ग्रामीण क्षेत्रों में भी दिख रहा होम स्टे का असर
छतरपुर जिले में ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पांच गांवों में विशेष रूप से विलेज होम स्टे बनाए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की सांस्कृतिक विरासत, खान-पान और रहन-सहन को जानने के इच्छुक विदेशी पर्यटक इन होम स्टे की ओर आकर्षित हो रहे हैं। जिले के राजनगर ब्लॉक के धमना और बसाटा, बिजावर ब्लॉक के रामनगर और चंदनपुरा तथा नौगांव ब्लॉक के ग्राम गोरा में होम स्टे के लिए विशेष आवासीय निर्माण कार्य किया गया है। यह योजना न केवल पर्यटकों को देसी अनुभव दे रही है, बल्कि ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर रोजगार भी उपलब्ध करा रही है।
नहीं माना जाएगा वाणिज्यिक उपयोग
होम स्टे योजना को लेकर राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई संपत्तिधारक अपने आवासीय भवन के एक हिस्से को पर्यटकों के लिए उपलब्ध कराता है, तो इसे वाणिज्यिक संपत्ति के रूप में नहीं माना जाएगा। इस योजना के अंतर्गत बेड एंड ब्रेकफास्ट की तर्ज पर घरेलू माहौल में भोजन, ठहरने, और मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है, जिससे पर्यटकों को स्थानीय जीवनशैली का अनुभव होता है और घर के मालिक को अतिरिक्त आमदनी होती है।
ग्रामीण व्यंजनों से भी बढ़ रही आमदनी
नोडल अधिकारी मनोज सिंह के अनुसार प्रदेश में विलेज होम स्टे कॉन्सेप्ट तेजी से आगे बढ़ रहा है। छतरपुर जिले में खजुराहो के आसपास बसाटा, धमना सहित पांच स्थानों पर होम स्टे तैयार किए गए हैं। इन घरों में रहने वाले परिवार अपने पारंपरिक घर को ही पर्यटन स्थल में बदलकर पर्यटकों के लिए आवास, भोजन और देसी अनुभव उपलब्ध करा रहे हैं। उन्होंने बताया कि होम स्टे में बुंदेली व्यंजन जैसे बाटी, कढ़ी, चने की घुघरी, मक्का-झुंगी जैसे खास पकवान बनाए जा रहे हैं। इससे ग्रामीण महिलाओं और स्थानीय रसोइयों को भी रोजगार और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढऩे का मौका मिला है।
पर्यटकों को भी हो रहा लाभ
होम स्टे योजना से पर्यटकों को बजट होटल की तुलना में सस्ती, सुरक्षित और घरेलू सुविधा प्राप्त हो रही है। साथ ही उन्हें क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता, लोक कला, संगीत और जीवनशैली को करीब से जानने का अवसर मिलता है। यह अनुभव पर्यटकों को पारंपरिक होटल सुविधाओं से कहीं अधिक गहराई और जुड़ाव प्रदान करता है। जिले में तेजी से लोकप्रिय हो रहा होम स्टे कॉन्सेप्ट पर्यटन और रोजगार का बेहतरीन संगम बनता जा रहा है। यह योजना आने वाले समय में ग्रामीण आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक संरक्षण का मजबूत जरिया बन सकती है।