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छतरपुर में खड़ी मौत की दीवारें, 100 साल पुराने जर्जर भवनों की छांव में सांस लेता शहर, प्रशासन चुप

छतरपुर की पुरानी बस्ती, चौक बाजार, गोवर्धन टॉकीज क्षेत्र, बड़ी कुजरेहटी, शुक्लाना मोहल्ला, असाटी मोहल्ला, टिकरया मोहल्ला, लोधी कुड्यां और परवारी मोहल्ला जैसे क्षेत्र आज इन जर्जर भवनों से बुरी तरह प्रभावित हैं।

छतरपुरJun 23, 2025 / 08:57 am

Dharmendra Singh

jarjar bhavan

जर्जर भवन

शहर की ऐतिहासिक पहचान बने कई भवन आज खुद एक जीवित खतरा बन चुके हैं। एक तरफ ये 100 से 150 वर्षों से शहर की संस्कृति और विरासत के प्रतीक रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ये अब धराशायी होने की कगार पर खड़ीं दीवारें बन गए हैं। समय पर मरम्मत न मिलने, उचित देखरेख की कमी और प्रशासनिक उदासीनता के चलते ये इमारतें आज जनहानि का सीधा निमंत्रण दे रही हैं।

जर्जर भवनों की खौफनाक सच्चाई: मौत के साए में जिंदगी

छतरपुर की पुरानी बस्ती, चौक बाजार, गोवर्धन टॉकीज क्षेत्र, बड़ी कुजरेहटी, शुक्लाना मोहल्ला, असाटी मोहल्ला, टिकरया मोहल्ला, लोधी कुड्यां और परवारी मोहल्ला जैसे क्षेत्र आज इन जर्जर भवनों से बुरी तरह प्रभावित हैं। इन मोहल्लों में अधिकांश भवन न सिर्फ जर्जर अवस्था में हैं, बल्कि *दैनिक उपयोग में भी लिए जा रहे हैं। कहीं इन भवनों में दुकानें संचालित हो रही हैं, कहीं गोदाम बने हुए हैं, और कुछ में तो अब भी लोग निवास कर रहे हैं। इन भवनों की दीवारें फटी हुई हैं, छतें झुकी हुई हैं और नींव कमजोर पड़ चुकी है। बारिश के मौसम में इनकी हालत और भी बदतर हो जाती है। दीवारों में नमी भरती है, जिससे उनकी पकड़ कमजोर होती जाती है। ऐसे में ये भवन किसी भी वक्त बिना चेतावनी के ढह सकते हैं।

कोतवाली के पास खड़ा खतरा: पॉलीथिन में लिपटी मौत

सबसे भयावह दृश्य कोतवाली थाना परिसर के पास देखने को मिलता है। मंदिर के सामने मुख्य सडक़ पर खड़ा एक निजी भवन पूरी तरह से जर्जर है। भवन की ऊपरी संरचना को सिर्फ पीली पॉलीथीन से ढंका गया है, जिससे इसकी खस्ताहाल स्थिति छुपाई जा सके। इस भवन के सामने चार ठेले वाले और एक विद्युत ट्रांसफार्मर स्थित हैं। भीड़भाड़ वाले इस क्षेत्र में यह भवन यदि गिरता है, तो दर्जनों जानें जा सकती हैं।

कागजों में कार्रवाई, ज़मीनी हकीकत में शून्य

नगर पालिका ने बीते वर्ष छतरपुर शहर में 85 जर्जर भवनों को चिन्हित किया था। इनमें 6 भवन पीडब्ल्यूडी के थे, जिनकी जिम्मेदारी संबंधित विभाग पर छोड़ी गई थी। शेष निजी और शासकीय भवनों की सूची तैयार कर नगर पालिका ने राजस्व विभाग और एसडीएम को भेज दी। लेकिन, लगभग 10 महीने बीत जाने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यह स्पष्ट करता है कि या तो जिम्मेदार विभागों के बीच समन्वय की कमी है या फिर गंभीरता का अभाव।

बारिश बन सकती है विनाश का कारण

छतरपुर में आगामी कुछ दिनों में मानसून दस्तक देने वाला है। विशेषज्ञों का मानना है कि जर्जर भवनों की दीवारों में पानी भरने से उनमें और दरारें पड़ेंगी, जिससे उनका धराशायी होना लगभग तय है। यदि ऐसी कोई घटना बाजार, सडक़ या स्कूल के पास होती है, तो उसकी त्रासदी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्रशासन के पास यह अंतिम मौका है कि वह इस दिशा में निर्णायक कार्रवाई करे, वरना परिणाम बेहद दुखद हो सकते हैं।

कलेक्टर के निर्देश और असहाय अमल

अगस्त 2024 में जिला कलेक्टर द्वारा आयोजित एक बैठक में स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि एसडीएम, तहसीलदार, ईई पीडब्ल्यूडी, सीईओ जनपद, सीएमओ नगर पालिका और ग्राम पंचायतें मिलकर खतरनाक भवनों और संरचनाओं का सर्वे करें और उन्हें प्राथमिकता पर गिराएं। इसके साथ ही कंट्रोल रूम के माध्यम से आम नागरिकों से भी जर्जर भवनों की जानकारी मांगी गई थी। हालांकि, यह निर्देश केवल बैठक की कार्यवाही तक सीमित रह गए। न तो व्यापक सर्वे किया गया और न ही किसी भवन को गिराने की प्रक्रिया पूरी हुई।

प्रशासनिक जवाबदेही और टालमटोल

जब इस मुद्दे पर एसडीएम अखिल राठौर से बात की गई तो उन्होंने कहा नगर पालिका द्वारा चिन्हित भवनों पर जल्द ही अभियान चलाकर कार्रवाई की जाएगी। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी प्रकार की जनहानि न हो। वहीं नगर पालिका सीएमओ माधुरी शर्मा ने बताया कि जिन भवनों को पहले नोटिस जारी किया गया था, अब उन्हें अंतिम चेतावनी दी जा रही है। यदि फिर भी मकान खाली नहीं किए गए, तो नगर पालिका कानून के तहत सख्ती से उन्हें गिरवाएगी। हालांकि, बीते एक साल से यही आश्वासन दिए जा रहे हैं जमीनी हकीकत में बदलाव ना के बराबर है।

यह हैं मुख्य समस्याएं

1. कार्यवाही में विभागीय टकराव- नगर पालिका, राजस्व और पीडब्ल्यूडी विभागों में तालमेल की कमी।

2. लंबी फाइल प्रक्रिया- एक भवन गिराने के लिए कई स्तरों पर अनुमति और फाइलों की जांच आवश्यक।
3. जनजागरूकता की कमी- अधिकतर लोग यह नहीं जानते कि अपने क्षेत्र के जर्जर भवन की शिकायत कहां करें।

4. राजनीतिक दबाव- कुछ मामलों में भवन मालिकों का राजनीतिक संरक्षण होने के कारण कार्रवाई में देरी होती है।

पत्रिका व्यू

छतरपुर शहर की जनता आज सिर पर खतरे की छांव में जीवन जी रही है। जहां भवनों के नीचे दुकानें चल रही हैं, वहीं लोग उन दीवारों के करीब सो रहे हैं जो कभी भी गिर सकती हैं। प्रशासन के पास अभी भी समय है कार्रवाई करके न केवल जनहानि रोकी जा सकती है, बल्कि एक सकारात्मक उदाहरण भी प्रस्तुत किया जा सकता है।

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