पिछले 7 साल से स्थानीय छात्र पीजी में एडमिशन से वंचित हो रहे हैं। इसके बावजूद चिकित्सा शिक्षा विभाग स्थानीय छात्रों के हित में कोई कदम नहीं उठा रहा है। दो साल पहले मेरिट में आने के बावजूद प्रदेश के एक छात्र को पीजी में प्रवेश से वंचित किया गया। जब आखिरी राउंड में कुछ सीटें बच जाती हैं तो स्थानीय छात्रों को प्रवेश में प्राथमिकता दी जाती है। ऐसे में नॉन क्लीनिकल सीटों के अलावा कुछ नहीं बचता। छात्र इसमें प्रवेश नहीं लेना चाहते।
सात साल से आ रही समस्या
इंस्टीट्यूशनल डोमिसाइल के कारण पिछले 7 साल से ऑल इंडिया या दूसरे कोटे से दूसरे राज्यों में एमबीबीएस करने वाले
प्रदेश के छात्र यहां एडमिशन से वंचित हो रहे हैं। प्रदेश के 6 सरकारी व 3 निजी कॉलेजों में पीजी की 502 सीटें हैं। वर्ष 2017-18 से केवल प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस करने वाले छात्रों को पीजी सीट में एडमिशन देने का नियम बनाया गया था।
जानकारों के अनुसार, हर साल 350 से 400 छात्र अन्य प्रदेशों के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस में एडमिशन लेते हैं। इसके अलावा 100 के आसपास ऐसे छात्र हैं, जो विदेश में पढ़ाई करते हैं। सत्र 2020-21 में सरकारी नौकरी यानी इन सर्विस कैटेगरी के 4 डॉक्टरों को पीजी में एडमिशन देने का आदेश हाईकोर्ट ने दिया था। इन डॉक्टरों ने दूसरे राज्यों से एमबीबीएस की पढ़ाई की थी।