अधिकारियों के अनुसार सबसे ज्यादा सड़कें क्षतिग्रस्त ओवर लोडिंग वाहनों के दबाव व बरसात के कारण होती है। ऐसे में विभाग के साथ आमजन को भी इस समस्या से गुजरना पड़ता है। हालांकि क्षतिग्रस्त सड़कों की जानकारी आमजन को नहीं हो पाती है। ना ही सड़क की निर्माण अवधि व देखरेख की जिम्मेदारी एजेंसी के बारे में पता चल पाता है। इसके बाद शिकायत पर हुई कार्रवाई के बारे में पता नहीं चलता। एप के जरिये शिकायत मिलने पर सड़क की मरम्मत की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। फिर भी विभाग का प्रयास रहता है कि सड़कें गुणवत्ता पूर्ण बनाई जाए।
इस एप के जरिए सड़कों से संबंधित समस्या मिलने के बाद जिला से लेकर मुख्यालय स्तर के अधिकारी को जानकारी होगी। प्रदेश की अलग-अलग जिलों की क्षतिग्रस्त सड़कों की फोटो अपलोड़ करने के बाद मुख्यालय स्तर पर बैठे अधिकारी भी इसकी मॉनिटरिंग करेंगे। साथ ही जिला के अधिकारी संबंधित सडक़ को रिजर्व विभाग के द्वारा किया जाएगा ओर उसकी जानकारी एप में भी कर दी जाएगी। जिससे वो संबंधित सड़क के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेगा।
विभागीय अधिकारियों की माने तो आमतौर पर मुख्य सड़क निर्माण का कार्य सार्वजनिक निर्माण विभाग का होता है। जबकि शहर की अंदरुनी सडक़ें नगर परिषद या नगर पालिका बनाते है, लेकिन अब आरएसआरडीसी व स्टेट हाइवे ऑथोरेटी द्वारा सडक़ों का निर्माण कराया जाता है। उक्त विभाग द्वारा अपनी आवंटित बजट के हिसाब से सड़कों का कार्य करवाते है।
पीडब्ल्यूडी की शहर में सड़कों की लंबाई- 60 किलोमीटर
प्रतिवर्ष बरसात से क्षतिग्रस्त सड़कों पर रखरखाव का खर्चा – 7 से 8 करोड़ रुपए
जिले में विभाग की सड़कें- 2900 किलोमीटर
जिले की 86 नोन पेचबल सड़क की लंबाई 255.38 किलोमीटर है, जिनके 123 करोड़ रुपए 30 लाख रुपए के प्रस्ताव भेज रखे है।
जिले की सड़कों के क्षतिग्रस्त होने का सबसे बड़ा कारण ओवर लोडिंग वाहनों का दबाव व बरसात होना है। अब एप आने के बाद इस व्यवस्था में बेहतर बदलाव होगा। एप तैयार कर इसमें डाटा फीडिंग जारी है।
इंद्रजीत मीणा, अधीक्षण अभियंता, सार्वजनिक निर्माण विभाग,बूंदी