लाइसेंस 3-4 को लेकिन प्लांट 30 संचालित
जिले में पानी के कारोबार का लाइसेंस सिर्फ 3-4 लोगों के पास है। जबकि हकीकत में 30 से अधिक जगहों पर पानी की पैकिंग के प्लांट खुल गए हैं। खाद्य विभाग और भारतीय मानक ब्यूरो के मापदंडों को खुला उल्लंघन करते हुए मनमाने ढंग से पानी का कारोबार कर रहे ये लोग आम जनता के स्वास्थ्य को भी खतरे में डाल रहे हैं। नियम तो यह भी है कि टैंकर से सप्लाई किया जाने याला पानी भी पहले जांच के दायरे से गुजारा जाएगा, लेकिन यहां तो टैंकर तो छोड़िए कैम्पर और बोतलबंद पानी की जांच भी नहीं की जाती।
ऐसे बनाया जा रहा प्यासों को बेवकूफ
आरओ प्लांट से पानी लाकर बाजार में देने वाले एक युवक ने बताया कि आरओ के नाम पर कच्चा पानी बर्फ में ठंडा करके शहर में बेचा जा रहा है। इसी तरह पानी के पाउच और बोतलों का गोरखधंधा भी तेजी से चल निकला है। उसका कहना था कि एक आरओ प्लांट से 300 से 400 कैम्पर प्रतिदिन शहर में सप्लाई हो रहे हैं। जिनकी रेट 20 से 25 रुपया तक है। यह भी पढ़े –
एमपी की सबसे बड़ी अंडरग्राउंड टनल पर आया बड़ा अपडेट, जल्द होगा तैयार ऐसे मिलता है प्लांट का लाइसेंस
प्लांट के लिए लाइसेंस कंपनी के रजिस्ट्रेशन और जमीन आदि की व्यवस्था के बाद मिनरल वाटर प्लाट के लिए लाइसेंस लेना होता है। इसके लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंटर्ड दिल्ली को आवेदन करना होता है। ब्यूरो के अधिकारी मौके पर जांच करते हैं। पानी का नमूना लेते हैं। फिर अनुमति पत्र देते हैं। यह पत्र जिला खाद्य विभाग के यहां देते हुए आवेदन करना होता है। औषधि प्रशासन विभाग भौतिक जांच के बाद प्लांट का लाइसेंस जारी करता है। स्थानीय स्तर पर भी अनुमति लेना पड़ती हैं।
दृषित पानी से होती है कई बीमारियां
जिला अस्पताल के डॉ. रितेश कांसल के अनुसार पानी के यदि गुणवत्ता की सही से जांच नहीं हो रही है और यह दूषित है, तो इस प्रकार का पानी पीने से लोग कई प्रकार की बीमारियों का शिकार हो सकते है। दूषित पानी में अमीबा नामक एक कीटाणू होता है जो आंत में जाकर पेट को खराब कर देता है। इसके अलावा ई-कोलाई से लोग डायरिया का लोग शिकार हो सकते है। पीलिया व टायफाइड भी हो सकता है। साथ ही पाचन क्रिया भी प्रभावित हो सकती है।
नामी कंपनियों के नकली स्टीकर
मशीनों से जिस पानी को शुद्ध करके पीने लायक बनाया जाता है उसे आम भाषा में मिनरल वाटर कहते हैं। इस मिनरल वाटर को पैकेजिंग कर मार्केट में बेचा जाता है। यह बिजनेस शुरू करने के लिए पहले एक कंपनी या फर्म बनाई जाती है। कंपनी एक्ट के तहत इसका रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। कंपनी का पैन नंब और जीएसटी नंबर आदि की भी जरूरत होती है। वाटर प्लांट लगाने के लिए जमीन, बोरिंग, आरओ और चिलर मशीन व कैन आदि रखने के लिए 1000 से 1500 वर्ग फिट जगह होनी चाहिए। पानी के स्टोरेज के लिए टंकिर्यों की भी व्यवस्था हो। पानी की बोतलों पर नामी कंपनियों के लोगो की नकल कर स्टीकर लगाए जा रहे हैं। यह भी पढ़े –
एमपी को मिलेगी 2 नए IT Parks की सौगात, 250 करोड़ लागत, हजारों को रोजगार यहां चल रहा कारोबार
गुना शहर में देखा जाए तो पानी का व्यापार लक्ष्मीगंज, घोसीपुरा, दुर्गा कॉलोनी, नई सड़क, बूढे बालाजी, एबी रोड, कैट क्षेत्र के साथ ही बाहरी क्षेत्रों में लोगों द्वारा मनमाने तौर पर पानी की दुकानें चलाई जा रही है। शहर के कई स्थानों में पानी की दुकानें सजाकर कारोबार किया जा रहा है। जिस केन से ठंडे पानी की सप्लाई की जाती है, उसमें संस्था का नाम व आईएसआई सर्टिफाइड होने का मार्का लगा होना चाहिए, लेकिन पानी की सप्लाई करने वाले अधिकांश कारोबारियों की केन में इसका उल्लेख नहीं होता।
कारोबारियों द्वारा साधारण तौर पर एक केन में सादा पानी भर कर सप्लाई किया जा रहा हैं। वे स्टेशन पर तो कई कंपनियों का बोतलबंद पानी खुलेआम बि रहा है। यहां रेट से अधिक में पानी की बोतल बेची जाती हुई मिलीं। इन बोतलों पर ब्रांडेड कंपनियों के लोगो की कॉपी कर मिलते-जुलते नाम की चिट लगा दी जाती है। वहीं बाजार में एक रुपए में बिकने वाला पानी का पाउच दो से तीन रुपए में बेचा जा रहा है।
जिम्मेदार विभाग ने क्या कहा ?
खाद्य औषधि विभाग अधिकारी नवीन जैन के अनुसार जिले में पेकिंग करने वाली तीन कंपनियां रजिस्टर्ड हैं। इसके अलावा संचालित किए जा रहे आरओ प्लांट और मिनरल वाटर प्लांटों के दस से बारह रजिस्ट्रेशन हैं। समय-समय पर पानी का सेम्पल लिया जाता है। इनके पानी की जांच भोपाल स्थित लैब में कराई जाती है। यदि अवैध रूप से प्लांट चल रहे हैं तो हम कार्रवाई करेंगे।