस घंटे की ड्यूटी, पीपीई किट में घुटन… लेकिन पीछे हटने का सवाल ही नहीं था। मरीजों की जिंदगी हमारे हाथों में थी।
सेवा हमें विरासत में मिली- डॉ. स्वाति कोचर (प्रसूति रोग विभाग, पीबीएम)

मैंने अपने घर में बचपन से देखा मां-पापा, चाचा-चाची, भाई-भाभी… सभी डॉक्टर। मरीज की मुस्कराहट हमारे घर का दैनिक उत्सव थी। उसी भावना ने मुझे भी इस राह पर ला खड़ा किया। सेवा करना हमारे खून में है।
मरीज भगवान है, सेवा हमारा धर्मः डॉ. जगदीशचंद्र कुंकणा

जब कोई मरीज अस्पताल की दहलीज पर पहुंचता है, वह डॉक्टर से उम्मीद लेकर आता है। डॉक्टरी पैसे के लिए नहीं, सेवा के लिए होनी चाहिए। मरीज को ठीक करना ही नहीं, उसे भरोसा देना भी हमारी जिम्मेदारी है।
डॉक्टर्स डे सिर्फ तारीख नहीं, समर्पण का प्रतीक है- डॉ. रंजन माथुर (दंत चिकित्सक, विभागाध्यक्ष)

चिकित्सक शरीर ही नहीं, आत्मा और आत्मविश्वास को भी संवारता है। यह दिन समर्पण के प्रतीक है- उन डॉक्टरों के नाम, जिन्होंने दूसरों की भलाई के लिए खुद को भुला दिया। आने वाली पीढ़ी को भी इस सेवा धर्म को अपनाना चाहिए।

Hindi News / Bikaner / सेवा की शिफ्ट कभी खत्म नहीं होती: डॉक्टर्स डे पर समर्पण की कहानियां

ट्रेंडिंग वीडियो