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Mahabharat Secret: युधिष्ठिर ने कुंती को क्यों दिया था श्राप, जानिए रहस्य

Mahabharat Secret: धर्मराज युधिष्ठिर के इस श्राप को समाज में सत्य और पारदर्शिता को बनाए रखने का प्रतीक माना गया है। क्योंकि कुंती युधिष्ठिर को यह राज पहले बता देतीं तो शायद महाभारत का युद्ध नहीं होता।

जयपुरDec 24, 2024 / 09:03 am

Sachin Kumar

Mahabharat Secret

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Mahabharat Secret: महाभारत का युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध माना गया है। इस युद्ध की कहानियां आपने खूब सुनी होंगी। लेकिन इसमें कई रहस्यमयी घटनाएं और प्रसंग हैं। जिनमें युधिष्ठिर द्वारा अपनी मां कुंती को श्राप देने का प्रसंग भी शामिल है। यह घटना महाभारत युद्ध के बाद की है। आइए जानते हैं इस प्रसंग का पूरा रहस्य।

युधिष्ठर का सवाल

मान्यता है कि जब 18 दिन बाद महाभारत युद्ध समाप्त हुआ तो इसको लेकर धर्मराज युधिष्ठिर अत्यंत दुखी थे। उनको युद्ध के कारण हुए विनाश और अपने ही रिश्तेदारों की मृत्यु का भारी पश्चाताप था। जब युद्ध की वजह से सबकुछ नष्ट हो गया तो धर्मराज अपनी मां कुंती और भाईयों को लेकर आत्मंथन करने लगे। अचानक युधिष्ठिर ने अपने परिवार के सदस्यों से सवाल किया कि यह सब क्यों हुआ।

कुंती ने बताया राज

धर्मराजा के इस सवाल का रहस्यमय जबाव देते हुए माता कुंती ने कहा कि कर्ण जिसे तुमने रणभूमि में मार गिराया वह असल में तुम्हारा बड़ा भाई था। जब माता की यह बात युधिष्ठिर ने सुनी तो वह आश्चर्यचकित रह गये और गहरा दुख हुआ। मान्यता है कि माता कुंती की इस बात को छुपाने से धर्मराज नाराज हुए। यह सत्य जानने के बाद युधिष्ठिर को गहरा धक्का लगा। उन्होंने अपनी मां कुंती पर आरोप लगाते हुए कहा कि अगर उन्होंने पहले ही यह सच बताया होता, तो यह विनाशकारी युद्ध टल सकता था।

युधिष्ठिर का मां को श्राप

धार्मिक मान्यता है कि इस घटना के बाद धर्मराज युधिष्ठिर बहुत क्रोधित हुए और अपनी मां कुंती को श्राप दिया कि आज से कोई भी महिला अपने गुप्त रहस्य को छिपा नहीं पाएगी। उनका यह श्राप समाज में महिलाओं के प्रति पारदर्शिता और ईमानदारी को लेकर एक गहरी सीख के रूप में देखा गया।

प्रसंग का महत्व

नैतिकता और सत्य- इस घटना से यह सीख मिलती है कि सच को छुपाने की वजह से इतने घातक परिणाम हो सकते हैं कि पूरे कुल नष्ट हो सकते हैं।

रिश्तों की अहमियत- यह प्रसंग महाभारत के पारिवारिक और सामाजिक संबंधों की उलझन को दर्शाती है।
न्याय और कर्तव्य- इस घटना से युधिष्ठिर के चरित्र का पता चलता है कि वह न्याय और सत्य को सर्वोपरि मानते थे।

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