scriptतीर्थ पुष्पगिरि में दो मनीषियों का ‘मां, आत्मा और समाज’ पर संवाद | MP News Editor in Chief Patrika Group Gulab Kothari visited Ganacharya Pushpadant Sagar Maharaj | Patrika News
देवास

तीर्थ पुष्पगिरि में दो मनीषियों का ‘मां, आत्मा और समाज’ पर संवाद

MP News: पुष्पगिरि जैन तीर्थ पर पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की गणाचार्य पुष्पदंत सागर से चर्चा, दो गंभीर विचारकों के बीच आत्मा, समाज और संस्कृति को लेकर एक वैचारिक यात्रा

देवासMay 27, 2025 / 11:27 am

Sanjana Kumar

Editor in Chief patrika group gulab kothari

MP News: पुष्पगिरि जैन तीर्थ पर पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज से भेंट की।

MP News: हाल ही में पुष्पगिरि जैन तीर्थ पर पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज के दर्शन किए। इस दौरान दो गंभीर विचारकों के बीच आत्मा, समाज और संस्कृति को लेकर एक वैचारिक यात्रा जैसी रही। संवाद में अध्यात्म की ऊंचाइयों से लेकर समाज की गहराइयों तक की चिंतन-धारा बहती रही। विशेष रूप से नारी की भूमिका, मातृत्व की महत्ता और मूल्य-आधारित समाज-निर्माण जैसे विषयों पर व्यापक विमर्श हुआ।

यहां पढ़ें संवाद

गुलाब कोठारी: मां वह धरती है, जो जीवन को जन्म ही नहीं देती, उसे संस्कार भी देती है। आज अगर समाज में विघटन दिख रहा है तो उसका कारण यह भी है कि हम मातृत्व को केवल जैविक प्रक्रिया मानने लगे हैं, उसकी सांस्कृतिक भूमिका को भूल बैठे हैं।
गणाचार्य पुष्पदंत सागर:

नारी केवल देह नहीं है, वह एक ऊर्जा है -सृजन की, संरक्षण की और परिवर्तन की। जब तक समाज में नारी का स्थान केवल एक उपभोक्ता वस्तु की तरह देखा जाएगा, तब तक हम आत्मिक प्रगति की ओर नहीं बढ़ सकते।

कोठारी: हमने अपने शास्त्रों में नारी को %शक्ति% कहा है, लेकिन व्यावहारिक जीवन में उसे %निर्बल% मानते हैं। यही विरोधाभास हमारी सबसे बड़ी सामाजिक भूल है।

गणाचार्य: जिस समाज में स्त्री उपेक्षित हो, वहां संस्कृति केवल रीति बन जाती है, नीति नहीं। मां के संस्कार ही वह बीज हैं जिनसे मूल्यनिष्ठ समाज विकसित होता है।
गणाचार्य: अध्यात्म का अर्थ ही है— अपने भीतर झांकना। जब पुरुष अपने भीतर झांकेगा, तो उसे नारी के बिना अपनी अधूरी सत्ता का भान होगा। हमारे भीतर जो बीज दबा पड़ा है, वह परमात्मा का बीज है। हम सब बीज हैं, लेकिन उसे बोया नहीं जा रहा, उसे जगाया नहीं जा रहा। आत्मा और मन के बीच जो सेतु है, उसे हमने बनाना ही छोड़ दिया है। विचारों में सात्विकता नहीं होगी तो आत्मा तक कैसे पहुंचेंगे? जब कामनाएं, विचार, इच्छाएं – सब सात्विक हो जाते हैं, तो भीतर आनंदमय मिलन होता है। वही मिलन जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।

कोठारी: आज हमने आत्मा से संवाद बंद कर दिया है — और मां से दूरी इसी का सबसे दुखद प्रमाण है। अगर आत्मा को रंगना है, तो पहले उस पर की धूल हटानी होगी। यही तो हमारी परंपरा का विज्ञान है।
गणाचार्य: आज हम हर पदार्थ, हर आकर्षण की ओर दौड़ रहे हैं – लेकिन मां के पास कोई ठहर नहीं रहा। हमारा जन्म हुआ है ‘अपने पास’ लौटने के लिए। भीतर जो परमात्मा बैठा है, उसे जाग्रत करना है। जैसे मेहंदी लगाने से पहले हाथ धोना पड़ता है, तेल लगाना पड़ता है -तभी वह रंगती है। वरना वह हरा पत्ता जैसा लगाकर भी फीकी रह जाएगी। सोचिए – पत्ता तो हरा है, लेकिन रंग लाल चढ़ता है। चमड़ी अलग, खून अलग – लेकिन रंग कहां से आता है? भीतरी तैयारी से आता है। यही तप है, यही साधना है, और यही आत्मा की राह है।

Hindi News / Dewas / तीर्थ पुष्पगिरि में दो मनीषियों का ‘मां, आत्मा और समाज’ पर संवाद

ट्रेंडिंग वीडियो