जस्टिस विभु दत्ता गुरु की बेंच ने स्पष्ट किया कि जैविक और गोद लेने वाली या सरोगेट माताओं के बीच मातृत्व लाभों को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।कोर्ट ने यह भी कहा कि दत्तक ग्रहण, संतान पालन अवकाश केवल लाभ नहीं है, बल्कि एक ऐसा अधिकार है जो किसी महिला को उसके परिवार की देखभाल करने की मूलभूत आवश्यकता को पूर्ण करता है।
माँ बनना एक महिला के जीवन की सबसे स्वाभाविक घटना है। महिला के लिए बच्चे के जन्म को सुविधाजनक बनाने हेतु जो कुछ भी आवश्यक है, नियोक्ता को उसके प्रति विचारशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए और शारीरिक कठिनाइयों का एहसास होना चाहिए जो एक कामकाजी महिला को होती हैं।
संस्थान के एचआर को शासन के नियमों का पालन करना चाहिए
कोर्ट ने संस्थान की एचआर नीति का विश्लेषण करते हुए कहा कि यदि सेवा शर्तों से जुड़ा कोई विषय मैनुअल में शामिल नहीं है तो भारत सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित नियमों का पालन किया जाना चाहिए। 1972 के नियमों के अनुसार महिला सरकारी कर्मचारी जो दो से कम जीवित बच्चों की मां है, को यदि वह एक वर्ष से कम आयु के बच्चे को गोद लेती है, तो 180 दिन की चाइल्ड एडॉप्शन लीव दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा, ‘‘जब एचआर नीति चाइल्ड एडॉप्शन लीव पर मौन है और स्वयं की नीति के अनुसार संस्थान को केंद्र सरकार के नियमों को अपनाना चाहिए, तो स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता को 180 दिन की छुट्टी दी जानी चाहिए।’’
संविधान के अनुच्छेद 38, 39, 42 और 43 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि गोद लेने वाली माताएं भी जैविक माताओं की तरह गहरा स्नेह रखती हैं। उन्हें भी समान मातृत्व अधिकार मिलने चाहिए। कोर्ट ने जोर देते हुए कहा, ‘‘महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकार है, जिसे अनुच्छेद 14, 15, 21 और 19(1)(जी) द्वारा संरक्षित किया गया। यदि चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान नहीं होगा, तो महिलाएं कार्य छोड़ने के लिए मजबूर हो सकती हैं। यह महिला कर्मचारियों का स्वाभाविक और मौलिक अधिकार है, जिसे तकनीकी आधारों पर नकारा नहीं जा सकता।
मातृत्व के तरीके के आधार पर भेदभाव अनुचित
जस्टिस गुरु ने यह स्पष्ट किया कि सिर्फ इसलिए कि कोई महिला गोद लेने या सरोगेसी के माध्यम से मां बनी है, उसे मातृत्व लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता। नवजात शिशु को उसकी मां की देखभाल की जरूरत होती है और यह समय बच्चे के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के साथ-साथ मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा और महिलाओं के साथ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन का भी उल्लेख किया। अंतत: कोर्ट ने निर्णय दिया कि याचिकाकर्ता 1972 नियमों के तहत 180 दिन की गोद लेने की छुट्टी की अधिकारी हैं। चूंकि उन्हें मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017 के तहत पहले ही 84 दिन की छुट्टी मिल चुकी थी, इसलिए शेष को समायोजित किया जाए।
यह है मामला
वर्ष 2013 में याचिकाकर्ता की आईआईएम,
रायपुर में नियुक्ति हुई है। वर्तमान में सहायक प्रशासनिक अधिकारी हैं। उनका 2006 में विवाह हुआ है। 20 नवंबर 2023 को दो दिन की बच्ची को गोद लिया और 180 दिनों के लिए अवकाश के लिए आवेदन किया। संस्थान ने छुट्टी को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि एचआर नीति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।