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Mahamandaleshwar Banane ke Niyam: क्या है महामंडलेश्वर का दर्जा, कब हुई इसकी शुरुआत और कैसे मिलता है पद

Mahamandaleshwar Banane ke Niyam: महामंडलेश्वर बहुत ही सम्मानजनक और प्रतिष्ठित उपाधि है। इस पद को प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक समाज सेवा, धार्मिक अनुष्ठान और कठोर तपस्या करनी होती है।

जयपुरJan 29, 2025 / 02:38 pm

Sachin Kumar

Mahamandaleshwar Banane ke Niyam

महामंडलेश्वर बनने के नियम

Mahamandaleshwar Banane ke Niyam: सनातन धर्म में संसारिक मोह माया को छोड़कर संन्यासी बनना बहुत कठिन कार्य है। इस राह पर चलने वाले साधु-संतों को ज्ञान, शिक्षा और तपस्या के साथ सामाजिक सुधार और धर्म रक्षा का भी ध्यान में रखना पड़ता है। इसलिए सन्यासियों के लिए भी पद-प्रतिष्ठा प्रदान करने का विधान होता है। आइए जानते है महामंडलेश्वर का दर्जा कब और किसको मिलता है? इसकी शुरुआत कैसे हुई?
महामंडलेश्वर एक सम्मानजनक और प्रतिष्ठित धार्मिक उपाधि है। हिंदू संतों और संन्यासियों को दी जाती है। यह उपाधि विशेष रूप से अखाड़ों में उच्च पद प्राप्त संतों को प्रदान की जाती है। ऐसे संत जो अपने आध्यात्मिक ज्ञान, तपस्या और नेतृत्व के कारण एक बड़े धार्मिक समुदाय का मार्गदर्शन करते हों।

महामंडलेश्वर पद की शुरुआत

इस उपाधि की शुरुआत प्राचीनकाल से मानी जाती है। लेकिन वर्तमान में यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित संन्यास परंपरा और अखाड़ों की संरचना से जुड़ी हुई है। आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म को संगठित करने के लिए चार पीठों की स्थापना की थी। इसके साथ ही साथ ही संन्यासी अखाड़ों की व्यवस्था को भी सुव्यवस्थित किया था। समय के साथ, विभिन्न अखाड़ों में महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाने लगी। जिससे वे अखाड़े के प्रमुख या उच्च पदाधिकारी बनते गए।

कैसे मिलता है महामंडलेश्वर पद

महामंडलेश्वर की उपाधि प्राप्त करने की काफी कठिन प्रक्रिया है। यह पद उन संतों और संन्यासियों को मिलता है जो वर्षों तक संन्यास धर्म का पालन, कठोर तपस्या और समाज सेवा में संलग्न रहते हैं।

महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया

संन्यास ग्रहण: व्यक्ति को सबसे पहले संन्यासी बनना होता है और किसी मान्यताप्राप्त अखाड़े से जुड़ना पड़ता है।

गुरु परंपरा: अखाड़े के वरिष्ठ संतों से धार्मिक शिक्षा प्राप्त करनी होती है।
सेवा और तपस्या: कई वर्षों तक समाज सेवा, धार्मिक अनुष्ठान और कठोर तपस्या करनी होती है।

अखाड़े की स्वीकृति: जब कोई संन्यासी इन योग्यताओं को प्राप्त कर लेता है, तब अखाड़े की पंचायती सभा उसे महामंडलेश्वर पद देने पर विचार करती है।
राज्याभिषेक (पट्टाभिषेक): अंतिम रूप से किसी कुंभ मेले या विशेष धार्मिक आयोजन के दौरान महामंडलेश्वर की पदवी दी जाती है। इस अवसर पर पूरे अखाड़े के संतगण और श्रद्धालु उपस्थित रहते हैं।

महामंडलेश्वर का महत्व

महामंडलेश्वर न केवल धार्मिक गुरुओं में उच्च स्थान रखते हैं, बल्कि वे समाज को आध्यात्मिक और नैतिक दिशा भी प्रदान करते हैं। उनका कार्य धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करना, सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करना, मठों और मंदिरों की देखरेख करना और समाज सुधार से जुड़े कार्यों में संलग्न रहना होता है।

प्रमुख अखाड़े और महामंडलेश्वर

भारत में 13 प्रमुख अखाड़े हैं। जिनमें जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा आदि शामिल हैं। हर अखाड़े में महामंडलेश्वर होते हैं। जो संगठन का नेतृत्व करते हैं।
महामंडलेश्वर का पद हिंदू धर्म में एक प्रतिष्ठित उपाधि है, जो केवल समर्पित और योग्य संन्यासियों को ही प्राप्त होती है। यह पद धार्मिक अखाड़ों की परंपरा और भारतीय संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। महामंडलेश्वर समाज को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने के साथ-साथ धार्मिक अखाड़ों की परंपराओं को भी आगे बढ़ाते हैं।
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