दो दिन के दौरे पर ग्वालियर आए हेल्थ कमिश्नर तरुण राठी ने शुक्रवार को राज्य स्वास्थ्य प्रबंधन एवं संचार संस्थान में ग्वालियर और चंबल संभाग के चिकित्सा अफसरों की बैठक ली। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अस्पताल में मरीजों को बेहतर इलाज के साथ जरूरी सुविधाएं भी मिलना चाहिए। यह जिम्मेदारी आप लोगों की है। इसमें लापरवाही नहीं हो इसका ध्यान रखो। इस बार इसे समझाइश समझो इसके बाद गलती पर सीधे एक्शन होगा। बैठक में जिला अस्पताल से मरीजों को जेएएच रेफर करने का मुददा भी गर्म रहा।
मातृ और शिशु मृत्यु दर बड़ा चैलेंज कमिश्नर राठी ने कहा ग्वालियर, चंबल संभाग में स्वास्थ्य विभाग के सामने सबसे बड़ा चैलेंज मातृ और शिशु की मौत का दर सबसे बड़ा चैलेंज है। इसकी वजह समझो उस पर काबू करो जो संसाधन चाहिए वह बताओ। उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारियों से कहा गर्भवती महिलाओं का सुरक्षित प्रसव कराओ, नवजात गहन चिकित्सा इकाई (आइसीयू) को बेहतर हालत में रखो।
मरीजों रेफर करने की आदत बंद करो जीआरएमसी के डीन डॉ.आरकेएसधाकड़ ने बैठक में प्रजेंटेशन देकर बताया कि जनवरी से मई तक ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी, जनरल मेडिसिन, इमरजेंसी मेडिसिन, जनरल सर्जरी और पीडियाट्रिक विभाग में कुल 5 माह में 3 हजार 996 मरीज रेफर होकर आए हैं। ज्यादातर मरीजों का नजदीकी अस्पताल में ही इलाज हो सकता था। कमिश्नर राठी को डीन डा. धाकड़ ने इसके पीछे की वजह बताई कि जिला अस्पतालों में डाक्टर भी है सुविधाएं भी है। लेकिन वहां पदस्थ डाक्टर कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए रेफरल खेल खेल रहे हैं।
रेफरल मरीजों से उत्पन्न समस्याएं -मेडिकल कॉलेज में मरीजों की भीड़ बढ़ती है, उन्हें भर्ती के लिए इंतजार करना पड़ता है और वार्डों में जगह की कमी। -मेडिकल संसाधनों का गलत उपयोग, जो प्राथमिक स्तर पर हल किए जा सकते हैं।
-मेडिकल छात्रों और रेजिडेंट डॉक्टरों के प्रशिक्षण में भी दिक्कत होती है। समाधान और सुझाव -जिला और सिविल अस्पतालों को प्रशिक्षण व निगरानी के माध्यम से सशक्त बनाया जाना चाहिए। -मेडिकल कॉलेजों को जिला स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सहायक और मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए।
-जनजागरूकता अभियान चलाकर नागरिकों को निकटतम अस्पतालों से इलाज के लिए प्रेरित करना चाहिए। -रेफरल सिस्टम की लेखा परीक्षा और निगरानी नियमित रूप से की जाए ताकि जवाबदेही सुनिश्चित होना चाहिए।