जानकारी के अनुसार अफीम की फसल इस बार अच्छी हुई है। इससे अफीम के डोडे में से निकलने वाले पोस्ता दाना, जिसे बोल चाल की भाषा में खस-खस भी कहा जाता है, अच्छी मात्रा में निकलने की आस से किसान उत्साहित हैं। किसानों के साथ व्यापारियों को भी इस वर्ष अच्छे भावों की उम्मीद है। इसी संभावना के चलते किसान पोस्त दाने को बेचने के लिए अभी बाजार में लाने का मन नहीं बना रहे हैं।
किसानों को अफीम फसल से मिलता आर्थिक संबल
किसानों को सबसे अधिक आर्थिक सम्बल प्रदान करने वाली अफीम की फसल सरकार लेकर उसका दाम चुकाती है। इसके डोडे से निकलने वाले पोस्त दाने से भी किसानों को भरपूर आय होती है। साथ ही इसके डोडा चूरा जिसे अब सरकार खुद ले लेती है या नारकोटिक्स विभाग अपनी निगरानी में जलवाता है। इसके गीले एवं सूखे पत्ते भी अफीम की पान्सी के नाम से बिकते हैं। जिसे रसोई में ग्रहणियां चने की दाल में मिलाकर बनाती हैं।
दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा खपत
देश के दक्षिण राज्यों में पोस्त दाने की सबसे अधिक खपत होती है। इसके वहां पकवान तो बनते ही हैं, सब्जियों में भी मसाले की तरह इसका प्रयोग किया जाता है। राजस्थान में इसे यहां सब्जियों में तो नहीं मिलाया जाता। लेकिन, इसका हलवा बनाया जाता है। गर्मी के दिनों में इसका सेवन ठण्डाई के साथ किया जाता है। देशी दवाइयों में भी इसका उपयोग किया जाता है। यह है स्वास्थ्य लाभ
पोस्त दाना जिसे खस-खस भी कहा जाता है। इसके प्रयोग से पाचन क्रिया सही होती है। अच्छी नींद में फायदेमंद होता है। हड्डियों को मजबूत करता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर एवं ओमेगा-3 जैसे पोषक तत्व होते हैं। जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। पोस्ते दाने के भावों में एकाएक उलट फेर बने रहने की सम्भावनाएं बनी रहती हैं। पोस्ता दाने के भाव जमीन से आसमान पर भी पहुंच जाते हैं तो कभी आसमान से जमीन पर भी आ जाते हैं।
अगर सरकार पोस्त दाने का आयात खोल देती है तो तुर्की से आया पोस्त दाना भावों में भारी उलटफेर कर देता है और भाव कम हो जाते हैं। इस वर्ष अप्रेल माह में नया पोस्ता दाना आने से भावों में उछाल आया है। अप्रेल के दूसरे सप्ताह में ही भावसीधे एक लाख 25 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए। जबकि गत वर्ष 85 से 90 हजार रुपए प्रति क्विंटल भाव था। इस वर्ष यदि तुर्की से पोस्ते दाने का आयात नहीं हुआ तो भाव डेढ़ गुना तक भी हो सकते हैं।